विज्ञान वरदान है या अभिशाप
Vigyan Vardan hai ya Abhishap
अथवा
विज्ञान के चमत्कार व विज्ञान के बढ़ते चरण
Vigyan ke Chamatkar – Vigyan ke badhte charan
अथवा
विज्ञान और मनुष्य
Vigyan aur Manushya
अथवा
विज्ञान और मानव-जगत
Vigyan aur Manav Jagat
आज का युग विज्ञान का युग है। ‘विज्ञान’ शब्द ‘वि + ज्ञान’ से बना है। ‘वि’ यानि विशेष अत: विज्ञान किसी भी विषय में विशेष ज्ञान को ही कहा जाता है। आज के परिप्रेक्ष्य पर दृष्टिपात करने पर हम यह पाते हैं कि जीवन का प्रत्येक क्षेत्र, चाहे वह धर्म हो, कला हो, राजनीति हो अथवा कोई भी अन्य क्षेत्र क्यों न हो, विज्ञान से अती नहीं है। विज्ञान ने समस्त प्रकृति पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है। विज्ञान के कारण मानव को एक अपरिमित, और अदम्य शक्ति प्राप्त हुई है, जिसके विषय में कवि ‘दिनकर’ लिखते हैं-
“हैं बंधे नर के करों में वारि, विद्युत भाप,
हुक्म पर चढ़ता उतरता है, पवन का ताप,
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान,
लाँघ सकता नर, सरित, गिरि, सिन्धु एक समान !”
विज्ञान इस पृथ्वी पर एक कल्पवृक्ष की भांति अवतरित हुआ है। इसने मानव की चिरसंचित विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति की है। इसने अंधों को ऑखें, बहरों को कान, लंगड़ों को चलने की क्षमता प्रदान की है। विज्ञान की देन इतनी नयनाभिराम है कि आज यदि प्राचीन-काल का मानव इसकी लीलाएँ देख लें, तो या तो वह दाँतों तले अंगुली दबा लेगा या स्वयं अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं करेगा। विज्ञान की मदद से ही आज मानव चन्द्रमा का मस्तक चूमने में सफल हुआ है। पृथ्वी की परिक्रमा कर लिया है व विभिन्न ग्रहों की जानकारी भी हासिल कर ली है ।
एक सिक्के के दो पहूल होते हैं। फूल के साथ कांटे भी होते हैं। समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत के साथ-साथ विष भी ग्रहण करना पड़ता है। धूप के साथ छाया व दिन के साथ रात का अटूट सम्बन्ध होता है। इसी प्रकार विज्ञान के भी दो पक्ष हैं। कुछ बुद्धिजीवी इसे वरदान मानते हैं, तो कुछ ने अभिशाप अंग्रेजी में एक कहावत है-
“Science is a good servant, but a bad master”
अर्थात् विज्ञान अच्छा दास है, किन्तु बुरा स्वामी भी है।
इसी कारण किसी ने कहा भी है-
घर घर में फैला आज विज्ञान का प्रकाश।
करता दोनों काम वह नवनिर्माण और विनाशः।।।
अतः यदि यह जानना है कि वास्तव में विज्ञान वरदान है अथवा अभिशाप, तो हमें इसके दोनों पक्षों का अध्ययन करना होगा। विज्ञान के चमत्कार चिकित्सा, संचार साधनों, कृषि, यातायात आदि प्रत्येक क्षेत्र में दृष्टिगोचर होते हैं। विज्ञान के कारण ही आज मानव ने अनेक असाध्य समझे जाने वाले रोगों का इलाज खोज निकाला है। जहाँ पहले मामूली रोग होने पर ही देश के भावी नागरिक काल कवलित हो जाते थे, वहीं आज क्षय रोग, कैंसर, हैजा, संक्रामक जैसे भयानक और असाध्य रोगों के लिए अचूक औषधियों का आविष्कार किया जा चुका है। यहाँ तक कि मानव के हृदय को प्रत्यारोपण भी सफलतापूर्वक किया जा चुका है। आज विज्ञान ने मानव को वह शक्ति दे दी है कि वह चाहे तो किसी भी प्राणी के शरीर का समस्त रक्त निकालकर नया रक्त डाल दे। आज परखनली में शिशु और पौधे पैदा करके विज्ञान ने स्वयं ब्रहा को भी चकित कर दिया है। घर बैठे-बैठे बटन दबाते ही घर का शुभ्र ज्योत्सना से आलोकमय हो उठना, घर में बैठकर न सिर्फ विदेशी समाचार अपितु