विज्ञापन और हमारा जीवन
Vigyapan aur Hamara Jeevan
हमारा समाज सूचना प्रधान है, इसको समय-समय पर सूचनाओं से अवगत होना अच्छा लगता है। वास्तविक तौर पर समाज को किस स्तर पर उठाना है या समाज का स्तर कब क्या है यह सब जानकारियाँ हमें विज्ञापनों से ही मिलती है। सूचना व जानकारियाँ विज्ञापनों के जरिए प्राप्त की जाती हैं चाहे रेडियो को सुना जाए, अखबारों में पढ़ा जाए या किसी पत्रिका में पढ़ा जाए। यह सभी विज्ञापनों का उद्देश्य होता है कि वे सबकी नजरों में आए और सभी को प्रभावित करें। अपने घर के अन्दर जैसे ही हम टेलीविजन खोलते हैं, हमें हर पाँच या दस मिनट के बाद एक विज्ञापन देखने को मिलता है। इसी तरह रेडियो पर हर पाँच से पन्द्रह मिनट के बीच हमें एक विज्ञापन सुनने को मिलता है। अखबार खोलें तो प्रथम पन्ने या दूसरे, तीसरे या फिर आखरी पन्ने पर तो हमें कोई न कोई विज्ञापन देखने को मिल ही जाता है। यह विज्ञापन घर से बाहर निकलने पर भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते, घर से बाहर निकलते ही वाहनों पर, दीवारों पर, पेड़ों से लटकते हुए और यहाँ तक कि बिजली के खम्बों पर भी हमें विज्ञापन नजर आ जाते हैं। हम चाहें न चाहें विज्ञापन हमारी मानसिकता में कितना घुल-मिल गए हैं ये तो। हमें स्वयं को भी नहीं मालूम। शायद हम किसी ऐसी जगह पर जाएँ जहाँ पर कोई भी विज्ञापन न दिखाई दे और न ही सुनाई दे तभी हम इस बात का पता लगा पाएँगे की विज्ञापन हमारे जीवन में किस तरह घुल गए हैं।
विज्ञापनों का कार्य क्या है? वे क्या है, क्या उनका कोई उद्देश्य या आदर्श भी है? नि:संदेह यह हमारे लिए बहुत जरूरी है। विज्ञापनों से हमें जानकारी प्राप्त हाती है। जानकारी से हमारी जागरूकता विकसित होती है और जागरूकता के विकसित होने से हमारी निर्णय शक्ति बढ़ती है।
विज्ञापन आकर्षित करने का एक तरीका है जिसे विज्ञापनकर्ता अपनी सेवाओं और वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने के लिए, उसके बारे में सारी लाभदायक जानकारियाँ देता है। इसमें वे आकर्षक, प्रभावकारी और अनुभवी व्यक्तियों एवं कलाकारों की मदद लेते हैं। विज्ञापनों के दो कार्य होते हैं, एक तो अपनी वस्तु या सेवा के बारे में जानकारी देना और दूसरा यदि उनको पहले से ही जानकारी है तो उसकी जरूरत समाज के लोगों में पैदा करना।
विज्ञापन एक बहुत बड़ा उद्योग बन चुका है क्योंकि आज एक ही चीज की कई किस्में हैं, चाहे वह टूथपेस्ट हो, नमक हो, साबुन हो, कोई बैंक हो, या फिर कारें हो। हर एक वस्तु की बहुत सारी किस्में आ गई हैं। ये किस्में व्यक्ति को उलझनों में डाल देती हैं। सारे उद्योगपति अपनी चीजों की तारीफें करवाने के लिए एक से बढ़कर एक विज्ञापन करवाते हैं। विज्ञापन करना भी वास्वत में एक तीक्ष्ण बौद्धिक कला है, जिस उत्पाद के बाजार में इतने सारे प्रतिद्वंदी हों, वह अपने-आपको समाज और नागरिकों की नजरों में किस प्रकार सबसे अधिक श्रेष्ठ, उपयोगी और खरीदने योग्य साबित करे यह वास्तव में एक बहुत बड़ा कार्य है। ऐसा काम दिलचस्प भी है और चुनौतीपूर्ण भी। आज विज्ञापन शिक्षण प्रदान किया जा रहा है। विज्ञापनप्रबंध भी एक अलग शाखा बन चुका है। क्योंकि यह किसी महत्वपूर्ण कार्य से कम नहीं कि हम अपने उत्पाद या सेवाओं को, विज्ञापन के माध्यम से बेचना चाहते हैं। विज्ञापन में सटीकता, स्पष्टता और वास्तविकता के साथसाथ समाज की संवेदनाओं का भी पूरा-पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए। इस बात का हमेशा ख्याल रखा जाना चाहिए कि विज्ञापन समाज को कोई संदेश भी देकर जाए। विज्ञापन रूचिपूर्ण एवं रोचक भी होना चाहिए। जिससे उनको बार-बार देखने का मन करता रहे। विज्ञापन करने और कराने वालों के ऊपर समाज को समझने की भी जिम्मेदारी होती है। विज्ञापन को अश्लील भी नहीं होना चाहिए। उनको यही प्रयत्न करत रहना चाहिए पा विज्ञापन, सरल व स्वभाविक हो और साथ ही वास्तविक जीवन से पूरी तरह संबंधित हो।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक वर्ष सबसे अच्छे विज्ञापन बनाने वाले व्यक्ति को अवार्ड भी दिया जाता है। यदि ये विज्ञापन इतने महत्वपूर्ण न होते तो इनको अवार्ड दिया जाना जरूरी ही नहीं समझा जाता।
