विद्यार्थी और फैशन
Vidyarthi aur Fashion
Essay No. 1
भूमिका- शब्दकोष में फैशन का अर्थ है ढंग या शैली, परन्तु लोक व्यवहार में फैशन का अभिप्राय है-परिधान-शैली अर्थात वस्त्र पहनने की कला। व्यक्ति अपने आपको आकर्षक दिखाने के लिए फैशन करता है। गोरा या काला, दुर्बल या मोटा, नवयुवक एवं बूढ़ा अपने-अपने ढंग से वस्त्र पहनते हैं। व्यक्ति अपने शरीर की बनावट, रग-रूप और आयु के अनुसार फैशन करता है। यहाँ तक फैशन के विषय में कोई विशेष विवाद नहीं है। विद्यार्थी हो या अध्यापक, लडका हो या लड़की, पुरुष हो या स्त्री सभी को ऐसा फैशन करने का जन्मसिद्ध अधिकार है। पान पर विवाद- फैशन के विषय में विवाद तब उठताहै जब हम इसका गढ़ अर्थ लेते हैं- बनाव सिंगार। फैशन के इस गूढ़ अर्थ से अर्थात बनाव शिंगार से दुल्हा-दुल्हन का तो सम्बन्ध हो सकता है किन्तु छात्र और छात्राओं का फैशन से कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए। छात्र और छात्राएं अभी विद्यार्थी काल में हैं और विद्यार्थी शब्द का अर्थ है विद्या को चाहने वाले। यदि विद्या की चाहत रखने वाला विद्यार्थी विद्या के स्थान पर फैशन को चाहने लगेगा तो वे अपने लक्ष्य से कोसों दूर चले जाते हैं। विद्यार्थी को सीमा में रहकर ही फैशन करना चाहिए।
प्राचीनकाल में फैशन की भावना- प्राचीन काल में विद्यार्थियों में बनावटी शिंगार की इच्छा इतनी प्रबल नहीं थी जितनी आज के युग के विद्यार्थियों में विद्यमान है। प्राचीन काल में विद्यार्थी सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखते थे। उनमें फैशन से ज्यादा विद्या की चाह थी। आज के छात्र-छात्राओं में फैशन बल दिखने की इच्छा अधिक तीव्र है। अधिकांश छात्र गली-मुहल्ले में जिस प्रकार का फैशन देखते हैं, वैसे ही वस्त्रों की मांग वे अपने माता-पिता से करते हैं। आज कल विद्यार्थी अपनेआपको दूसरों से अधिक सुन्दर दिखाना चाहता है। इस प्रकार बनाव-शिंगार में वह अपना इतना समय व्यय कहते हैं कि दूसरे महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए उनके पास न तो समय ही रहता है और न रूचि, न धन।
सौन्दर्य के लिए धन की जरूरत- जब विद्यार्थियों के सुन्दर दिखने की भावना प्रबल होती है तो उनमें विलासिता भी बढ़ती है। विलासमय जीवन में धन की अति जरूरत होती है। धन प्राप्ति के लिए विद्यार्थी चोरी करतेहैं। जुआ जैसी बुरी आदतों में विद्यार्थी घिर जाता है। वह सिनेमा के अभिनेता बनने के स्वपन लेता है तथा उनके पद चिन्हों पर चलने की कोशिश करता है। परिवार तथा गुरूजनों से उसके स्बन्ध टूट जाते हैं। वे अपने मार्ग से भटक कर फिल्मों में रूचि अधिक रखते हैं। फैशन केयुग में फैशन के पीछे भागने वाले विद्यार्थी कभी भी अपने जीवन में सफल नहीं होते।
