वसन्त पंचमी
Vasant Panchmi
‘वसन्त पंचमी का त्योहार वसन्त ऋतु के आने की पूर्व सूचना देता है। यह त्योहार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।
वसन्त ऋतु चैत्र तथा वैसाख के महीने में आती है। लेकिन ‘वसन्त पंचमी त्योहार माघ के महीने में आकर हमें इस बात की सूचना दे जाता है कि वसन्त ऋतु आने वाली है, उमंग उत्साह से परिपूर्ण ऋतु आने वाली है।
कहते हैं कि जब ऋतुराज वसन्त का अभिषेक और अभिनन्दन हुआ था तब शेष समस्त ऋतुओं ने मिलकर अपनी आयु के आठ-आठ दिन वसन्त को समर्पित कर दिए थे। कुल ऋतुएँ छः मानी जाती हैं। वसन्त ऋतु को छोड़कर शेष पाँचों ऋतुओं ने मिलकर इस प्रकार 40 दिन वसन्त को अर्पित किए थे। इसी कारण वसन्त पंचमी, वसन्त ऋतु के चालीस दिन पूर्व ही प्रतिवर्ष आती है।
वसन्ती पंचमी को ‘श्रीपंचमी’ भी कहा जाता है। इस दिन घर-घर में पीले रंग के चावल बनाए जाते हैं तथा पीले रंग के वस्त्र भी पहने जाते हैं। वासन्ती हलुआ और केसरिया रंग की खीर भी खाई जाती है। जगह-जगह नृत्य-संगीत और खेल-कूद के आयोजन होते हैं। स्कूल कॉलेजों में वार्षिकोत्सव मनाया जाता है।
इस दिन विद्यालय के छात्र-छात्राएँ मिलकर विद्या की देवी माँ सरस्वती का पूजन करते हैं तथा उनसे बुद्धि, ज्ञान, विद्या, प्रतिभा आदि माँगते हैं।
‘वसन्त पंचमी विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का जन्म-दिवस है। इस दिन भक्ति भाव से सरस्वती माँ का पूजन किया जाता है।
सरस्वती माँ जीवन के गहरे रहस्यों को समझने की सूक्ष्मदृष्टि या ज्ञान दृष्टि प्रदान करती हैं तथा अपने ज्ञान के प्रकाश से सारे संसार को रौशन करती।
जो बच्चे पढ़ाई में मेहनत करते हैं, अपना होमवर्क समय पर पूरा करने हैं। तथा अपनी परीक्षाओं की लगन से तैयारी करते हैं–सरस्वती माँ सदैव उनको मदद देती रहती हैं। कहते हैं कि जहाँ सरस्वती होती है वहाँ लक्ष्मी भी अपने आप आ जाती है।
हमारे देश में सरस्वती माँ के अनेक सच्चे उपासक हुए हैं लेकिन वे धन के पीछे कभी नहीं भागे, धन स्वतः ही उनके पुरुषार्थ के पीछे हाथ जोडका चलता रहा है। लेकिन उन्होंने धन की जरा भी परवाह नहीं की। धन उन्हें न भी मिला तब भी उन्होंने जीवन का संतोष और धीरज नहीं छोड़ा।
वसन्त पंचमी के दिन हमें सरस्वती माँ के जन्म-दिवस को बहुत ही धूम-धाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए। माँ शारदा के धवल वस्त्र जीवन की सादगी, पवित्रता, उज्जवलता के सूचक हैं, उनका वाहन हंस मनुष्य के विवेक का प्रतीक है। जिस तरह हंस के अन्दर नीर-क्षीर विवेक होता है, वह कंकड पत्थर को त्याग कर केवल मोती ही चुगता है, उसी तरह हमें भी अपने विवेक
और बुद्धि को हमेशा जाग्रत रखना चाहिए तथा समाज से बुराइयाँ ग्रहण न करके हर एक मानव से केवल अच्छाइयाँ तथा गुण ही ग्रहण करने चाहिए।
सरस्वती माँ वीणा-वादिनी हैं। उनकी वीणा ज्ञान के मधुर स्वरों की प्रतीक हैं जिस तरह माँ शारदा हमेशा वीणा मधुर स्वरों में बजाया करती है, उसी तरह हमको भी अपनी बुद्धि (रूपी वीणा) द्वारा ज्ञान का मनन-चिन्तन करना चाहिए। तथा सबके प्रति शुभ भावों का गुणगान करना चाहिए।
वसन्त-पंचमी के ही दिन हकीकत राय नायक एक किशोर बालक का धर्म के लिए बलिदान हुआ था। उन दिनों मुस्लिम राजा का भारत पर शासन था। हकीकत राय सियालकोट में पैदा हुआ था। आजकल तो यह भू-भाग पाकिस्तान देश में आता है परन्तु पहले सियालकोट भारत वर्ष का अभिन्न अंग था।
पहले हिन्दू छात्रों को भी मुस्लिम पाठशालाओं में पढ़ने की इजाजत थी। बालक हकीकत राय जिस मदरसे में पढ़ता था, एक दिन कुछ मुस्लिम छात्रों के साथ उसका झगड़ा हो गया। हकीकत राय झगड़ा नहीं चाहता था इसलिए उसने ‘दुर्गा भवानी की कसम खाकर’ वह झगड़ा समाप्त करना चाहा। मुस्लिम छात्र दुर्गा माँ को गाली देने लगे। गुस्से में हकीकत ने भी ‘फातिमा’ को गाली। दी। अब तो यह मामला मदरसे के संचालक के हाथों पहुँचते-पहुँचते राजा तक पहुँच गया।
राजा की नजर में ‘फातिमा बेगम’ को गाली देना मुस्लिम धर्म को गाली देना था इसलिए उसने इस जुर्म के दण्ड के रूप में आज्ञा दी कि या तो बालक मुस्लिम धर्म स्वीकार कर ले अथवा मृत्युदण्ड को अपना ले।
हकीकत राय को अपने धर्म पर प्राण-न्योछावर करने के संस्कार अपने माता-पिता से मिले थे। उसने मुस्लिम धर्म स्वीकार न किया इसलिए उसे मृत्युदण्ड दिया गया। लाहौर में रावी नदी के तट पर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। बाद में उसी स्थान पर हकीकत राय की समाधि बनाई गयी।
इस प्रकार वसन्त पंचमी के त्योहार को वीर हकीकत राम के बलिदान । दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है इस दिन पतंगबाजी भी की जाती है।
वसन्त पंचमी के दिन को ‘नवस्येष्टि’ या ‘नवान्नेष्टि के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन नई फसल घर में आती है तथा उसे देवी-देवताओं को अर्पित करने के बाद ही ग्रहण किया जाता है।