वन-महोत्सव – वृक्षों के त्योहार
Van Mahotsav – Vriksho ka Tyohar
निबंध नंबर :- 01
जुलाई के महीने में वन-महोत्सव आता है। वन-महोत्सव एक कौ मी त्योहार है। वह 1 जुलाई से 7 जुलाई तक मनाया जाता है।
वन-महोत्सव के दिन पटाखे नहीं चलाये जाते। इस दिन झूले नहीं झुले जाते। इस दिन वन लगाए जाते हैं। इस दिन पेड़-पौधे बोए जाते हैं।
पेड़ लगाने को हमारे पुरखे पुण्य मानते थे। पेड़ और बेटे में वे कोई भेद न समझते थे । बेटा बड़ा होकर केवल मां-बाप को सुख देता है। पेड़ बडा होकर दुनियाभर को सुख देता है। बेटा बड़ा होकर दो हाथों की कमाई केवल अपने मां-बाप को खिलाता है। पेड़ बड़ा होकर हज़ारों हाथों से दुनियाभर के लिए फल लुटाता है। बेटे की छाया में केवल मां-बाप सहारा पाते हैं। पेड़ की छाया में हज़ारों मुसाफिर आराम पाते हैं। हमारे पुरखों ने पेड़ लगाए थे। हम उन पेड़ों के फल खा रहे हैं। अब हम जो पेड़ लगाएंगे, हमारी सन्तान उनके फल खाएगी। हम न रहेंगे तो पेड़ों के रूप में हमारी याद बनी रहेगी। जब तक पेड़ फलते रहेंगे तब तक हमारे पुण्य फलते रहेंगे । इसलिए हम सिर्फ एक पेड़ क्यों लगाएं ? हम भरपूर पेड़ लगाते हैं। हम एक दिन पेड़ क्यों लगाएं ? हम हर साल पेड़ लगाते हैं। हर साल जुलाई के महीने में हम वन महोत्सव मनाते हैं।
एक पेड़ सूख सकता है। इसलिए हम पेड़ों का वन लगाते हैं। एक पेड़ एक ही जगह खड़ा रहता है। इसलिए हम जगह-जगह पेड़ लगाते हैं। एक आदमी कुछ ही पेड़ लगा सकता है। इसलिए हममें से हरएक पेड़ लगाता है। एक-एक पेड़ लगाने से भी सत्तर करोड़ पेड़ लग जाते हैं। एक-एक पेड़ करके एक वन बन जाता है। इस तरह वन-महोत्सव मनाया जाता है।
बिना बेटे के मनुष्य को घर सूना रहता है। बिना पेड़ के मनुष्य की बस्ती सूनी रहती है। बिना बेटे के मनुष्य का कुल उजड़ जाता है। बिना पेड़ों के मनुष्य की बस्ती उजड़ जाती है। सयाने कहते हैं कि जब ज़ोर की बाढ़ आती है तो पेड़ों की जड़े धरती को काटने से बचाती हैं। जब रेत की आंधियां चलती हैं तो पेड़ों को टहनियां धरती को रेगिस्तान होने से बचाती हैं। जब धरती प्यासी होती है तो पेड़ों की हरियाली बरसात को बुलाती है।
पेड़ हमें ईंधन देते हैं। पेड़ हमें कोयला देते हैं। सचमुच पेड़ हमारा बड़ा उपकार करते हैं। इसलिए हमारे पुरखे पेड़ों को देवता मानते थे । इसीलिए हमारे पिता पेडों । की पूजा करते थे । इसीलिए हमारे महापुरुषों ने पेड़ लगाने को बड़ा पुण्य बताया है। इसीलिए पेड़ लगाने के लिए वन-महोत्सव मनाया जाता है।
चलो, वन-महोत्सव के दिन हम प्रतिज्ञा करें कि लोगों ने भूल से जो वन काट डाले हैं। हम उनसे भी सुन्दर वन बनाएंगे। जो धरती बंजर पड़ी है। वहां कीकर लगाकर हम उसे भी उपजाऊ बनाएंगे। जहां रेगिस्तान बढ़ा चला आता है। वहां पेड़ लगाकर हम रेगिस्तान को बढ़ने से रोकेंगे।
हम मैदानों में पेड़ लगाएंगे। हम खाली और बंजर जमीन में पेड़ लगाएंगे। हम ढालदार भूमि में पेड़ लगाएंगे, जहां भूमि कटने का डर है। हम तालाबों के किनारे, सड़कों के किनारे और नहरों के किनारे पेड़ लगाएंगे।
बस्ती में पेड़ लगाएंगे, जहां लोग रहते हैं। मन्दिरों में पेड़ लगाएंगे, जहां हम पूजा करने जाते हैं। पंचायत-घरों में पेड़ लगाएंगे, जहां हम सब मिल कर बैठते हैं। शहर, गांव, स्कूल, अस्पताल, खेत, आंगन सब जगह हम पेड़ लगाएंगे।
पेड़ लगाकर हम अपने बेटे की तरह उनका पालन भी करेंगे ।
निबंध नंबर :- 02
वन महोत्सव
Van Mahotsav
भूमिका- वन महोत्सव का सम्बन्ध वनों से होता है। वनों और प्राणियों का सम्बन्ध बहुत पुराना है। मानव वन सा वनस्पति को बिना नहीं रह सकता, बड़े दुर्भाग्य की बात है कि इन वनों को अन्धाधुन्ध काटा जा रहा है। इस भूल के सुधार के लिए आजाद भारत ने 1952 ई० में वन महोत्सव मनाना आरम्भ किया। गाँवों और शहरों में यह उत्सव अलग-अलग प्रकार के वृक्ष लगाकर मनाया जाता है।
