शिक्षा और नारी जागरण
Siksha aur Nari Jagran
मनुस्मृति में लिखा है-यत्रनार्य स्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता अर्थात् जहाँ नारी की पूजा की जाती है वहाँ देवताओं का निवास होता है। प्राचीन काल में नारी को पुरुष के बराबर दर्जा व सम्मान प्राप्त था। हमारे समाज में बड़ी-बड़ी विदुषी नारियाँ हुई हैं। राम चरितमानस में हम पढ़ते हैं कि श्रीराम ने सीता जी को अनुसूइया जी के पास गृहस्थाश्रम की शिक्षा लेने भेजा था। समय पल्टा भारत में सातवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक अनेक विदेशी आक्रमणों के कारण हमारी आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था जर्जरित हो गई। नाथों ने नारी को उपासना से परे रखा परन्तु बौद्ध सिद्धों ने नारी को भोगविलास की वस्तु माना। केवल जैन मुनियों ने गार्हस्थ्य धर्म के महत्व को स्वीकार करते हुए नारी शिक्षा के महत्त्व को समझा। देश भर में आज भी हजारों की संख्या में जैन साध्वियाँ शिक्षा प्राप्त कर जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। वे साधना, तपस्या और त्याग की साकार प्रतिमाएँ हैं। हमारी फूट का लाभ उठा कर यहाँ मुसलमानों का शासन स्थापित हो गया। समाज द्वारा प्रताड़ित नारी को पर्दे की कैद में बंद कर दिया गया। हिन्दुओं ने अपनी बेटियों के अपहरण के भय से उनका विवाह बचपन में ही करना शुरू कर दिया। समाज में बाल विवाह से बाल विधवाओं की एक नई समस्या पैदा हो गई। कुछ जातियों ने तो लड़की के पैदा होते ही उसे मारना शुरू कर दिया। मुगल शासन केअस्तकाल में नारी की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गई थी। उसे मात्र भोग विलास की वस्तु। समझा जाने लगा उस काल में मीरा बाई पहली क्रान्तिकारी स्त्री हुई जिसने नारी स्वांतत्र्य का झण्डा उठाया। उन्होंने नारी को घर की चार दीवारी से बाहर आने की प्रेरणा दी। 19वीं शताब्दी के अन्त में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की। उन्होंने विधवा विवाह आदि नारी की समस्याओं की ओर समाज का ध्यान दिलाया। अंग्रेजों को उनकी सुधारवादी नीतियाँ माननी पड़ीं। देश स्वतन्त्र हुआ। नारी में भी एक नई जागृति आई। स्वतन्त्रता संग्राम में उसने बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। जिन परिवारों में लड़की को शिक्षा देना पाप समझा जाता था। उनकी लड़कियाँ भी पढ़ने लगीं। नारी ने अपनी वर्षों दवायी प्रतिभा का लोहा मनवाया। सुश्री किरण बेदी जैसी कुशल एवं निधड़क प्रशासक लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त करके आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में तो लड़कियाँ पिछले कई वर्षों से अपनी सफला के झण्डे गाड़ रही है। प्रत्येक परीक्षा परिणाम में लड़कियाँ लड़कों ने बहुत आगे होती हैं। अन्य क्षेत्रों में भी उनका बर्चस्व दिनों दिन बढ़ रहा है। अब हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि पुरुष प्रधान समाज को। लगता है कि कहीं कल को समाज स्त्री प्रधान न हो जाए। राज स्त्रियों का न हो जाए। इसी डर से प्रत्येक दल के राजनीतिज्ञ संसद् में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण के विधेयक के पास नहीं होने दे रहे। किन्तु याद रखिए एक दिन ऐसा आएगा कि स्त्री का राज होगा। आज भले ही हमारा न हो पर कल हमारा जरूर है।