Hindi Essay, Paragraph on “Bhikari ki Aatmakatha ”, “भिखारी की आत्मकथा”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

भिखारी की आत्मकथा

Bhikari ki Aatmakatha 

भिखारियों का भी अपना जीवन होता है। वे भीख माँगने को ही अपना पेशा समझते हैं। प्राचीनकाल में भी भिखारी थे। पहले गरीब ब्राह्मण भिक्षा माँगकर ही अपना जीवन गुजारते थे। भिक्षा ही उनकी आजीविका का एकमात्र साधन थी। कई धर्म-कर्म वाले भिखारी तो केवल पाँच घरों स ही भिक्षा माँगते थे। जिस दिन उन्हें भिक्षा नहीं मिलती थी. उस दिन १ भूखे ही रहते थे। ऐसे धर्म-कर्म वाले निर्धन ब्राहमणों में सुदामा का सर्वोपरि है। इसलिए कहावत है-“बावन के धन केवल भिक्षा।

कई लोग लाचारी और विवशतावश ही भीख माँगते हैं जिन्हें कोई रोज़गार नहीं मिलता। वे अपना पेट भरने के लिए भीख माँगते हैं। कई व्यक्ति अंधे, लले-लंगड़े या अपाहिज होते हैं। ये सभी अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए भीख माँगते हैं। वे मजबूरीवश ऐसा करते हैं।

भिखारी अधिकांशतः मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों में मिलते हैं। चूँकि सभी धर्मों में दान देना अच्छा समझा जाता है, इसलिए हम मंदिर, मस्जिदों और गुरुद्वारों या गिरिजाघरों के बाहर खड़े भिखारियों को सहर्ष भिक्षा दे देते हैं और हम इसे पुण्य-कर्म समझते हैं। फिल्मवालों ने तो इस पर गाना भी बना दिया है-“गरीबों की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा, तुम एक पैसा दोगे, वो दस लाख देगा।” अर्थात् हम अगर भिखारी को एक पैसा देंगे, तो ईश्वर हमें लाखों रुपए देगा। हम यही सोचकर भिखारियों को भीख देते हैं कि हम इन लाचार, गरीब और दरिद्र भिखारियों पर दया कर रहे हैं, तो ईश्वर हम पर भी दया करेगा।

हालांकि भारत सरकार ने आज भीख माँगने पर पाबंदी लगा दी है और भीख माँगने को अपराध घोषित कर दिया है, परंतु फिर भी भारत में लाखों भिखारी हैं जो केवल भीख माँगकर ही अपनी जीविका चला। रहे हैं। सरकार ने भीख माँगना अपराध इसलिए बना दिया है, क्योंकि कुछ स्वार्थी और दुष्ट लोगों ने भीख को व्यवसाय बना दिया है। वे अनुचित रूप से बच्चों का अपहरण करके, उनको अपंग बनाकर उनसे मँगवाते हैं और उनका शोषण करते हैं।

इसके अतिरिक्त कुछ लोग तो भीख माँग-माँगकर ही अशी गए हैं। महानगरों में ऐसा बहुत हो रहा है जिनमें मुंबई, दिल्ली कोलकाता प्रमुख हैं। लोगों ने भीख को व्यवसाय बना लिया है अब किसी भिखारी को देखकर हमें उस पर दया नहीं आती। कई और युवा तो अपने हाथ-पैर तथा सिर पर नकली पट्टी बांधकर या झर अपंग अथवा अपाहिज बनकर भी भीख माँग रहे हैं। कई भिखारी तो बस, रेलगाड़ी और प्लेटफॉर्म से लोगों का कीमती सामान ही चोरी करके ले जाते हैं।

निष्कर्षतः सरकार ने भीख माँगने को अपराध की श्रेणी में लाकर अच्छा ही किया है। कम-से-कम ऐसे चोर और उठाईगिरों पर कुछ अंकुश तो लगेगा। परंतु भीख पर पूर्णरूप से रोक तभी लगेगी जब हम सभी भिखारियों को भीख देना बंद कर देंगे तब वे अपनी जीविका के लिए कुछ न कुछ उद्यम अवश्य करेंगे। इस प्रकार वे अपने पैरों पर खड़े होंगे और इससे भिखारियों एवं समाज का भला होगा। यदि हम चाहें तो यह संभव हो सकता है।

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