विद्यार्थी और अनुशासन
Vidyarthi aur Anushasan
विद्यार्थी का शाब्दिक अर्थ ‘विद्याया : अर्थी’ अर्थात विद्या की अभिलाषा रखने वाला है। वह व्यक्ति जो अपने मन में विद्या पाने की इच्छा या अभिलाषा रखता है तथा इस अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए सतत रूप से प्रयत्न भी करता है-वह ‘विद्यार्थी’ कहलाता है।
‘अनुशासन’ का अर्थ (अनु+ शासन) शासन या नियन्त्रण मानना तथा अनुसार चलना होता है। अनुशासन का मतलब अपनी उच्छृखल चेष्टाओं को उसके काबू में रखना है।
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बड़ा ही महत्त्व है। जो विद्यार्थी अनुशासित रहता है, वही सबकी प्रशंसा का पात्र बन जाता है। जब विद्यार्थी पूरी तरह अच्छी तरह से कर पाएगा। अनुशासित होकर रहेगा तभी वह अपना शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास बच्चों को अनुशासन सिखाने में उनके माता-पिता तथा शिक्षकगणों का बड़ा ही योगदान रहता है। अनुशासन के कारण विद्यार्थियों में शील, संयम, नम्रता तथा ज्ञान-पिपासा की वृत्ति जाग्रत बनी रहती है।
विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की भावना कई कारणों से जन्म लेती है। सबसे बड़ा कारण तो टेलीविजन का दुष्प्रभाव ही है। बचपन से ही व्यक्ति टी. वी. की फिल्में, सीरियल, गीत, चित्रहार आदि देखना सीख जाता है। किशोर अवस्था तक आते-आते वह फिल्मों में प्रदर्शित अश्लीलता के हाव-भाव, मारधाड़ एवं उत्तेजना के दृश्यों का अर्थ समझने लगता है। टी.वी. सीरियल की देखा-देखी। वह भी बड़ों की बात की अवज्ञा करने लगता है तथा उसके अन्दर कामचोरी की आदत पैदा हो जाती है। जब उसे किसी बात को लेकर गुस्सा आता है तो वह घर की चीजों की तोड़-फोड़ करने लगता है तथा चीजों को उठा-उठाकर पटकता है। उसे पारिवारिक अनुशासन से चिढ़ हो जाती है।
कुछ लड़के तो गलत संगत में पड़कर इतने बिगड़ जाते हैं कि अपने माता-पिता को भी गाली देने लगते हैं। इस प्रकार विद्यार्थियों को अनुशासनहीनता का पाठ सिखाने वाला पहला गुरु टी.वी. का रोग है तो दूसरे गुरु उसके गलत यार-दोस्त तथा दुर्व्यसन हैं। दुर्व्यसनों की आदत विद्यार्थी को खराब संग से मिलती है।
टेलीविजन के कई चैनलों पर आजकल ऐसे दूषित प्रकार के कार्यक्रम दिखालाए जा रहे हैं, जिनसे विद्यार्थी प्रेम और वासना, विध्वंस और विद्रोह की गलत बातें सीख लेता है। इससे उसमें उच्छृखलता एवं स्वच्छन्दता की भावना पैदा होने लगती है। बड़ों की छत्रछाया को वह अपने ऊपर बोझ समझने लगता है। तथा परिवार (माता-पिता तथा बड़े भाई-बहिन) का अंकुश उससे सहन नहीं होता।
आज के बुद्धिवादी युग में विद्यार्थी अहमवादी होता जा रहा है। वह अपना व्यर्थ महत्त्व बतलाकर सम्मान पाना चाहता है। जब महत्त्वाकांक्षी छात्रों को अपने गुरुजनों से स्नेह, प्रशंसा तथा सम्मान नहीं मिलता, तब उनका हृदय विद्रोह कर उठता है। विद्रोहवश ही विद्यार्थी हड़ताल और संघर्ष करने पर उतारू हो जाते हैं।
जब बच्चों को अपने माता-पिता से उचित संरक्षण तथा सही मार्गदर्शन नहीं मिलता, तब ही उनके अन्दर श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण नहीं हो पाता। फलस्वरूप ये बालक शिक्षण संस्थाओं में दाखिला लेकर एकदम से उच्छृखल एवं मर्यादाहीन हो जाते हैं। जीवन की सही दिशा न मिल पाने के कारण इनका शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। ऐसे विद्यार्थियों का मन-मस्तिष्क प्रायः विक्षुब्ध ही रहता है।
