यदि मैं प्रधानमंत्री होता
Yadi me Pradhan Mantri hota
निबंध नंबर :- 01
कल्पना भी क्या चीज होती है। कल्पना के घोड़े पर सवार होकर मनुष्य न जाने कहाँ-कहाँ की सैर कर आता है-स्वयं को क्या से क्या समझने लगता है। ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने में मुंगेरीलाल कल्पना के सहारे स्वयं को कभी राजा तो कभी नौकर समझाने लगता है। हालाँकि यह सही है कि कल्पना से परिपूर्ण कथाओं में वास्तविकता नहीं होती, तथापि कल्पना से जहाँ मनुष्य कुछ क्षण के लिए आनन्दित हो लेती है, वहीं अपने लिए आदर्श भी निर्धारित कर लेता है। इसी कारण नए-नए कीर्तिमान स्थापित होते हैं। एडीसन, न्यूटन, राइट-बंध आदि सभी वैज्ञानिकों ने कल्पना का आश्रय लेकर ही नए-नए आविष्कार किए। कल्पना में मनुष्य स्वयं को सर्वगुण सम्पन्न समझने लगता है।
यदि कल्पना में ही मैं भी स्वयं को देश का प्रधानमंत्री समझने लगे, तो क्या । बुरी बात है ? यद्यपि मैं जानता हूं कि ऋषियों की तपोभूमि, सुभगा, सुजला, सुवर्णा, सुरत्ना, शस्यश्यामला वसुन्धरा भारतभूमि पर एक प्रधानमंत्री के रूप में उभरना एक कठिन काम है, तथापि में इसे असम्भव नहीं मानता। मेरे इरादे मजबूत हैं। हृदय में कुछ कर गुजरने की ललक है और पुरुषार्थ की भावना है। क्या मालूम मुझे भी कभी प्रधानमंत्री पद पाने का अवसर मिल जाए। इसीलिए मैं सोचता हूँ कि यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इस देश के लिए क्या-क्या करता ?
प्रधानमंत्री का पद अत्यन्त महत्वपूर्ण पद होता है। भारत लोकतन्त्रात्मक राज्य है। लोकतन्त्र के विषय में अब्राहम लिंकन ने कहा था। ‘‘लोकतन्त्र में जनता ही, जनता के लिए, जनता द्वारा चुनी गई सरकार है।’ अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति के हित को ध्यान में रखकर लोकतंत्र में शासन कार्य चलाया जाता है। लोकतन्त्र में लोगों द्वारा चुने गए सदस्य सरकार बनाते हैं और बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री बनता है। प्रधानमंत्री राष्ट्र के वास्तविक अध्यक्ष के रूप में अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। प्रधानमंत्री ही देश के शासनकायों की धुरी, राष्ट्र व मंत्रिमण्डल का नेता और जनता का मुख होता है। अतः यदि मैं प्रधानमंत्री होता, तो शासनकार्यों में बिल्कुल ढील न आने देता और सदैव देशहित की बात कहता। मुझमें जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक समस्त नेताओं के सद्गुणों का सम्मिश्रण दृष्टिगोचर होता है। मैं जवाहरलाल नेहरू की भाँति व्यापक दृष्टिकोण को अपनाकर ‘पंचशील सिद्धांत’ को महत्व देता। लालयहादुर शास्त्री की भांति बहादुरी से देश-रक्षा करते हुए शत्रुओं को नाकों चने चबवा देता । इन्दिरा गाँधी की तरह विश्व के समक्ष राष्ट्र की स्थिति मजबूत करता व देश को आत्मनिर्भर बनाने का यत्न करता। मुरारजी देसाई की तरह सबसे मित्रता का सिद्धांत अपनाता। चौधरी चरणसिंह की तरह देश के अन्न-उत्पादकों से सच्ची हमदर्दी दिखाता । राजीव गाँधी के समान शिक्षा-पद्धति में सुधार का प्रयत्न करता। वी. पी. सिंह के समान पिछड़े वर्गों को उन्नति के अवसर देता, मगर आर्थिक स्थिति व योग्यता को देखकर।। चन्द्रशेखर जी के समान देश की विकट परिस्थितियों पर कुशलता से काबू पाता। अटल बिहारी वाजपेयी के समान दृढ निश्चय लेता।
आज देश में चारों ओर समस्याएँ सिर उठा रही हैं। यदि में प्रधानमंत्री होता । तो क्या यह सब हो सकता था ? नहीं। कदापि नहीं। यदि मैं प्रधानमंत्री होता। तो सबसे पहले मैं देश की आर्थिक-दशा सुधारने का यत्न करता। इसके लिए सम्पूर्ण । देश में उद्योगों का जाल बिछा देता। देश को फिर से ‘कृषि-प्रधान’ व ‘अन्नदाता’ बना देता। नई-नई तकनीकों की जानकारी देकर हर किसान को खुशहाल बना देता।। रुपये का अवमूल्यन तो विल्कुल न होने देता।
