उदारीकरण का जनता पर प्रभाव
Udarikaran ka Janata par Prabhav
एक राष्ट्र के अस्तित्व के लिए नागरिकों का होना बहुत अनिवार्य है। बिना नागरिकों के किसी भी राष्ट्र का कोई भी औचित्य नहीं हो सकता। अतः एक राष्ट्र से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने नागरिकों के हितों को ध्यान में रखकर अपनी राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय नीतियों का गठन करे। जिससे उनका पूरा विकास संभव हो सके। केवल भौतिक अथवा आर्थिक हितों को ही ध्यान में नहीं रखा जाये। 1990 में मानव विकास की प्रथम रिपोर्ट में यह बात उजागर हुई थी तथा ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ की रिपोर्ट ने भी उदारीकरण के संदर्भ में अपनी ऐसी ही राय व्यक्त की थी। वैसे तो अनेक देशों ने विकास किया लेकिन कुछ देश उससे अछूते भी रह गये हैं। ‘यू.एन.डी.पी.’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में राष्ट्र की प्रगति अथवा विकास का पैमाना सकल राष्ट्रीय उत्पाद के बजाय मानव विकास सूचकांक को माना गया है। जिसकी तीन कसौटियाँ हैं- शिक्षा, प्रति व्यक्ति आय और दीर्घायु।
विकास का लाभ सभी वर्ग के लोगों को समान रूप से मिल सके, इसके लिए प्रभावी शासन प्रणाली होनी चाहिए। उसके लिए सही संचालन की आवश्यकता होती है।
प्राचीन समय से ही उदारीकरण की प्रक्रिया अस्तित्व में रही है। ‘वास्को डी गामा’, ‘कोलंबस’, ‘क्रिस्टोफर मैंगलम’ आदि ने विश्व को एकरूपता दी। जिस से देश किसी न किसी रूप में एक दूसरे के सम्पर्क में आए और व्यापार आदि का दौर शुरू हो गया। जिससे बाजार व्यवस्था का विकास हुआ।
आज अनेक एशियाई देश नए बाजार व्यवसाय को अपनाकर विदेशी मुद्रा आकर्षित करने की होड़ में लगे हैं। यही नहीं सांस्कृतिक व सामाजिक स्तरों पर भी विश्व के लोगों मे एकीकरण हो रहा है। किसी एक देश का फैशन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि दूसरे देश में भी देखी जा सकती है।
उदारीकरण के व्यापक प्रभाव हमारे देश में देखे गए हैं। कम जनसंख्या वाले राज्यों जैसे- पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु आदि प्रगति कर रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, उडीसा और राजस्थान आदि राज्य पिछड़ रहे हैं। दूसरी तरफ उदारीकरण का लाभ गरीब लोगों तक नहीं पहुंचता है समस्याएँ वहीं की वहीं हैं। शिक्षा में भी अधिक वृद्धि नहीं हो पायी है। बिजली, जल की समस्याएँ अभी भी बनी हुई है। स्वास्थ्य की स्थिति तो बहुत ही गम्भीर हो रही है। अधिकांश लोगों के पास रहने के लिए मकान तक नहीं है। सभी समस्याएँ आर्थिक पहलू के ही उदाहरण हैं।
इस नयी उदारीकरण की व्यवस्था से उद्योगपतियों व व्यापारियों को सुविधाएँ मिली हैं। इसका कारण यह है कि हमारी आर्थिक नीतियाँ पूर्णत: त्रुटि रहित नहीं हैं। बैकिंग प्रणाली में अभी भी कमियाँ हैं। जिसका लाभ सभी ग्राहकों को समान रूप से नहीं मिल पाता है। ऋण पर ब्याज दर अधिक है और जमा राशि पर ब्याज दर कम है। दशकों के सुधारों के बाद भी सभी गाँवों तक सड़क और बिजली की व्यवस्था नहीं हो पायी है।
आज समय की माँग है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास भी किए जाने चाहिए। इसी के साथ सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर पंचायती राज को अधिक प्रभावी व चुस्त बनाना चाहिए।
अधिकतर 5 से 24 वर्ष आयु समूह के लोग स्कूलों में दाखिला लेते हैं। नौकरशाही और निम्न उत्पादक सार्वजनिक उपक्रमों में कामगारों और लोक सेवकों की संख्या में कमी होनी चाहिए। अनेक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ने के बजाय घटने लगे हैं। भारत में तो रोजगार को अस्तित्व का मुद्दा माना जाता है न कि आर्थिक। क्योंकि आर्थिक रूप से पिछड़े होने के कारण रोजगार लोगों के लिए सबसे ऊपर आता है। विकास कार्य की दिशा इस तरह निर्धारित की जानी चाहिए जिससे युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकें।
उसके लिए बाजार व्यवस्था का अधिक विकास होना चाहिए साथ ही उनका संचालन व प्रबंधन उचित रूप में होना चाहिए।
उदारीकरण का उद्देश्य नैतिकता होना चाहिए, जिसमें लोगों के हितों का ध्यान रखा जाए। विकास पर पूर्ण बल देना चाहिए ताकि गरीबों की दर में ह्रास हो। गरीब व अमीर के हितों को समान रूप से देखें और दोनों का विकास समान स्तर पर रहे। इसमें असमानता कम होनी चाहिए। इस विकास की अवधि में अधिक लोगों की भागीदारी होनी चाहिए। आधुनिकीकरण की दौड़ में पर्यावरण के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए और अंत में समाज में शाति एवं समृद्धि का समावेश हो यह उदारीकरण का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
भूमण्डलीकरण के इस दौर में समाज के सभी वर्ग के लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह लाभ पहुंचाने के लिए संचार माध्यमों का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि देश में रह रहे दूर-दराज के लोग इसका भरपूर लाभ उठा सकें और एकीकरण की परिकल्पना मजबूत हो जाए। इस प्रतिस्पर्धा के माहौल में यह भी ध्यान रखा जाए कि समाज का प्रत्येक वर्ग-बच्चे, युवा, बूढ़े और बीमार किसी के भी अधिकारों की अनदेखी न हो।
अतः एक सुव्यवस्थित और समान उदारीकरण के लिए कुशल प्रशासन की आवश्यकता है।