Hindi Essay on “Swadesh Prem”, “स्वदेश-प्रेम”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

स्वदेश-प्रेम

Swadesh Prem

निबंध नंबर :- 01

  • जन्मभूमि का महत्त्व देश-प्रेम सबसे बढ़कर आज देश-प्रेम की आवश्यकता ।

प्रेम के अनेक रूप हैं-परिवारजनों से प्रेम, मित्रजनों से प्रेम, जातिगत-प्रेम एवं स्वदेश-प्रेम। इनमें । स्वदेश-प्रेम ही सर्वोपरि है। देश की पावन पुण्य-धरा की रक्षा एवं उसके उन्नयन के लिए अपने प्राणों तक को बलिदान कर देने की भावना ही देश-प्रेम है। यह वह पवित्र भावना है, जो मनुष्य को नि:स्वार्थ त्याग और निश्छल प्रेम का पाठ पढ़ाती है और प्रत्येक देशवासी अपने देश के लिए तन-मन-धन समर्पित करने के लिए तत्पर हो जाता है। साहित्यकार सुंदर ग्रंथों की रचना करके, वैज्ञानिक नए.नए आविष्कार करके, गुरु देश की भावी पीढ़ी को देश का भार वहन करने योग्य बनाकर, वास्तुकार अपनी कला से सुंदर भवनों का निर्माण करके, व्यापारी एवं उद्योगपति देश को समृद्ध एवं खुशहाल बनाकर तथा किसान देश की जनता के लिए अन्न उपजाकर देश के विकास में हाथ बंटाते हैं तथा अपने देश-प्रेम को प्रकट करते हैं। हम देश के लिए जो कुछ भी करें उससे हमारे देश की मर्यादा को ठेस न पहुँचे बल्कि उससे ।।हमारे देश के सम्मान में वृधि हो। संकटकाल में अपने देश के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने से भी पीछे न हटें।

 

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।

वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

हम जिस धरती का अन्न-जल ग्रहण करके बड़े हुए हैं, उस पर हमें गर्व होना स्वाभाविक है। वह भमि हमारी माँ है और हम उसकी संतानें । अतः हमारा कर्तव्य है कि प्राणार्पण करके भी उसकी रक्षा करें। आज देश-प्रेम की अति आवश्यकता है क्योंकि देश प्रेम राष्ट्र की उन्नति की आधारशिला  है। इस भावना से ही विश्व-स्तर पर एकता एवं आवश्यकता है विश्व बधुत्व की भावना को बल मिलता है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को पोषित किया था।

निबंध नंबर :- 02

स्वदेश प्रेम

Swadesh Prem 

प्रेम मानव का स्वाभाविक गुण है। प्रेम के अभाव में जीवन सारहीन है। यह प्रेम पारिवारिक-प्रेम, जाति-प्रेम, मित्र के प्रति प्रेम, स्वदेश-प्रेम आदि अनेक रूपों में प्रकट होता है। परंतु इनमें स्वदेश-प्रेम ही सर्वोच्च प्रेम है। जब पशु-पक्षियों को अपने घर से, अपनी मातृभूमि से प्यार होता है, तो भला मानव को अपनी जन्मभूमि और अपने देश से प्रेम क्यों नहीं होगा। मनुष्य तो विधाता की सर्वोत्तम रचना है। संस्कृत के किसी महान कवि ने ठीक ही कहा है-

जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी।”

अर्थात् माता और जन्मभूमि की तुलना में स्वर्ग का सुख भी तुच्छ  है।

प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम होता है। अपना देश चाहे बर्फ से ढका हो, चाहे गर्म रेत से भरा हो, चाहे ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिरा हो, वह सबके लिए प्रिय होता है। वास्तव में अपनी टूटी-फूटी झोंपड़ी में हमें जो सुख मिलता है, वह पराए महलों में भी नहीं मिल सकता। अपनी मातृभूमि के हज़ारों संकट भी परदेस के सुखों से श्रेयस्कर हैं। देश-प्रेम का अर्थ है-देश में रहने वाले जड़-चेतन सभी प्राणियों से प्रेम है। वास्तव में, सच्चे देश-प्रेमी के लिए देश का कण-का और पूज्य होता है।

सच्चा देशप्रेमी वही होता है, जो देश के लिए नि:स्वार्थ भाव बड़े से बड़ा त्याग कर सकता है। सच्च देशभक्त कर्तव्य की भाव. पेरित होता है। वह अपने प्राण हथेली पर रखकर देश की सभा शत्रुओं का मुकाबला करता है। ध्यान रहे, सभी को अपना कार्य की हुए देशहित को सर्वोपरि समझना चाहिए।

जिस देश में हमने जन्म लिया है, उस देश के प्रति हमारे अनंत कर्ता हैं। हमें अपने प्रिय देश के लिए कर्तव्य-पालन और त्याग की भावना रखनी चाहिए। हमारे देश में अनन्य देशभक्त हुए हैं, जिन्होंने हँसते-हँसते देश पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। हमें भी उनके जैसा ही देशभक्त होना चाहिए। भगतसिंह, चन्द्रशेखर, सुखदेव आदि देशभक्तों ने अपने देश के लिए हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को चूम लिया। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, लाला लाजपत राय आदि अनेक देशभक्तों ने अनेकों कष्ठ सहकर और अपने प्राणों का बलिदान करके देश को आजाद करने में अपना योगदान दिया। राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू आदि देश-रत्नों ने जीवन भर देश की सेवा की।

स्वदेश-प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। अतः हमें स्वदेश-प्रेम की भावना के साथ-साथ समग्र मानवता के कल्याण को भी ध्यान में रखना होगा। तभी हमारा जीवन सफल होगा।

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