विद्यार्थी और राष्ट्र-प्रेम
Vidyarthi aur Rashtra Prem
प्रत्येक विद्यार्थी अपने राष्ट्र का एक अभिन्न हिस्सा होता है। जिस राष्ट्र में वह पैदा हुआ और पढ़-लिखकर बड़ा हुआ, जिस राष्ट्र ने उसे खाने के लिए अन्न, सोने के लिए धरती तथा जीने के लिए वायु दी–उस राष्ट्र से विद्यार्थी का प्रेम होना स्वाभाविक ही है।
विद्यार्थी-जीवन में जब देश-प्रेम के बीज पड़ जाते हैं तो जीवन-भर राष्ट्र के प्रति उसकी आस्था और विश्वास का पौधा हरियाता रहता है।
विद्यार्थी और राष्ट्र प्रेम का ऐसा सम्बन्ध है जैसे कि शरीर और आत्मा का सम्बन्ध। जिस प्रकार जीवित मनुष्य की आत्मा को उसके शरीर से अलग नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार राष्ट्ररूपी शरीर से विद्यार्थी रूपी आत्मा को जुदा नहीं किया जा सकता।
विद्यार्थी के ऊपर अपने राष्ट्र तथा मातृभूमि के बड़े ही उपकार हैं। वह इन उपकारों से उऋण तभी हो सकता है, जब वह अपने देश के प्रति अटूट निष्ठा बनाए रखे तथा अपनी मातृभूमि को श्रद्धा भरी नजरों से देखे।
जिस राष्ट्र को अंग्रेजों की कैद से स्वतन्त्र कराने में हमारे अनेक राष्ट्रवीरों ने अपनी जान की कुर्बानियाँ दीं-उन कुर्बानियों अथवा आहूतियों को सदैव याद रखना विद्यार्थी का कर्तव्य है।
अपने राष्ट्र की सेवा करते हुए प्राणों का बलिदान करने में ही मानव-जीवन की सार्थकता है। इस तथ्य को विद्यार्थियों को भली-भाँति समझ लेना चाहिए-
“शहीद की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा।‘
उपर्युक्त दोनों पंक्तियों में राष्ट्र के ऊपर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावना है। यही मनुष्य-जीवन का सबसे बड़ा त्याग है।
स्वामी रामतीर्थ ने देश प्रेम से विभोर होकर कहा था-“भारतभूमि मेरा शरीर है। कन्याकुमारी मेरा पाँव है, हिमाचल मेरा सिर है। मेरे बालों में श्री गंगाजी बहती हैं। विंध्याचल मेरी कमर का कमर-बंद है। कुरुमण्डल मेरी दाहिनी जंघा और मालाबार मेरी बाई जंघा है। अपने राष्ट्र की पूर्व और पश्चिम दिशाएँ मेरी भुजाएँ हैं।”
राष्ट्र-प्रेम का जितना सुन्दर चित्र स्वामी सामतीर्थ ने अंकित किया है, इससे सुन्दर चित्र भला और कौनसा हो सकता है?
