यदि मैं शिक्षा मन्त्री होता
Yadi Mein Shiksha Mantri Hota
भूमिका- मनुष्य कल्पनाशील प्राणी है। कल्पना का जन्म उस समय होता है जबकि मनुष्य किसी वस्तु का अभाव झेलता है। अभाव के कारण ही दुःख जन्म लेते हैं और दुखों से छुटकारा पाने की कामना प्रत्येक व्यक्ति करता है। कामना में ही मानव की उन्नति का भेद छिपा हुआ है। विद्यार्थी होने के नाते मेरी अधिकांश कामनाएं शिक्षा से सम्बन्धित हैं। मैं एक विद्यार्थी हूं और शिक्षा की वर्तमान दशा को देखकर मेरे मन में इसमें कुछ परिवर्तन लाने की कामना हुई। मैं सोचने लगा- काश! मैं शिक्षामन्त्री होता।
यदि मैं शिक्षा मन्त्री बन गया तो सबसे पहले मैं अपने अधिकार और कर्त्तव्य को समझता। शिक्षा मन्त्री होने का घमण्ड न करता। शिक्षकों तथा विद्यार्थियों से व्यक्तिगत सम्पर्क करता। मैं यह जानता हूं कि हमारा देश निर्धन है तथा बहुत गरीब घर के विद्यार्थी स्कूलों में आते हैं जिनके पास पहनने के लिए उचित वस्त्र तथा पुस्तकें आदि खरीदने के लिए साधन नहीं हैं, उनकी समस्याओं को सुलझाने का यथा शक्ति प्रयत्न करता।
शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन- अब में भगवान की कृपा से शिक्षा मन्त्री हूं। मैंने देखा कि आज के युग में शिक्षकों का मान समाज में गिर रहा है। मैं उन्हें पूर्ण सम्मान दिलाने की चेष्टा करता। अध्यापक बनने के लिए इच्छुक व्यक्तियों का चयन करते हुए बहुत सावधानी ध्यान में रखने का आदेश देता। अध्यापक को सबसे पहले सही अर्थों में अध्यापक होना आवश्यक है। मैं जानता हूं कि अध्यापक अपनी यूनियन बनाते हैं और कुछ अध्यापक यूनियन के डर से शिक्षा संस्थानों में मनमाना व्यवहार करते हैं।
शिक्षा में सुधार- यदि मैं शिक्षा मन्त्री होता तो सबसे पहले आज्ञा जारी करके पाठ्यक्रमों में किताबों का बोझ कम करता। आजकल एक ही विषय पर कई-कई पुस्तकें पाठ्यक्रम में लगाई जाती हैं और छात्र पुस्तकों के ढेर को देख कर घबरा जाते हैं। मैं अध्यापकों को भी सभी सुविधाएं दिलाने के पक्ष में हूं।
मैं प्राईवेट ट्यूशन के हक में नहीं हूं। शिक्षा मन्त्री बनते ही मैं सरकारी अध्यापकों को प्राईवेट ट्यूशन करने से मना कर दूंगा। ट्यूशन करने वाले अध्यापक कक्षा में तो कुछ करवाते नहीं- स्कूल के समय के बाद उनके घरों में या फिर स्कूल के नजदीक ही कमरा ले लेते हैं और अपना स्कूल खोल कर बैठ जाते हैं। जो विद्यार्थी ट्यूशन नही पढ़ता उसे किसी-न-किसी ढंग से लज्जित किया जाता है। गरीब मां-बाप अपने बच्चों की ट्यूशन नहीं रखवा सकते और वे बच्चे पढ़ाई में वंचित रह जाते हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली भी गल्त है। शिक्षा को व्यावसायिक बनाना भी जरूरी है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमें किताबी कीड़ा बनाती है और बाद में हम बेरोजगार नौजवानों की पंक्ति में खड़े हो जाते हैं। शिक्षा प्रणाली ऐसी हो कि विद्यार्थी अपने पांव पर आप खड़ा हो सके। मैं ऐसा करने का पूरा प्रयत्न करूंगा।
विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम के प्रति सर्तक रहने की आवश्यकता है। मैं समझता हूं कि विज्ञान, गणित जैसे विषय सभी विद्यार्थी नहीं समझ पाते हैं। अत: मैं अध्यापकों की सहायता से उनकी रुचियों और प्रतिभा को देखकर ही उन्हें अलग-अलग विषयों की शिक्षा दिलाने के पक्ष में हूं। अब कॉलेजों में केवल वे ही विद्यार्थी जा सकेंगे जो वास्तव में इसके योग्य है, अधिक परिश्रमी हैं तथा ऊंची शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक भी हैं।
मुझे इस बात का ज्ञान है कि परीक्षा के समय में बोर्ड में भी तथा परीक्षा केन्द्रों में भी अनियमिताओं का प्रयोग होता है। परीक्षक पर अनेक प्रकार के दबाव डाले जाते हैं। इसलिए मैं कठोर निर्णय लूंगा। हमारे स्कूलों में कहीं अध्यापक है तो छात्र नहीं होते, जहां छात्र हैं वहां अध्यापकों की कमी है। कही विद्यालय का भवन नहीं है और कहीं खेल का मैदान नहीं है। शिक्षा मन्त्री बन कर मैं छात्रों की मूलभूत आवश्यकताओं की ओर ध्यान दंगा। शिक्षा में चरित्र नैतिकता के अतिरिक्त खेलों के प्रति भी विद्यार्थियों को आकर्षित करवाने की व्यवस्था होगी और जो विद्यार्थी अच्छे खिलाड़ी बनने के योग्य होगें सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।
स्त्री शिक्षा- मैं जानता हूं कि वर्तमान युग में स्त्री शिक्षा का भी विशेष महत्त्व है। अत: इस और ध्यान देना भी अनिवार्य है। आज समाज में नारी का विशेष योगदान है उनकी शिक्षा के प्रति भी मैं विशेष ध्यान देना चाहता हं। मेरा दृष्टिकोण है कि दसवीं तक सभी व्यक्तियों को अनिवार्य शिक्षा दी जाए। इसके बाद प्रतिभावान और परिश्रमी लड़कियों को उच्च शिक्षा के अवसर और सुविधाएं प्रदान की जाए।
उपसंहार- शिक्षा व्यवस्था परिवर्तन से देश की दशा बदली जा सकती है। दूसरे देश अपनी शिक्षा के बलबूते पर ही इतनी उन्नति कर पाए हैं। मैं आपका सहयोग चाहता हूं। आप मुझे सहयोग दीजिए तो यह सभी कुछ सम्भव हो जाएगा। हम सब ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह मुझे शिक्षा मन्त्री बनने का मौका दे ताकि मैं आपकी सेवा कर सकूँ।