सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला
Surya Kant Tripathi Nirala
निराला जी की एक विशेषता यह थी कि कविता लिखने से पहले वे उसकी भाव-राशि, विषयवस्तु की चर्चा बहुत कम करते थे। कोई कविता लिखने से पहले उसकी भाष-राशि को कुछ दिन तक अपने मन में संजोए रखते थे, मानो वह उनके मन में धीरे-धीरे रूप और आकार ग्रहण कर रही हो। दूसरों की कविताओं की चर्चा काफी करते थे, अपने पिछले साहित्यिक जीवन की चर्चा भी करते थे. लेकिन उस समय उनके कवि-हृदय में कौन-सी अस्फुट कविता गूंज रही है, उसका पता लगाना कठिन था। उस समय निराला जी के बारे में लोगों को यह आम धारणा थी कि वे अपने आगे किसी को नहीं गिनते। बात किसी हद तक ठीक भी थी। इसलिए यह और भी आश्चर्य की बात थी कि जिन भावों में उनका मन सबसे ज्यादा डूबा रहता था और जिन्हें चुपचाप वे छंद और शब्दों का सुंदर रूप देने में लगे होते थे, उनकी वे बात भी न करते थे। लोग उनकी ऊपरी बात, रहन-सहन, चाल-ढाल से इतना आकर्षित होते थे कि वे बाहर न प्रकट होने वाले कवि निराला को भूल जाते थे।