विद्यार्थी काल में उदित हुआ देश प्रेम सच्चा राष्ट्र प्रेम माना जाता है। क्योंकि उस प्रेम से विद्यार्थी के कोमल और सात्त्विक विचार जुड़े हुए होते हैं और जुड़ी हुई होती हैं उसकी उदार भावनाएँ। विद्यार्थी काल में मनुष्य के अन्दर छल-कपट नहीं होता, इस कारण विद्यार्थी का देश प्रेम सच्चा और निःस्वार्थ होता है।
माखनलाल चतुर्वेदी कवि देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर कहते हैं
“मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ में देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक॥”
पुष्प के रूप में कवि के यह अन्तरमन की अभिलाषा है। राष्ट्रप्रेम से अभिभूत होकर वह भी राष्ट्रप्रेम में कुर्बान हुए शहीदों की पथ धूलि में मिल जाना चाहता है, ताकि उसका मानव-जीवन सार्थक हो सके।
रामधारी सिंह दिनकरजी ने राष्ट्र प्रेम पर न्योछावर हुए शहीदों को याद करते हुए कहा-
जो अगणित लघुदीप हमारे। तूफानों में एक किनारे।
जल-जलकर बुझ गए एकदिन। माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल॥”
विद्यार्थियों को देशप्रेम की शिक्षा प्रकृति के उपकरणों से लेनी चाहिए। नदियाँ जिस देश में कलकल करके बहती हैं, उस देश के वासियों को अपना निर्मल स्वच्छ नीर पिलाती हैं; हरे-भरे फलदार वृक्ष जिस देश में उगते हैं, उस देश के लोगों को अपने ताजे मधुर फल देकर उनकी भूख मिटाया करते हैं।
विद्यार्थी भी इस राष्ट्र (भारतवर्ष) के विशाल वृक्ष की डाल और फल-फूल-पत्ते की तरह हैं। अपने निःस्वार्थ त्याग एवं सेवाभावना से उन्हें अपने देशवासियों के हित में लगना चाहिए। राष्ट्र के लोगों की सेवा-सहायता करना सबसे बड़ा राष्ट्र प्रेम है। यदि आस-पड़ोस में कोई बीमार व्यक्ति है तो विद्यार्थी को चाहिए कि वह उसे अस्पताल ले जाकर दिखाए अथवा किसी डॉक्टर को वहाँ बुलाकर लाए तथा रोगी की दवाई गोली का प्रबन्ध करे; यदि कोई अंधा, लँगड़ा या कमजोर व्यक्ति किसी काम में मदद चाहता है तो विद्यार्थी को उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। देशवासियों की दुःख-तकलीफों में काम आना तथा मुसीबत पड़ने पर उनकी मदद करना ही सच्चा देश प्रेम है।
देश प्रेम की पूर्ति केवल देशप्रेम के गीत गाने से नहीं होती। आजकल नेता लोग देशभक्ति के कितने राग अलापते हैं, कितने भाषण एवं व्याख्यान देते हैं लेकिन सच्ची राष्ट्रभक्ति से वे कोसों दूर होते हैं। लाखों करोड़ों रुपये की सरकारी रकम को हजम करने वाले, गलत तरीकों से काले धन को एकत्रित करने वाले भ्रष्ट राजनेता तथा प्रशासनिक लोग यदि ‘देशप्रेम-देशप्रेम’ चिल्लाते हैं तो यह उनके मुख से शोभा नहीं देता। विद्यार्थियों को देशप्रेम के लुभावने ‘मन्त्र’ देकर वे उन्हें अपनी कुटिल राजनीतिक योजनाओं में शामिल करना चाहते हैं तथा विद्यार्थियों को अपने लाभ के लिए उपयोग करना चाहते हैं।
ऐसे बनावटी एवं स्वार्थपूर्ण ‘देश-प्रेम’ से विद्यार्थियों को अलग हो जाना चाहिए क्योंकि ऐसे देशप्रेम से केवल नेताओं का ही लाभ होता है, बाकी सबकी हानि ही हानि है। देश गड्ढे में जाता है तो जाए, नेताओं को इसकी क्या परवाह? वे तो संसद भवन में भी रटन्त तोते की तरह देशप्रेम का राग अलापते रहते हैं तथा मौका पड़ने पर एक दूसरे के ऊपर कीचड़ उछालने तथा मेज-कुर्सी एवं माइक का हत्था पटकने में भी कसर नहीं छोड़ते।
सच्चा देश प्रेमी व्यक्ति राजनीति की दलदल से कोसों दूर रहता है। वह सारे प्रपंचों से दूर रहकर मानव मात्र की सेवा करने में अपने जीवन को धन्य समझता है, निरन्तर देशवासियों की दुःख-तकलीफें दूर करने में लगा रहता है।
विद्यार्थियों के लिए सच्चे देश प्रेम का श्रेष्ठ उदाहरण यही होगा कि वे एकाग्रमन से तथा मेहनत से अपनी पढ़ाई करें तथा वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, जज, अध्यापक, सैनिक आदि किसी भी प्रकार के पेशे को अपनाकर देशवासियों की तथा दीन-दुखियों की सेवा करें।