सिनेमा का कुप्रभाव- आज सिनेमा हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन चुका है। छात्र और छात्राओं पर सिनेमा का गहरा प्रभाव पड़ा है। अमीर परिवार तो फिल्मी ढंग के वस्त्र पहन सकते हैं और अपने बच्चों को भी फैशनेबल कपड़े पहना सकते हैं। लेकिन गरीब परिवार के विद्यार्थियों के लिए ऐसा कर पाना सम्भव नहीं है। फिर एक-दूसरे से प्रभावित होकर विद्यार्थियों में फैशन की होड़ बढ़ती जा रही है। टी० वी० ने हमारे जीवन के लिए अनेक समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं। फैशनपरस्ती इन्हीं फिल्मों की ही देन है।
फैशन के दुष्परिणाम- आज विद्यार्थियों ने बढ़ती हुई फैशन की प्रवृति न केवल उनके माता-पिता के लिए भी बल्कि समाज के लिए भी घातक सिद्ध हो रही है। निम्न मध्य वर्गीय परिवार अपने बच्चों की मांगों की पूर्ति नहीं कर पाते। जिसके फलस्वरूप उनके बेटे-बेटियां घर में असहज वातावरण उत्पन्न कर देते हैं। फैशन के पीछे भागने वाले विद्यार्थी सिनेमा हालों में जाकर अशोभनीय व्यवहार दिखाते हैं, गली, मुहल्लों में हल्ला मचाते हैं और हिसांत्मक गतिविधियों में भाग लेते हैं। फैशनपरस्ती विद्यार्थी जीवन के विकास में निश्चय से एक वाधा का काम करती है। जो विद्यार्थी केवल फैशनपरस्तीके पीछे भागते हैं वे अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान नहीं दे पाते। इस प्रकार ऐसे विद्यार्थी अपने माता-पिता की आशाओं पर खरा नहीं उतरते।
उपसंहार- सारांश में हम यह कह सकते हैं कि फैशन विद्यार्थियों के लिए उचित नहीं है। विद्यार्थियों का आदर्श सादा जीवन और उच्च विचार होना चाहिए। वर्तमान युग में विद्यार्थी जीवन के आदर्श लुप्त हो गए हैं। आज का विद्यार्थी फैशन के प्रदर्शन तथा प्रभुत्व-प्रदर्शन के लिए सभी प्रकार के अनैतिक कार्य करता है। फैशन के चक्कर में पड कर विद्यार्थी को अपना जीवन बरबाद नहीं करना चाहिए। उसका लक्ष्य तो उचित शिक्षा प्राप्त करके अपने भावी जीवन का निर्माण ही होना चाहिए। जो विद्यार्थी फैशन की ओर ध्यान न देकर पढ़ाई की ओर ध्यान देते हैं. वे निश्चय से अपने जीवन में सफल होते हैं। पैशन करने वाले समय बीत जाने पर पश्चाताप करते हैं।
विद्यार्थी जीवन और फैशन
Vidyarthi Jeevan Aur Fashion
Essay No. 2
फैशन का अर्थ है-रहन-सहन के नए प्रकार। आज सब ओर फैशन का बोलबाला है। जिसे देखो, वही रंगबिरंगे और नए किस्म के कपड़े पहने नजर आता है। दूरदर्शन पर आने वाले सीरियलों और नई फिल्मों ने फैशन की दुनिया में मानो आग लगा दी है। सीरियलों की नायिकाएँ मानो सोती भी फैशन में हैं। उनके डिजाइनर कपड़े देखकर दर्शकों की आँखें चुंधिया जाती हैं। यह सब देखकर विद्यार्थी भी फैशन के चक्कर में पड़ गए हैं। उनका ध्यान नित नए कपड़ों, हेयर स्टाइल तथा मोबाइल बदलने में लगने लगा है। इस कारण उनका ध्यान पढ़ाई से हट जाता है। जिसे एक बार फैशन का चस्का लगा, वह अध्ययन और परिश्रम से कन्नी काटने लगता है। देखने में आया है कि अपने शौक पूरे करने के लिए कई विद्यार्थी चोरी, राहजनी और धोखाधड़ी जैसे आपराधिक कार्य करने लगते हैं। इन दुष्प्रभावों से बचने का सर्वोत्तम उपाय है संयम। माता-पिता की कड़ी नजर और गुरुजनों के उपदेशों से ही यह समस्या दूर हो सकती