सिकुड़ते वन
Sikudte Van
सिकुड़ते जा रहे वनों के कारण आज पर्यावरण प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु दुर्लम हो गई है। वनों के स्थान पर बड़े-बड़े उद्योग धंधों की चिमनियों से निकलता धुआँ वातावरण को प्रदूषित करता दृष्टिगोचर होता है। बेमौसमी बरसात तथा ओलों की मार से खलिहानों में पड़ी फसलें चौपट होने लगी हैं तथा देश का मरुस्थल धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। वनों की कटाई के कारण ही पर्वतों से करोड़ों टन मिट्टी नदियों में बह-वह कर विनाश का तांडव करने लगी है। आज जब पानी सर तक पहुंच गया है तो सरकार तथा आम आदमी सोच-सोच कर परेशान होता दिखाई दे रहा है। सबसे गंभीर बात तो यह है कि पृथ्वी के सुरक्षा कवच ओजोन में भी प्रदूषण के कारण दरार पड़ने लगी है। यदि वनों की कटाई इसी तरह चलती रही तो वह दिन दूर नहीं जब यह संसार शनैः शनैः काल के गाल में जाने लगेगा और विनाश का तांडव होगा। आज, आवश्यकता इस बात की है कि वनों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगे। संसार के धनी औद्योगिक देशों ने भी इस समस्या को किसी-न-किसी तरह रोका ही है। इसके लिए सर्वाधिक आवश्यकता है-जनसंख्या नियंत्रण की। जनसंख्या वृद्धि के कारण ही वनों की कटाई करनी पड़ती है। हर्ष का विषय है कि हमारे यहाँ सरकार ने वक्षारोपण को बढावा दिया है। जनमानस भी इस ओर जागत हुआ है। इसके अलावा अनेक समाज-सेवी संस्थाएँ भी वन रक्षण के महत्त्व को जन-जन तक पहुँचाने और बताने का कार्य कर रही हैं।