वर्षा ऋतु
Varsha Ritu
ग्रीष्म ऋतु में गमी के प्रकोप से आदमी का जीना कठिन हो जाता है। नदी-तालाबों, कुओं और झीलों का जल सूखने लगता है। सूर्य की प्रचण्ड किरणें जल को सुखा-सुखा कर जल की बड़ी हानि करती हैं।
राजस्थान जैसे शुष्क इलाकों (रगिस्तानी क्षेत्रों) में तो स्थिति और भी ज्यादा खराब हो जाती है। पेड़-पौधों तथा मनुष्यों को जीवन का महत्त्वपूर्ण जल पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हो पाता। बड़ी दूर-दूर से पैदल चलकर महिलाओं को पानी लाना पड़ता है।
गर्मी की ऋतु में आदमी के तन-बदन तपे हुए तथा शुष्क होते हैं। इधर धरती भी प्यासी होती है और प्यासी धरती, प्यासे मनुष्य की प्यास मिटाने के लिए ही ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा ऋतु आती है। आषाढ़ का महीना लगते ही धरती पर बूंदा-बाँदी शुरू हो जाती है। आसमान में काले-काले बादलों का समूह इकट्ठा हो जाता है और दे सब बादल आकाश में शोर करते हुए, सूरज के प्रकाश को ढंकते हुए तथा भयानक रूप से बिजली का गर्जन-तर्जन करते हुए बरसने लगते हैं।
लेकिन यह जरूरी नहीं होता कि जो बादल तेज रूप से गरजते हों-वे आवश्यक रूप से बरसे ही। कभी कई-कई बादल बिना बरसे ही चले जाते है। और कभी कभी जव आसमान साफ होता है, वर्षा होने का कोई चिह्न मौजूद नहीं होता, तब यकायक न जाने कहाँ से सफेद, काले बादल आकर आसमान में इकट्टे हो जाते हैं और बिना गड़गड़ाहट के ही बरसने लगते हैं।
जब बादलों की परतों का आपस में तेज घर्षण होता है तभी उनमें गड़गड़ाहट पन्न होती है तथा बिजली चमकती हुई दिखाई देती है क्योंकि वे बादल विद्युत आवेशित होते हैं।
आकाश में चमकने वाली बिजली हमारे घरों की बिजली की तरह ही खतरनाक होती है। कभी-कभी पृथ्वी पर विद्युत-पात भी हो जाता है और इससे कुछ लोग मर जाते हैं, मकान ध्वस्त हो जाते हैं।
इस तरह की आशंका से बचने के लिए कुछ लोग अपने नए भव बहुमंजिला इमारतों के ऊपर एक तड़ितयन्त्र लगवा लेते हैं। यह यन्त्र आकाश बिजली के आदेश को भूमि में स्थानान्तरित कर देता है और इस प्रकार से बिजली गिरने से इमारत या किसी व्यक्ति को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँच पाता।
वर्षा ऋतु में दादुर (मेढ़क), मोर, पपीहे और कोयल आदि जीव खबर बोलते हैं। चातक पक्षी तो बरसात की पहली बूंद पानी को बड़ा ही उतावला रहा। है। ग्रीष्म ऋतु के ताप से जो पेड़-पौधे सूखने लगे थे, वे फिर से हरे-भरे होने लगते हैं।
कविवर गोस्वामी तुलसीदासजी ने वर्षा ऋतु के विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से मानवजाति को निम्न शब्दों में शिक्षा दी हैः-
“दामिनी दमक रही घन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं।।
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ।।
बूंद अघात स हहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सहें जैसे।।
छुद्र नदी भरि चली तोराई। जस थोरेहु धन खल इतराई।।
भूमिपरत भी ढाबर पानी। जनु जीवहिं माया लपटानी।।
सिमिट सिमिट जल भरहिं तलाबा। जिमि सद्गुन सज्जन पहिं पावा।।
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई । होई अचल जिमि जिव हरि पाई।।”