देश की प्राकृतिक सम्पदा की रक्षा करता। भारत में सारे वर्ष अमृत-धारा । से भरपूर अनेक नदियाँ बहती हैं। इन नदियों के जल का समुचित प्रयोग करके। देश को धन-धान्य सम्पन्न बनाता। भारत के पूर्व, पश्चिम, दक्षिण में स्थित सागर अपार सम्पदा की खान हैं। इस सम्पदा का देशहित में उपयोग करवाता । बाट से। होने वाली हानि से बचाने के लिए पूर्व उपाय कराता। बंजर भूमि को हरी-भरी भगि में बदलवा देता। इस कार्य में देश के महान् वैज्ञानिकों के सहयोग से भरपूर लाभ उठाता।
यदि में प्रधानमंत्री होता, तो देश की शिक्षा-प्रणाली में सुधार करता ताकि वर्तमान की भाँति यह प्रणाली मात्र किताबी कीड़े पैदा न करे । विशेषकर तकनीकी शिक्षा को अनिवार्य शिक्षा’ बना देता । आज देश के डिग्रीधारी स्नातकों, स्नातकोत्तरों भी अपेक्षा ऐसे योग्य व्यक्तियों की आवश्यकता है, जो देश का नवनिर्माण कर सकें। मैं नवयुवकों की प्रतिभा को यों ही नष्ट न होने देता। बेरोजगारों के लिए। काम उपलब्ध कराता। नौकरी के अभाव में शिक्षित लोगों के मन में हीन-भावना को पनपने का अवसर ही न देता, ताकि कभी भी भारत माँ के नौनिहाल ‘आत्मदाह जैसा घातक कदम न उठाएं।
आजकल चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। कालाबाजारी ने हर क्षेत्र में कब्जा कर लिया है। पहुँच’ के मंत्र और ‘लालफीताशाही’ की आहुति के बिना कार्य सम्पन्न नहीं होता। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो बलवन की तरह ‘भ्रष्टाचारी को चौक पर फांसी लगाने का आदेश दे देता। कड़े से कड़े दण्ड द्वारा समाज में फैले इस कोढ़ को समाप्त करवाता।
जनवृद्धि पर काबू पाने के लिए विशेष प्रबन्ध करता। जनसंचार के माध्यमों से जनता को जनवृद्धि के संकट के प्रति सचेत रखता। ‘द्रौपदी के चीर’ की तरह। बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पा लेने से महंगाई, आवास-समस्या और निरक्षरता पर काबू पाना भी मेरे लिए आसान हो जाता।
यदि मैं प्रधानमंत्री होता, तो साम्प्रदायिकता के जहरीले पौधे को देश से उखाड़ फेकता। पंजाब, कश्मीर, असम-समस्या का नामोनिशान न रहने देता। आतंकवाद के परखचे उड़ा देता। यदि में प्रधानमंत्री होता, तो भाजपा को इतने कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बीच ‘एकता-यात्रा निकालने या चुनौती की तरह ‘कश्मीर के लाल चौक पर झंडा फहराने की आवश्यकता अनुभव न होती। मैं स्पष्ट रूप से पाक से वह देता कि या तो अलगाववाद को हवा देना बंद करो या युद्ध करो। कश्मीर मुद्दे को सुरक्षा-परिषद् में घसीटता ही नहीं, अपितु वहाँ से वापस ले आता और पहले शांतिपूर्ण समस्या के समाधान की चेष्टा करता। पाक का रुख नकारात्मक होने पर अपने देश के 100 करोड़ लोगों के 200 करोड़ हाथों की सहायता से मुंह तोड़ जवाब देता ।
यदि में प्रधानमंत्री होता तो वर्तमान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह शांतिपूर्वक पाकिस्तान से समझौता न करता, बल्कि पहले पाकिस्तान द्वारा अधिकृत भारत देश वापिस लेता। ‘सोवियत संघ विघटन’ पर मुकदर्शक होकर कभी न बैठता, अपितु यह ध्यान रखता कि सोवियत संघ हमारा चिरकाल से मित्र रहा। है। अतः ऐसी सूझ बूझयुक्त टिप्पणी करता कि देश-हित भी प्रभावित न होता और नवगठित राष्ट्रमण्डल’ से मित्रता भी सुनिश्चित हो जाती ।
अंत में मैं कहना चाहूंगा कि,
“यदि मैं प्रधानमंत्री होता, भारत जग शिरोमणि बन जाता।
खेतों में नाचती हरियाली, सर्वत्र होती खुशहाली।।”
निबंध नंबर :- 02
यदि मैं प्रधानमंत्री होता!
