Hindi Essay on “Tiyan”, “तीआं”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

तीआं

Tiyan 

तीआं, तीज, तृतीया अथवा ‘हरितालिका तीज पंजाब का एक अन्य त्योहार है। जो अगस्त के आरंभ में को मनाया जाता है। वर्षा-ऋतु आरंभ होने पर होती है तथा ग्रीष्म ऋतु समाप्ति पर लोग घरों से बाहर निकलकर वृक्षों के नीचे किंचितृ विश्राम करने के लिए अथवा वर्षा में नहाने के लिए चल पड़ते हैं। मौसम में आ रहे परिवर्तन पर हर्ष मनाने के लिए प्रत्येक नवयौवना तीज के त्यौहार की पल- प्रतिपल प्रतीक्षा करती है।

“रल आओ माइयो नी सभे, तीआं खेडण जाइए,

हुण आ गया।    सावण नी पींगां पिप्पल पाइए

कू- कू करदी नी माइयो कोयल हंझू डोले पपीहा,

वेखो नी भैड़ा पिया-पिया बोले॥

लै पैलां पांदे नी बागीं मोरां शोर मचाया।

खिड़-खिड़ फुल्लां ने सानूं माहिया याद कराया।”

नव-विवाहिताएं अपनी सखियों के साथ तीज मनाने पीहर चली जाती हैं। नवयुवतियां नई पोशाकें पहनकर तथा बांहों में रंग-बिरंगी चूड़ियां पहनकर वृक्षों पर लटके झूले झूलने के लिए टोलियां बनाकर, घरों से निकलकर चल पड़ती हैं। गांव से बाहर किसी खुले स्थान पर एकत्रित होकर गिद्दा-नृत्य के साथ-साथ लोक- गीतों की छटा बिखेर देती हैं।

उनके गीतों में बहुधा सास-ससुर, देवर तथा ननद के अलग-अलग स्वभावों का चित्रण सुनने को मिलता है-

“सुणों नी वेहड़े वालियों, मैं बोला तां कुपत्ती सस

जो मेरे कपड़े वण्डे, मैंनू दित्ती झग्गी सस

जो मेरी सोना वंडिया, मैंनू दित्ती रत्ती सस

जो मेरी कोके वण्डे, मैनू दित्ती रस्सी सस

जो मेरी भाण्डे वण्डे, मैनू दित्ती कड़छी सस

जो मेरी कमरे वण्डे, मैनू दित्ती परछत्ती

सुणों नी वेहड़े वालियों, मैं बोलां तां कुपत्ती सस।

अथवा

“शावा रंग माहिए दा, नी ढोल सिपहिए दा

इक महिण्डी सस नी बुरी, हाय !

सस नी बुरी  जेहड़ी बेजी अखवाए ,

बेजी आख्या ना जाए, मुंहों बुड्डी-ए निकल जाए!

इक महिण्डी ननाण नी बुरी हाय !

ननाण नी बुरी, जिड़ी भैण जी अखवाए

भैण आख्या ना जाए, मुंहों डैण निकल जाए! “

तीज का त्योहार वर्षा-ऋतु की छटा का त्योहार होता है। वर्षा भी वह जिससे ठण्ड नहीं लगती बल्कि गर्मी तथा घुटन से मुक्ति दिलाने वाली वर्षा में क्रीड़ा करने और कपड़े भिगोने को मन करता है। भिन्न-भिन्न धर्मो की, मिल-जुल कर झूला-झूलती नवयुवतियां इस वर्षा के आनंद से किस प्रकार कोरी रह सकती हैं।

“आया सावण, दिल परचावण झड़ी लग गई भारी

झूटे लैंदी मरियम भिज गई नाले राम प्यारी

कुड़ती हरों दी भिज गई वरी दी, किशनी दी फुलकारी

हरनामी दी सुथ्यण भिज गई, बहुते गोटे वाली

जीनत दीयां भिज गइयां मिडिड्यां, गिणती विच पूरियों चाली

भज के कुडियां पिण्ड जा वड़ियां

मींह ने घेर लइयां काली

पींग झूटदी सस्सी डिग पई

नूरी नाभे वाली शामो कुड़ी दी झांजर गुम गई

राम रक्खी ने भाली भिज गई लाजो वे बहुते हरखां वाली

सावण दे बद्दला वे हीर भिऊंदी सिआलां वाली ।”

तीज से एक दिन पहले हाथ-पैरों पर मेंहदी लगाने का रिवाज़ है। क्या वृद्धाएं, क्या नव यौवनाएं तथा क्या बालाएं, सब अपने-अपने हाथ-पैरों का मेंहिदी से श्रृंगार करती हैं। कोई तीली वगैरह लेकर बड़े ध्यानपूर्वक हाथों पर ऐसे चिह्न चित्रित किए जाते हैं कि मीनाकारी के कई सुन्दर नमूने उघड़ आते हैं। गिद्दे के नृत्य-समूह आखिर मेहिंदी की चर्चा से विहीन कैसे रह सकते हैं।

“मेहिंदी-मेहिंदी सभ जग कहिंदा मैं वी आख दियां मेहिंदी

बागां दे विच् सस्ती विकदी हटिट्या दे विच् मंहगी

घोट- घाट के हत्थां नू ला लई फोलक बण-बण लेहिंदी

मैहिंदी शगुनां दी धोतयां कदे ना लेहिंदी ।”

तीज का त्योहार केवल नाचने-गाने का त्योहार ही नहीं है, अपितु इस दिन घर में तरह-तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं। घर-घर खीर व पूड़े विशेषकर पकाए जाते हैं। हलुवे तथा पूरियों के थाल सजाए जाते हैं।

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