अर्थात् आकाश में बादलों के बीच बिजली चमक रही है। इसका तात्पर्य । यह है कि वर्षा ऋतु आ गई है। जिस प्रकार बादलों के बीच चमकती हुई बिजली । एक क्षण भी स्थिर नहीं रह पाती, उसी प्रकार कपट बुद्धि वाले मनुष्य के वचन एक क्षण के लिए भी स्थिर नहीं रह पाते। वह बोलता है तो बोलता ही चला जाता है परन्तु दुष्टप्रवृत्ति के मनुष्य के वचनों में कोई सार तत्त्व (सत्य) नहीं होता।
गोस्वामी तुलसीदास जी आगे कहते हैं कि जिस प्रकार पानी से भरे हुए बादल पृथ्वी के निकट बरसने लगते हैं और इस प्रकार बरसकर अपनी नम्रता प्रकट करते हैं, उसी प्रकार अच्छी विद्या और सद्बुद्धि को पाए हुए ज्ञानी लोग संसार के सब मनुष्यों के प्रति नम्रशील होते हैं।
आगे तुलसी जी कहते हैं कि जिस प्रकार वर्षा ऋतु की बूंदों के प्रहार या आघात को पर्वत आसानी से सह लेता है उसी प्रकार सज्जन पुरुष या संत स्वभाव के व्यक्ति बुरे मनुष्य के कड़वे वचनों को सह लेते हैं।
बरसात के मौसम पानी भर जाने से छोटी-छोटी नदियाँ उसी प्रकार इतराती चलती है जिस जिस प्रकार कि थोड़ा-बहुत धन पाकर कपटी लोग अभिमानपूर्वक चला करते हैं।
वर्षा ऋतु में पथ्वी पर पानी बरसकर पृथ्वी इस प्रकार जल से डूब जाती है जिस प्रकार मनुष्य माया के चक्कर में फंसकर अपना विवेक भूल जाता है। बरसात पड़ने पर जल चारों ओर से सिमटता हुआ जलाशय (तालाब) में उसी प्रकार एकत्रित हो जाता है, जिस प्रकार कि अच्छे गुण अपने आप सज्जन स्वभाव वाले व्यक्ति के निकट आकर समा जाते हैं।
अन्त में तुलसी कवि कहते हैं कि नदी का चंचल जल सागर में पहुँचकर उसी प्रकार अचल या स्थिर हो जाता है, जिस प्रकार ईश्वर को प्राप्त हुए व्यक्ति का मन हमेशा के लिए स्थिर हो जाता है और (नदी की तरह) संसार के मायावी आकर्षणों में इधर-उधर नहीं भटकता।
वर्षा ऋतु के सम्बन्ध में तुलसीदासजी का यह रूपक बड़ा ही सुन्दर और श्रेष्ठ है। सज्जन पुरुषों की इन पंक्तियों से बढ़कर तुलना और कैसे की जा सकती है?
वर्षा ऋतु में सभी जगह पानी की कमी तो नहीं रहती परन्तु अनेक प्रकार की भिन्न-भिन्न बीमारियाँ भी इस ऋतु में जन्म लेने लगती हैं। बरसात की कीचड़ और गन्दगी के कारण चारों ओर मक्खी और मच्छर पैदा हो जाते हैं। मक्खियाँ खाद्य पदार्थों पर बैठकर उन्हें दूषित करने लगती हैं, मच्छर रात के समय सोते हुए मनुष्य को काटना शुरू कर देते हैं। इससे हैजा, बुखार, मलेरिया, टाइफाइड, डायरिया, डीसेण्ट्री तथा कालेरा जैसे रोग आदमी को हो जाते हैं।
वर्षा ऋतु में बच्चों को बरसात के पानी में भीगने में बड़ा आनन्द आता है। इस ऋतु में किशोरियाँ और युवतियाँ आम और नीम जैसे वृक्षों पर झूला डालकर झूलने लगती हैं और सावन के गीत गाने लगती हैं। झूला झूलने के लिए विवाहित युवतियाँ ससुराल से अपने पीहर (माता-पिता के घर) आ जाती हैं और रक्षाबंधन आदि पर्वो को हर्षोल्लास के साथ मनाती हैं।
जब काफी दिनों तक आसमान से बादल नहीं बरसते तो बच्चे गाने लगते हैं:–
इन्दर राजा पानी दो, पानी दो गुड़धानी दो।”
वर्षा ऋतु में भुनी हुई मक्का या कुकडी खाना विशेष अच्छा लगता है। कभी-कभी तो इस वर्षा ऋतु में तो इस ऋतु में इतना पानी बरसता है कि नदियों और शहरों में बाढ़े आ जाती है । गांव के गांव बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं ।