स्वार्थ की नींव पर संबंध
Swarth ki Neev par Sambandh
स्वार्थ की नींव पर संबंधों का प्रासाद नहीं बनता। नि:स्वार्थ भाव से सबका ध्यान रखना संबंधों के लिए अनिवार्य है। सम्बन्धों का महत्त्व उनको निभाने में है, भार समझकर ढोने में नहीं। वाणी का माधुर्य वह शक्ति है जो पूरे परिवार को एकसूत्र में बाँध सकती है, वहीं कटुता की कैंची सम्बन्धों को छिन्न-भिन्न भी कर सकती है। अतः सबके साथ मधुर व्यवहार करें। अपने इस व्यवहार को विस्तार दें और इसकी सुगंध परिवार से पड़ोस में भी जाने दें। आपके पड़ोस में तनाव रहेगा तो आप भी अवश्य अशान्त होंगे। सब कुछ बदला जा सकता है, परन्तु पड़ोसी नहीं बदले जा सकते। अत: पड़ोसियों के साथ भी आपका व्यवहार मधुर होना चाहिए। इसी मधुर व्यवहार से सामाजिक समरसता का विकास होगा। कटुता से समरसता नष्ट होती है। कटुता हमारे सामाजिक संबंधों को अल्पायु तो बनाती ही है तथा साथ ही यह बहुत सारी समस्याओं की जननी भी है। साम्प्रदायिक उपद्रव इसी कटुता और विद्वेष की कभी न सूखने वाली विषैली फसल है जिससे देश बुरी तरह प्रभावित होता रहता है। इधर के वर्षों में कट्टरवाद-क्षेत्रवाद तथा जातिगत भेदभाव और गहन हुआ है। इसे शुभ संकेत नहीं समझा जा सकता। किसी भी राष्ट्र की नींव के लिए ये घातक तत्व हैं। स्वतन्त्रता का संघर्ष हम सबने जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर किया। आज भी उसी भावना की नितान्त आवश्यकता है। परिवार से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उन्हीं सम्बन्धों को निर्वाह करना आज भी उतना ही अपरिहार्य है, जितना आजादी से पहले था।