जब भी मैं देश की दुर्दशा पर विचार करता हूँ, तो मेरा हृदय वेदना और पीड़ा से भर उठता है। तब मैं ये सोचता हूँ कि यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता, तो भारत की यह दुर्दशा कभी न होने देता। मुझे यह भलीभांति ज्ञात है कि प्रधानमंत्री का पद काँटों का ताज है। मुझे मालूम है कि मैं प्रधानमंत्री बनने वाला नहीं हूँ, पर मन की कल्पना की उ” पर किसका वश चलता है।
काश! मैं भारत का प्रधानमंत्री होता तो सबसे पहले अपने मात्रमा में सुयोग्य और अनुभवी व्यक्तियों को शामिल करता। गुटबंदी या भाई-भतीजावाद कभी नहीं करता। ऐसे सहयोगियों का चुनाव करता जो के नव-निर्माण में अपना पूर्ण सहयोग करते।
प्रधानमंत्री के रूप में मेरी प्राथमिकताएँ होतीं देश की एकता और खण्डता की रक्षा, कानून-व्यवस्था का शासन, कृषि एवं उद्योगों का विकास, अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा, लघु उद्योगों का विकास, बेरोजगारी की समस्या पर नियंत्रण इत्यादि।
मैं शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करता। यद्यपि ऐसे प्रयास कई बार किए जा चुके हैं, पर कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला।
देश में बढ़ते आतंकवाद को देखकर मैं भारत के भावी स्वरूप की कल्पना करके सिहर जाता हूँ। स्वतंत्रता के 61 वर्ष बाद भी भारत उतना सशक्त नहीं हुआ है, जितना उसे होना चाहिए। देश में विघटनकारी प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मैं इन विघटनकारी प्रवृत्तियों को कुचल देता और शांति कायम करने का भरपूर प्रयास करता।
हमारे देश में बेरोज़गारी की समस्या एक गंभीर समस्या है। बेरोज़गार युवक-युवतियों को देखकर मुझे अपने देश की शिक्षा-प्रणाली की निरर्थकता का आभास होने लगता है। मैं इन बेरोज़गारों को लघु और कुटीर उद्योग लगाने के लिए प्रेरित करता और आवश्यक सुविधाओं का प्रबंध करता ताकि वे स्वावलम्बी बन पाते।
इस वक्त हमारे देश में प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो आम आदमी की आय में अवश्य बढोत्तरी करवाता। निर्धन एवं मध्यम वर्ग आज आवास और खान-पान की मूल सुविधाओं को पाने में असमर्थ है, उनकी मूलभूत सुविधाओं को जुटाने का भरसक प्रयास करता। इसके अलावा देश की सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था और सख्त करता ताकि विदेशी घुसपैठिए या आतंकवादी हमारे देश में अवैध तरीके से घुसकर आतंक फैलाने में सफल न हो पाते। काश! मैं प्रधानमंत्री होता, तो भारत को स्वर्ग बना देता।