वर्तमान शिक्षा पद्धति के दोष
Vartman Shiksha Paditi ke Dosh
भूमिका- अनपढ़ व्यक्ति आँखें होते हुए भी अन्धे के समान हैं। शिक्षा मनुष्य के लिए विश्व को देखने का ही साधन नहीं है, अपितु समझने, विचारने और परखने का भी साधन है। शिक्षा द्वारा मनुष्य परिवार समाज, देश और विश्व के प्रति अपने फों को समझता है, अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों को पहचानता है। शिक्षा के बिना हम साहित्य, कला अथवा संगीत की प्राप्ति तथा उससे आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते। अनपढ़ व्यक्ति आँखें होते हुए भी अन्धे की भान्ति हैं। अपने देशवासियों को शिक्षा प्रदान करना शासन व्यवस्था का सबसे आवश्यक कर्त्तव्य होता है। शिक्षा के इसी ढंग को अथवा विधि को शिक्षा प्रणाली कहते हैं। हमारे देश की प्राचीन शिक्षा प्रणाली और नवीन शिक्षा प्रणाली में बड़ा अन्तर आ चुका है। वास्तव में वर्तमान शिक्षा प्रणाली दोष पूर्ण हो चुकी है।
दोष- हमने वर्तमान शिक्षा प्रणाली अग्रेजों से ग्रहण की है। जब अंग्रेज़ भारत पर राज करते थे उस समय उन्हें उस समय उनका सम्पूर्ण राज-कार्य अंग्रेज़ी में चलता था, इसलिए उन्होंने अंग्रेज़ी का विषय भारतीयों के लिए अनिवार्य कर दिया। इस शिक्षा उद्देश्य केवल नौकरी पाना था। आज शिक्षा प्राप्त करके विद्यार्थी नौकरी प्राप्त करने के लिए निकल पड़ता है। यही कारण है कि आज वे विद्यार्थी जिनकी कृषि के लिए काफी जमीन है वे भी नौकरी पाना चाहते हैं। यही कारण है कि बेकारी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
आज हम जो शिक्षा प्रणाली अपनाए हुए हैं उनका सम्बन्ध केवल किताबी ज्ञान है, उसका समाज से कोई सम्बन्ध नहीं है। पाठ्य पुस्तकों में छपी हुई बातों को याद रखना ही हम ज्ञान समझ बैठे हैं। शिक्षा के द्वारा मानव जीवन के संघर्षों का सामना करना सीखताहै। जीवन की कठिनाईयों को कैसे हल करना है- हम शिक्षा द्वारा ही सीखते हैं। आज का युग विज्ञान का युग है। इस वैज्ञानिक युग में विज्ञान को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है। इस वैज्ञानिक युग में विज्ञान को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है। आज इंजीनियर और डाक्टर बनकर धन कमाना ही उद्देश्य रह गया है। यही हम शिक्षा का उद्देश्य समझते हैं। विज्ञान जैसे कठिन विषय को वही लोग पढ़ सकते हैं जो प्राईवेट रूप में ट्यूशन पढ़ने के लिए धन व्यय कर सकते हैं।
सभी बच्चों की रुचि और बुद्धि समान नहीं होती। परन्तु आज की शिक्षा प्रणाली में सभीको एक जैसी शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है और तीव्र बुद्धि और कमजोर बद्धि वाले विद्यार्थियों को एक ही ढंग से और एक ही समय म पढ़ाया जाता है। हमारा दुर्भाग्य है कि आज शिक्षा का क्षेत्र भी व्यवसाय का क्षेत्र बन गया है।
आज की शिक्षा प्रणाली में चरित्र विकास के लिए कोई अवसर नहीं मिलता। पढ़ा लिखा युवक, माता-पिता, परिवार और समाज या देश के प्रति स्वयं को उतरदायी नहीं मानता है अपित विनाशकारी प्रवृति को अपनाता है। वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के साधन अपनाता है। धन की लालसा बढ़ती जा रही है।
जीवन के आधुनिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए वह नैतिक और अनैतिक साधनों को अपनाता है। आधानिक शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि विद्यार्थी का लक्षय केवल डिग्री प्राप्त करना है। इस डिग्री को प्राप्त करने के लिए हम अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं।
नयी शिक्षा प्रणाली का स्वरूप- सही शिक्षा प्रणाली को अपनाने के लिए वर्तमान प्रणाली के दोषों को दूर करना होगा और वर्तमान युग की आवश्यकता के अनुसार ही बदलना होगा। आज की प्रणाली में तकनीकी शिक्षा की ओर अधिक ध्यान देना होगा। तकनीकी शिक्षा के द्वारा युवक अपना काम आरम्भ कर सकते हैं। आज की शिक्षा को ऐसा बनाना होगा कि नवयुवक अपने पाँव पर आप खड़ा हो सके। इससे बेरोजगारी को लगाम लगेगी।
लडकियों के लिए शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन लाना अनिवार्य है। नारी के गुण, स्वभाव और प्रकृति को देखते हुए ही उसका शिक्षा का स्वरूप निर्धारित किया जाना चाहिए। आज के युग में प्रतिभाशाली युवतियाँ किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं अतः उनकी प्रतिभा के अनकल ही शिक्षा होनी चाहिए। आज के युग में सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम अच्छे मानव बने। मानव में क्षमा, दया, करुणा, उदारता, त्या ग, शान्ति और संतोष जैसी मानवीय गुणों का विकास हो।
उपसंहार- शिक्षा प्रणाली में उच्च और निम्न वर्ग, धनी और निर्धन वर्ग को मिटाना आवश्यक है। बदलते हुए युग के अनुसार ही शिक्षा प्रणाली का स्वरूप बदलना चाहिए। अनेक विषयों को पाठ्यक्रम में जोड़ कर उसे बोझिल नहीं बनाना चाहिए। अत: बच्चों की प्रतिभा रुचि और मानसिकता को परखकर ही विषयों का निधारण किया जाना आवश्यक है।