परन्तु कभी-कभी उत्पाद या सेवाएँ देने वाले अपनी प्रतिस्पर्धा में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि वे आपस की प्रतिस्पर्धा को ही माध्यम बनाकर समाज के सामने अपनी आपसी प्रतिस्पर्धा का प्रदर्शन करते हैं। कभी-कभी नए-नए उत्पाद भी ऐसा कार्य करते हैं, जिससे कि पुराने उत्पाद समाज की बुद्धि से उतर जाए और उनके उत्पाद समाज खरीदने लगे या उनकी सेवाओं का लाभ उठाने लगे। इस प्रतिस्पर्धा का दिखावा कोई भी करें, चाहे पहले से स्थापित उत्पाद या नये उत्पाद, समाज दोनों पर हंसता है और उनकी छवि एक हास्यास्पद विज्ञापन की हो जाती है।
वैसे सच तो यह है कि इन सभी बातों से समाज पर एक सही व आदर्श प्रभाव नहीं पड़ता। गंभीर व्यक्ति तो इन विज्ञापनों से उब जाते हैं। इस संदर्भ में सरकार को इस बात के लिए जागरूक करवाना चाहिए कि उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि उन्हीं विज्ञापनों को पारित किया जाए जो विवेकपूर्ण और मर्यादापूर्ण हो तथा उनमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नजर आती हो न कि हास्यास्पद प्रतिस्पर्धा। हास्य रस जीवन में बहुत ही जरूरी है मगर इसके लिए यदि हम मूल्यों का विघटन करें, तो निश्चय ही यह मानवता के स्तर को गिराएगा।
विज्ञापन मनोरंजन से भरपूर भी होते हैं। बहुत से लोग तो रेडियो और टी. वी. पर कार्यक्रम सुनते व देखते ही विज्ञापनों की वजह से हैं। विज्ञापनों के गीतों के बोल व लय बच्चों को गानों की तरह याद होते हैं। विशेषकर विभिन्न प्रकार के रंगों से लैस विज्ञापन देखकर बच्चे तो बच्चे, युवाओं और वृद्धों के मुख पर भी मुस्कान आ जाती है।
अब बदलते हुए जमाने के साथ-साथ विज्ञापन कम्प्यूटरों के माध्यम से इंटरनेट पर भी दिखाए जा रहे हैं। सामाजिक परिवर्तनों में विज्ञापन एक अस्त्र की तरह प्रयोग किया जाता है और किसी भी देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक विकास तथा पतन में ‘सचना का प्रसार’ एक महत्वपूर्ण का कारण रहा है। इसी कारण आज विश्व में, विकास को ध्यान में रखते हुए जानकारियों और सूचनाओं को प्रसारित करने के लिए विज्ञापन की मोहक विद्या का उदारतापूर्वक इस्तेमाल होना बिल्कुल ही स्वाभाविक है। प्रत्येक वर्ष विज्ञापन पर वित्तीय खर्च में बढ़ोतरी होती जा रही है। प्रतियोगिता से समृद्ध उद्योगों को बढ़ावा देने में विज्ञापन पूर्ण रूप से अधिकाधिक प्रतियोगितापूर्ण उद्योग बन गया है।
विज्ञापन का प्रयोग बहुत सारे समाज सुधार के कार्यों मे भी किया जाता है। अफ्रीका जैसे देशों मे ‘एड्स’ की जागरूकता वहाँ के नागरिकों तक पहुँचाना। जिससे वे इस बीमारी से अपने आप को बचा सकें। यदि ऐसा सम्भव हो सका तो निश्चित रूप से इसका श्रेय प्रसार माध्यमों को ही देंगे। इसके अतिरिक्त अन्य सामाजिक-कार्यों के लिए भी विज्ञापनों का सहारा लिया जाता रहा है। जैसे- साक्षरता अभियान, कम आयु में विवाह करने के विरुद्ध, दहेज प्रथा के विरुद्ध, विभिन्न बीमारियों के लिए टीकाकरण के लिए, नेत्रदान के लिए, राष्ट्रीय एकता को सशक्त करने के लिए, नागरिकों को मताधिकार की शक्ति बताने में और प्राकृतिक अभिशाप से जन्में राष्ट्रीय संकट के लिए आदि सभी सामाजिक व राष्ट्रीय हित की जागरूकता फैलाने में विज्ञापन का हमेशा से ही प्रभावकारी उपयोग हुआ है।
परन्तु विज्ञापनों में कई बार अश्लील व द्विअर्थी संवादों का भी प्रयोग किया जाता है, जो बिल्कुल भी सही नहीं है। कई हानिकारक चीजों जैसे शराब, सिगरेट और गुटका आदि के इस्तेमाल को उत्साह, जोश और खुशियाँ मनाने का माध्यम माना जाता है। जिससे युवाओं के मन में गलत भ्रांतियों का समावेश हो जाता है। जिसकी बदौलत हम आज कई किशोर-किशोरियों को भी गुटका, शराब और सिगरेट आदि का सेवन करते हुए देखते हैं।
इसकी वजह यदि हम ढंग से सोचें तो वह है विज्ञापन जो हमारे मन मे गलत अवधारणाएँ डालते हैं। विज्ञापन बनाने वालों को यह ध्यान जरूर ही रखना चाहिए कि विज्ञापन का प्रमुख कार्य समाज को उनसे व उनको समाज से जोड़ना है। इसलिए उनका नैतिक कर्त्तव्य भी यही होना चाहिए कि अपने विज्ञापनों को जितना हो सके ज्ञानवर्धक, मर्यादापूर्ण, विवेकशील और सुरूचिपूर्ण बनाए। ऐसे विज्ञापनों का न:संदेह समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। उनके इस कार्य से समाज और वज्ञापन करने वाले दोनों को ही संतुष्टि और लाभ होगा।