वनों से लाभ- वनों से हमें अनेक लाभ हैं। इस उत्सव को मानव अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु मनाता है। पेड़पौधे हमारे जीवन का अंग हैं। वनों के लगातार कटाव से मानव जाति को अनेक हानियां सहन करनी पड़ी। वनों को कारखानों और नवीन उद्योग आरम्भ करने के लिए काटा गया है। वृक्ष मानव जाति के लिए अनेक प्रकार से लाभदायक है। वृक्षों का सबसे पहला लाभ वातावरण को शुद्ध करना है। कारखानों से निकली हुई विषैली गैस और कार्बन-र्डा-आक्साइड को वे आक्सीजन में बदलते हैं और मानव को जीवन दान देते हैं। कुछ वृक्ष तो बड़ी लाभप्रद गैस छोड़ते हैं। पीपल, बरगद, आँवले के वृक्ष ऐसे हैं जिनकी शास्त्रों में पूजा का उल्लेख आता है। इन वृक्षों को धार्मिक वृक्ष मान कर लोग प्रातः काल में इन पर जल चढ़ाते हैं तथा इनकी पूजा भी करते हैं। हिन्दू समाज में पीपल को काटना पाप माना जाता है।
वनों के लाभ- वनों से हमें अनेक लाभ होते हैं। वर्षा लाने में वृक्षों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। वृक्षों के अभाव में वर्षा कम होती है। वर्षा के अभाव में पृथ्वी में जल का स्तर बहुत नीचे चला जाता है। वृक्षों के अभाव में भूमि की उपरी सतह सूखकर बंजर बन जाती है। वृक्षों के कारण ही वातावरण में नमी आती है। वृक्ष भूमि-कटाव को रोकने का भी कार्य करते हैं। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। यहाँ की कृषि वर्षा और नदियों के जल पर निर्भर है। वर्षा तभी होगी यदि पर्याप्त मात्रा में बन होगें। वन हमें ईंधन व इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं। वनों से हमें अनेक प्रकार के फल व जड़ी-बूटियां मिलती हैं जिनका प्रयोग दवाईयों में होता है। देश के अनेक आदिवासी जड़ी-बूटियों पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वनों से अनेक लोगों को रोज़गार भी मिलता है।
अनुपम सुन्दरता- वृक्षों से हमें अनेक लाभ हैं। इनके साथ-साथ वन हमें अनुपम सौन्दर्य भी देते हैं। वनों में खिले हुए अनेक रंगों के फूल धरती का श्रृंगार करते हैं। वृक्ष मानव जाति को छाया देते हैं। वृक्षों पर अनेक प्राणियों का बसेरा भी होता है। वृक्ष मानव को गर्मी और सर्दी के प्रकोप से बचाते हैं ।वन पशु-पक्षियों के लिए आश्रय स्थल है। पक्षी वृक्षों पर अपने नीड़ बनाकर रहते हैं और वृक्ष इन्हें गर्मी, सर्दी, वर्षा से बचाते हैं। वनों के विकास के बिना पशु, पक्षियों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।
वन संरक्षण की आवश्यकता- आज हमारे देश में केवल 23% वन रह गए हैं। वृक्षों की अन्धाधुंध कटाई ही इसका मुख्य कारण है। जंगलों का सन्तुलन बनाए रखने के लिए 10% और अधिक वनों की आवश्यकता है। उद्योंगों के विकास के साथ-साथ वन भी कटते जा रहे हैं। वनों के बचाव के लिए प्रत्येक भारतवासी के योगदान की आवश्यकता है। हमें अपने घरों, मुहल्लों, गलियों और सड़कों के पास, पार्कों में, स्कूलों में, कॉलजों में अधिक से अधिक वृक्ष लगाने होंगे। सरकार का यह फर्ज बनता है कि जो भूमि बंजर पड़ी है या खाली है उस पर वृक्ष लगाए जाएं। यद्यपि हमारी सरकार इस दिशा की ओर ध्यान दे रही है लेकिन यह पुण्य काम तभी सफल होगा। यदि देश का प्रत्येक व्यक्ति कम-से-कम एक पेड़ अवश्य लगाएं और उसकी उचित देखभाल करें।
उपसंहार- वन महोत्सव हमें वृक्षों की उपयोगिता की शिक्षा प्रदान करता है इससे हम विदित होता है कि वक्ष हमारी अमल्य सम्पति हैं। इनके अभाव में मानव जीवन तो क्या प्राणी जीवन भी प्रभावित होता है। मानव जीवन तथा प्राणी समाज को बचाने के लिए तथा उसमें समुचित विकास करने हेतु और वातावरण को सन्तुलित रखने के लिए पेड-पौधों को लगाना अति आवश्यक है। वन महोत्सव की धारणा समूचे संसार में फैलती जा रही है। विशेष कर औद्योगिक राष्ट की दिशा में अनेक प्रयत्न कर रहे हैं। वे भी चाहते हैं कि उनके क्षेत्र में अधिकाधिक वक्षारोपण हो ताकि पर्यावरण में सन्तुलन स्थापित रह सके।