स्वप्न में गोस्वामी तुलसीदास जी से भेंट
Swapan main Goswami Tusidaas ji se Bhent
एक दिन मैंने दूरदर्शन पर रामायण सीरियल देखा। उसमें तथ्यों को जिस प्रकार तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया था उसे लेकर मेरे मन में क्षोभ था। उन्हीं बातों पर सोचते-सोचते रात को जब मैं सोया तो स्वप्न में मेरी भेंट गोस्वामी तुलसीदास से हो गई। मैंने देखा उनके चेहरे पर एक अनोखा तेज था। मैंने सिर झुका कर उन्हें प्रणाम किया। मुझे देख कर गोस्वामी जी ने पूछा बालक दुःखी क्यों हो ? मैंने उनसे पूछा गोस्वामी जी।आपने ‘रामचरितमानस’ की रचना किस उद्देश्य से की थी ? उन्होंने उत्तर दिया, बालक!। मैंने तो ‘मानस’ की रचना ‘स्वान्तः सुखाय’ ही की थी। किसी राजकीय सम्मान या धन। प्राप्ति के लिए नहीं की थी। मेरा उद्देश्य उस युग की हिन्दू जाति को एक करके उसमें। आत्मसम्मान की भावना को उजागर करना था। मुसलमान शासकों के अत्याचारों का सामना करते-करते हिन्दू जाति अपने आप को असहाय समझने लगी थी और घोर निराशा का शिकार हो चुकी थी। साथ ही उनमें वैष्णव, शैव और शाक्त आदि गुट बन गये थे। जो नित्य आपस में अपने-अपने इष्ट के प्रभुत्व को लेकर लड़ा करते थे। हिन्दू परिवार टूट रहे थे। आपसी रिश्तों की मर्यादा विलीन हो रही थी। मैंने श्रीराम के चरित को इस ढंग से प्रस्तुत किया कि हिन्दू भगवान् विष्णु, भगवान् शिव और शक्ति की प्रतीक माता दुर्गा को समान रूप से पूजने लगे। उनका आपसी वैमनस्य दूर हो गया। मैंने कहा। गोस्वामी जी आपकी ये बातें तो ठीक हैं किन्तु आज हिंदुओं ने ‘मानस’ को एक धार्मिक पुस्तक का दर्जा दे दिया है। इस सम्बन्ध में आप हिंदुओं को क्या सन्देश देना चाहते हैं। गोस्वामी जी ने कहा कि हिन्दुओं के पास कोई भी धार्मिक पुस्तक न होने के कारण उन्होंने ऐसा किया है। गीता संस्कृत भाषा में होने पर इतनी लोकप्रिय न हो सकी और ‘मानस’ क्योंकि जनभाषा में लिखा गया है इसलिए लोग इसे धार्मिक पुस्तक मानने लगे हैं। किन्तु हिन्दुओं में जो मानस का पाठ या अखंडपाठ करते हैं वे यह भूल जाते हैं कि यदि उन्होंने मानस को धार्मिक पुस्तक का दर्जा दे ही दिया है तो उस का पाठ भी वैसे ही करें। मैंने देखा है कि बहुत से पाठ करने वाले आधी चौपाई बोलने के बाद जयसियाराम या मंगल भवन अमंगल हारी आदि चौपाई पढ़ते हैं। यदि किसी ने मानस का पाठ करना हो तो वैसे ही पढ़ना चाहिए जैसे लिखा है। अपनी तरफ से बीच में कुछ न जोड़ना चाहिए। मैंने गोस्वामी जी से कहा कि आप की बात सच लगती है क्योंकि गुरु ग्रंथ साहब का पाठ करते समय पाठ करने वाला
‘रहाउ’ शब्द तक का पाठ करता है। गोस्वामी जी! मैं आप का सन्देश मानस का पाठ करने वालों तक अवश्य पहुँचाऊंगा। गोस्वामी मुझे आशीर्वाद दे कर विलुप्त हो गये। सुबह आँख खुलने पर मुझे उनकी बताई सारी बातें याद थीं और मैंने उनके संदेश को राम भक्तों तक पहुँचाने का निश्चय कर लिया।