विदेशियों के टेलीविजन पर, साक्षात दर्शन भी कर लेना आदि विज्ञान का वरदान नहीं तो और क्या है ? विज्ञान ने मानव को ऐसे यातायात के साधन उपलब्ध कराए हैं, जिनसे वह पक्षी की भाँति गगनमण्डल में उड़ान भर सकता है, मछली के समान जल में तैर सकता है व बसों, रेलों आदि के द्वारा महीनों की यात्रा दिनों में, दिनों की यात्रा घण्टों में, घण्टों की यात्रा मिनटों में कर सकता है। संक्षेप में, यदि कहा जाए तो समस्त प्रकृति पर ही विज्ञान की विजय पताका लहरा रही। है। अतः विज्ञान एक वरदान है।
यह सही है कि विज्ञान ने पृथ्वी लोक को दूसरा स्वर्ग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, तथापि यह भी सत्य है कि इसी विज्ञान ने मानव के लिए नर्क का द्वार भी खोला है। इसने इतने शक्तिशाली अणुबम, परमाणु बम, स्कड मिसाइल, पैट्रियाट मिसाईल आदि बनाई हैं, जिनका मुँह केवल विनाश की ओर ही खुलता है। विज्ञान ने मानव को पर्णतः भोगवादी व अकर्मण्यं बना दिया है। आज मानव स्वचालित यन्त्रों पर इतना अधिक निर्भर हो गया है कि उसकी हस्तक्षमता लगभग समाप्त ही हो चली है। इसने मानव को चतुर तो बनाया, किन्तु इमानदारी नहीं दिखाई। इसने मानव को साधन तो दिए, किन्तु उनका सदुपयोग नहीं सिखाया। फलतः आज
सर्वत्र अशांति, कटुता, बेकारी, शोषण आदि का साम्राज्य दिखाई पड़ता है। और 1-अधिक क्या कहें विज्ञान के अभिशाप रूप में होने का एक प्रमाण सन् 1991 में हुआ। इसका प्रमाण खाड़ी युद्ध ही है। इस युद्ध के दौरान प्रतिदिन जितनी विनाशलीला देखने को मिली, उतना क्रूर तांडव तो सम्पूर्ण महाभारत के युद्ध के दौरान भी नहीं हुआ था। अभी हिरोशिमा, नागासाकी की हृदयविदारक घटना को लोग भूल नहीं पा रहे थे कि यह एक और उपहार विज्ञान की ओर से मानवता को प्राप्त हुआ। जिस विज्ञान का शैशवकाल मानवता की सुख-समृद्धि के लिए था, उसी की प्रौढ़ावस्था आज मानव-संस्कृति, सभ्यता को भस्मसात करने पर उतारू । हुई प्रतीत होती है। अतः विज्ञान एक अभिशाप है। इसीलिए तो किसी कवि ने कहा है-
प्रकृति शक्ति-यन्त्रों से तुमने हमारी छीनी।
शोषित कर जीवनी बना दी जर्जर झीनी।।
ऊपर लिखित दोनों पहलुओं का अध्ययन करने पर प्रतीत होता है कि सत्यता की गूंज तो दोनों ही पक्षों में है, किन्तु वास्तव में दोषी विज्ञान नहीं, स्वयं मानव है। मानव की स्वार्थलिप्सा या कलुषित विचारधारा ही विज्ञान को वरदान की अपेक्षा अभिशाप बनने पर विवश करती है। कसाई के हाथ का छुरा जहाँ विभिन्न पशुओं को मौत के घाट उतारता है, वहीं डाक्टर के हाथ में आने पर लोगों का जीवन बचाता है। एक हवाई जहाज जहाँ हजारों मील की दूरी थोड़े समय में तय करके अमूल्य समय की बचत करता है, वहीं युद्ध के दौरान बमवर्षक बनकर विनाश का कारण भी बनता है। अतः कसूर विज्ञान का नहीं है, उसके दुरुपयोग का है। इसीलिए। विज्ञान का सदुपयोग ही होना चाहिए, दुरुपयोग नहीं ।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि विज्ञान तो ‘अलादीन के चिराग’ की भाँति सदैव मानव के हित के लिए उपस्थित है। विज्ञान एक शक्ति है, जिसका बेहत सोच समझकर मानव के कल्याण के लिए ही उपयोग करना चाहिए। यदि व्यक्ति अपनी कलुषित विचारधारा को त्यागकर शुद्ध भाव से विज्ञान का प्रयोग करे, तो यह सुख, और शांति की शीतल समीर से हमारे जीवन को आनंदित करेगा और तभी सच्चे में यह वरदान साबित होगा। इसीलिए एक कवि ने ठीक ही कहा है ।
‘विष्णु सरीखा पालक है, शंकर जैसा संहारक।
पूजा उसकी शद्ध भाव से, करो आज से आराधक।।