शिक्षक-दिवस
Teachers Day
शिक्षक-दिवस प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को मनाया जाता है।
इस दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। डॉ. राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध दार्शनिक, संस्कृत के विद्वान तथा राजनीति के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने सन् 1962 से लेकर 1967 तक भारत के राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया था।
राष्ट्रपति का पदभार सँभालने से पहले डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा-जगत से जुड़े हुए थे। पहले वे मद्रास के प्रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे। सन् 1921 ई. से लेकर 1936 ई. तक उन्होंने कलकत्ता यूनीवर्सिटी का दर्शनशास्त्र का ‘किंग जार्ज पंचम’ नामक प्रोफेसर पद सँभाला था। इसके बाद वे तीन वर्ष तक वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में धर्म और दर्शन के प्रोफेसर रहे। तत्पश्चात लगभग नौ वर्ष तक अर्थात् सन् 1939 ई. से 1948 ई. तक उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद को सुशोभित किया था।
जब डॉ. राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने तो उनके शुभचिन्तकों एक उनके प्रशंसकों न धूमधाम के सहित उनका जन्म दिन मनाने की बात सोची। इस आशय से सब राष्ट्रपतिजी के पास पहुँचे। सीधे-सादे तथा सादगी सम्पन्न राष्ट्रपतिजी सार्वजनिक रूप से अपना जन्मदिन मनाने के पक्ष में नहीं थे परन्तु प्रशंसकों के अधिक जोर देने पर उन्होंने अपने जन्म दिन अर्थात् पाँच सितम्बर के दिवस को ‘शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की सहमति बताई।
डॉ. एस. राधाकृष्णन ने सारी जिन्दगी विद्यार्थियों को पढ़ाने, उन्हें जीवन की उचित दिशा दिखाने का कार्य किया था। वे शिक्षक के पद को श्रद्धा और गौरव की दृष्टि से देखते थे और चाहते थे कि उनके जन्म-दिन की तिथि को भारत के योग्य शिक्षकों को सम्मानित किया जाए तथा उन्हें पुस्कार भी दिए जाएँ ताकि अन्य शिक्षकों को भी शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम करने की प्रेरणा मिले।
पाँच सितम्बर को हमारे देश में भारत सरकार की ओर से ‘शिक्षक दिवस’ या ‘अध्यापक दिवस’ या ‘टीचर्स डे’ मनाया जाता है। यह दिन शिक्षकों को गति प्रदान करने वाला दिन है। इन दिन शिक्षकों द्वारा किए गए कार्यों का मूल्यांकन करके सरकार की ओर से उन्हें सम्मानित किया जाता है।
‘शिक्षक-दिवस’ हमारे समाज के योग्य शिक्षकों के गौरव की याद दिलाता है।
हमारे देश में शिक्षक-दिवस’ मनाने की परिपाटी काफी पुरानी है। आषाढ मास की पूर्णिमा को हमारे देश में ‘गुरु पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा भी ‘शिक्षक-दिवस’ की तरह ही महत्त्व का दिन है।
भारतवर्ष के प्राचीन काल में ऋषियों के गुरुकुल हुआ करते थे। उन गुरुकुलों में विद्यार्थियों को वेदशास्त्रों तथा अन्य कई विषयों की शिक्षा दी जाती थी। गुरुपूर्णिमा का दिन अपने गुरुजनों अथवा शिक्षकों का सम्मान करने का दिन होता था। उस दिन गुरुकुल के छात्र अपने गुरुजी के लिए कोई-न-कोई दक्षिणा ले जाते थे।
शिक्षक किसी भी राष्ट्र के निर्माता तथा उस राष्ट्र की संस्कृति के रक्षक व पोषक हुआ करते हैं। वे अपने छात्र-छात्राओं में अच्छी बातों के संस्कार डालते हैं तथा उन्हें उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाते हुए उनके अन्दर राष्ट्र-प्रेम के भाव जाग्रत करते हैं।
शिक्षक विद्यार्थियों को भले-बुरे की समझ प्रदान करके उनके ज्ञान का तृतीय नेत्र खोलते हैं। उनके मन का अज्ञान अंधकार नष्ट करते हैं।
इटली के प्रसिद्ध उपन्यासकार रूफिनी का मत है-“शिक्षक एक मोमबत्ती की तरह है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देती है।”
शिक्षक हमारे समाज का सच्चा पथ प्रदर्शक होते हैं। उपनिषदों में शिक्षक या आचार्य को ‘देवता’ की तरह माना है। जस तरह देवी-देवता मानव-मात्र का कल्याण किया करते हैं; उसी तरह शिक्षक भी समाज का हित किया करते हैं।
योग्य शिक्षक बच्चों को केवल अक्षर ज्ञान ही नहीं कराते, बल्कि वे मानव जीवन के बहुत से महत्त्वपूर्ण मूल्यों का ज्ञान अपने छात्र-छात्राओं का कराते हैं।
‘शिक्षक-दिवस’ हमें बताता है कि हमें अपने समाज के शिक्षकों तथा गुरुजना का आदर करना चाहिए तथा साथ ही वे अध्यापकों को उनके कर्तव्यों की याद भी दिलाता है।
‘शिक्षक-दिवस’ आने से पहले राज्य सरकारें अपने राज्य के विभिन्न गाँव तथा शहरों के योग्य, कर्मठ एवं समर्पित शिक्षकों का चुनाव करती हैं। वे विशिष्ट शिक्षकों के नाम केन्द्र सरकार को भेजती हैं। केन्द्र सरकार का ‘मानव संसाधन विकास मन्त्रालय’ राज्य सरकारों से आए हुए विभिन्न शिक्षकों के नामों में से चुनाव करता है और इस प्रकार उम चुने हुए शिक्षकों को पाँच सितम्बर अर्थात् शिक्षक-दिवस के दिन सम्मानित किया जाता है।
शिक्षक-दिवस पर प्राथमिक, माध्यामिक तथा उच्चमाध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों का ही सम्मान किया जाता है-महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा अन्य । तकनीकी शिक्षण संस्थाओं के शिक्षकों का नहीं।