स्वतंत्रता का महत्त्व
Swatantrata ka Mahatva
निबंध नंबर :- 01
पराधीन व्यक्ति कभी सपने में भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। यदि पराधीनता सबसे बड़ा दुख है तो स्वतंत्रता | सबसे बड़ा सख। हितोपदेश में तो यहाँ तक कहा गया है कि यदि परतंत्र व्यक्ति जीवित है, तो फिर मत कौन है। कहने का भाव यह है कि परतंत्र व्यक्ति मरे हुए व्यक्ति के समान है। स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। मनुष्य को छोड पश भी स्वतंत्र रहना चाहता है। स्वतंत्र देश ही उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है, क्योंकि उसे सोचने, बोलने तथा हर प्रकार के कार्य करने की स्वतंत्रता होती है, लेकिन भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि उसने 200 साल तक पराधीनता का दुख भोगा। इसलिए पराधीन देश की औद्योगिक, वैज्ञानिक, वैचारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति रुक गयी। पराधीन व्यक्ति स्वयं निर्णय नहीं ले पाता। उसका सर्वांगीण विकास रुक जाता है। पराधीन व्यक्ति अकर्मण्य हो। जाता है, क्योंकि उसमें आत्मविश्वास खत्म हो जाता है तथा मनुष्य की सृजनात्मक क्षमता भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। वियोगी हरि ने भी पराधीनता को सबसे अधिक दुखमय माना है
पराधीन जे जन नहीं, स्वर्ग नरक ता हेत।
पराधीन जे जन, नहीं स्वर्ग-नरक ता हेत।।
निबंध नंबर :- 02
स्वतंत्रता का महत्व
Swatantra ka Mahatva
स्वतंत्रता का महत्व तो वही व्यक्ति जान सकता है, जो गुलाम हो या कैद में हो। जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था और हम गुलाम थे तब हमें हर काम के लिए अंग्रेजों की अनुमति लेनी पड़ती थी। हम मर्जी से आजादी से नहीं जी सकते थे। वो गुलामी का ही दौर अंग्रेजों ने अफ्रीका में गाँधीजी को ट्रेन के फर्स्ट क्लास के डिब्बे से दिया था। अंग्रेज़ अपने समक्ष भारतीयों को तुच्छ समझते थे। वे भारती को हमेशा ‘काला आदमी’ (ब्लैक मैन) कहते थे।
गलामी के समय में प्रत्येक भारतीय ने इतना अपमान और पीटा है. जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। अंग्रेज़ बात-बात पर भारतीय पर कोडे बरसाते थे, उन्हें कारागार में डाल देते थे, काला पानी (अण्डमान-निकोबार) भेज देते थे और सरेआम पेड़ से लटकाकर फाँसी पर लटका देते थे। अंग्रेजों के सामने कोई भी अपना मुँह नहीं खोल सकता था, क्योंकि भारतीय के मुँह खोलते ही अंग्रेज़ क्रोध से लाल-पीले हो जाते थे और घटनास्थल पर ही सज़ा दे देते थे।
जलियाँवाला काण्ड अंग्रेजों की क्रूरता का ही एक परिणाम था। तब भारतीयों को स्वतंत्रता के महत्व का अहसास हुआ। उसके बाद उन्होंने अंग्रेज़ों की दासतां से स्वतंत्र होने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया और वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। स्वतंत्रता के महत्व को अनुभव करने के बाद भारत का बच्चा-बच्चा अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा हो गया। अनपढ़ से लेकर सुशिक्षित-सभी स्वतंत्र होने के लिए एकजुट हो गए। फिर तमाम सत्याग्रह और आंदोलन चलाए गए। हजारों-लाखों बच्चे-बूढ़ और युवाओं को जेल जाना पडे और अंग्रेजों की लाठियाँ खानी पड़ा। लाला लाजपतराय अंग्रेजों के लाठी प्रहार से ही शहीद हुए थे।
अंग्रेजों से स्वतंत्र होने के लिए ही भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद और सुखदेव हँसते-हँसते फाँसी पर चढ गए थे। भारत की आजादा का ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत छोडकर जर्मन जाना पड़ा था। वहाँ वे ‘आजाद हिन्द’ फौज बनाकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े थे।
जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल आदि अनेकों देशभक्त कछ त्यागकर भारत को स्वतंत्र कराने में जुट गये थे। तब जाकर अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ और हमें आजादी मिली।
निष्कर्षतः अब हमें स्वतंत्रता का महत्व समझना होगा और इस आजादी को कायम रखने के लिए हमें देशभक्ति से. परी ईमानदारी से म के विकास के लिए कार्य करने होंगे। देश से छुआछूत और दिवादियों को मिटाना होगा तथा अपने देश (भारत) के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए हर वक्त तैयार रहना होगा तभी हम देश की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रख सकेंगे।