अनुशासनहीन व्यक्ति दिमागी रूप से चिड़चिड़ा, क्रोधी तथा अभिमानी प्रकृति का होता है।
आज के युग का विद्यार्थी अनुशासन के तले अधिक देर तक नहीं रहना चाहता। वह अपने माता-पिता तथा गुरुजनों के प्रति कर्तव्यों को त्यागकर केवल अपने अधिकारों की माँग करता रहता है।
आज का विद्यार्थी अपनी आकांक्षाओं की तृप्ति तथा अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष पर भी उतर आया है। वह जलसों का आयोजन करने लगा है, नेतागिरी करके जुलूस निकालने लगा है। जनता के बीच जोरदार शब्दों में भाषण देकर राजनीतिक पार्टियों को ललकारने लगा है, चौराहों पर तथा सार्वजनिक स्थानों पर लगी नेताओं की प्रतिमाओं को तोड़ने लगा है। इसके अलावा आधुनिक विद्यार्थी अकारण ही कभी किसी छात्र या व्यक्ति के साथ मार पिटाई करने लगता है। रोष में आकर आगजनी व पथराव की घटनाओं का नेतृत्व करने लगा है, दुकान एवं मकानों को लूटकर सरकारी सम्पत्ति को भी नुकसान पहुँचाने लगा है।
इस तरह के अशोभनीय कार्य आज के विद्यार्थी की अनुशासनहीनता के पर्याय बन गये हैं।
लगता है, आज का विद्यार्थी सच्चे अर्थों में विद्या का अर्थी या विद्या पाने का सच्चा अभिलाषी नहीं, बल्कि वह विद्या की अरथी निकालने पर तुला हुआ है।
अनुशासन के स्थान पर रोष भावना, स्वार्थ, उच्छृखलता और अनास्था एवं अनादर की भावना छात्रों के अन्दर घर करती जा रही है। पढ़ाई में विद्यार्थी का मन एकाग्रचित्त होने के बजाय उसके मन में समाज के विध्वंस तथा दूसरों को हानि पहुँचाने के ख्याल आने लगे हैं तथा इसी उधेड़बुन में विद्यार्थी का दिमाग खोखला होता जा रहा है। सादगी की जगह विद्यार्थी के जीवन में फैशनपरस्ती और सात्त्विकता की जगह तामसिकता और नशाखोरी अपना स्थान बनाती जा रही है।
जिस तरह से एक पौराणिक दैत्य भस्मासुर ने अनुशासनहीन होकर अपने आपको ही खत्म कर डाला था, उसी तरह आज का विद्यार्थी अनुशासनहीन होकर अपने आपको खत्म करने पर तुला हुआ है। मानसिक कुण्ठा, रोष, अभिमान, क्रोध एवं विघटनकारी प्रवृत्तियों के कारण जहाँ उसके अध्ययन-कार्य में बाधा पड़ती है, वहीं वह मानसिक दुःख, अशान्ति एवं असन्तोष का भी शिकार हो जाता है। पढ़ाई के समय उसका मन अनुशासनहीन होकर और कहीं लगा रहता है। यही कारण है कि ऐसे विद्यार्थी को अपने पाठ ठीक तरह से याद नहीं हो पाते तथा परीक्षाओं के दिनों में उसे बड़ी दिक्कत महसूस होती है।
विद्यार्थियों को अनुशासनहीन बनाने में राजनेताओं का भी कम हाथ नहीं है। देश के प्रसिद्ध नेता लोग अपने-अपने राजनीतिक लाभ अथवा स्वार्थ के लिए विद्यार्थी की युवाशक्ति का गलत उपयोग करते हैं। वे विद्यार्थियों को अपने उत्तेजनापूर्ण भाषणों से भड़काकर उन्हें तोड़फोड़, हड़ताल और हिंसा के रास्ते पर खड़ा कर देते हैं तथा खुद राजनीति की रोटी सेकने में लगे रहते हैं।
समय रहते हुए विद्यार्थियों को इन राजनेताओं की बुरी नीतियों तथा कुचक्र से परिचित हो जाना चाहिए तथा अपने जीवन को अनुशासन, संयम तथा विद्यार्थी-जीवन की मर्यादाओं की रक्षा में लगाना चाहिए।