श्री कृष्ण जन्माष्टमी
Shri Krishna Janmashtami
भूमिका- इतिहास साक्षी है कि जब-जब धर्म की हानि हई और अधर्म का प्रसार, तब-तब किसी-न-किसी रूप में कोई दैवी शक्ति अवतरित हुई और धर्म की रक्षा हुई। भारत में अनेक युग पुरुषों तथा अलौकिक महापुरुषों ने समय-समय पर अवतीर्ण होकर यह सिद्ध कर दिया कि सत्य की सदा जीत होती है और अधर्म का विनाश। ऐसे ही महान नामकों में श्री कृष्ण का महत्त्वपूर्ण स्थान है जिनका जन्मअष्टमी के पावन पर्व पर किया जाता है। वैसे तो भारत त्योहारों का देश है जहां प्रत्येक ऋतू में अनेक प्रकार के पर्व आकर हमें भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रेरणा शक्ति पोत कर जाते हैं तथा जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हैं।
पौराणिक सन्दर्भ- आज से लगभग 5000 पूर्व मथुग के अत्याचारी कंस के अत्याचारों से चारों और त्राहि-त्राहि मची हुई थी। जनता दुःखी थी। चारों तरफ अधर्म और अन्याय का बोलवाला था। कंस की बहिन देवकी का विवाहसदेव के साथ हुआ था। कंस ने बहिन को विदा करते समय भविष्यवाणी सुनी- तेरी बहिन का आँठवां पत्र दी तेरा काल बनेगा। आकाशवाणी से भयभीत होकर कंस ने अपनी बहिन तथा बहनोई को कारागार में डाल दिया। कंस ने उनकी सात सन्तानों को जन्म लेते ही मार दिया।
श्री कृष्ण का जन्म- जब अत्याचारों की सीमा बढ़ जाती है तो दैवीय शक्ति का आगमन होता है। धरती को पाप से मुक्त कराने और अधर्म एवं अन्याय का विनाश करने के लिए देवकी की आठवीं सन्तान के रूप में श्री कृष्ण ने जन्म लिया। उसका जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि में हुआ था। दैवी चमत्कार हुआ। बन्दीगृह के पहरेदार सो गए। द्वारा खुल गए। वसुदेव ने कृष्ण को रात्रि में ही यमुना पार कर गोकुल में अपने मित्र नंद के यहाँ पहुँचा दिया और वहाँ से एक कन्या ले आए। प्रातः होते ही कंस को देवकी की आठवीं सन्तान के बारे में समाचार मिला तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। कंस ने कन्या का वध कर दिया। फिर आकाशवाणी हुई कि तेरा काल जन्म ले चुका है और वह गोकुल में पल रहा है। कंस ने कृष्ण के वध के अनेक उपाय किए पर कृष्ण ने राक्षसी पूतना तथा बकासुर जैसे राक्षसों को मारकर यह स्पष्ट कर दिया कि कंस का अन्त भी निकट है।
पर्व का आयोजन- बड़े होकर कृष्ण जी ने कंसका वध किया तथा अपने माता-पिता एवं नाना उग्रसेन को जेल से मुक्त कराया और मथुरा का राज संभाला। इसी घटना की याद में आज भी जन्माष्टमी का पावन पर्व सम्पूर्ण भारत में अत्यन्त खुशियों से मनाया जाता है। इस दिन मन्दिरों की शोभा देखने योग्य होती है। भक्तजन कीर्तन करते हैं तथा स्थान-स्थान पर श्री कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित झाकियाँ निकाली जाती हैं। रात को बारह बजे मन्दिरों में घण्टे बजाए जाते हैं और प्रसाद बांटा जाता है। मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी का पर्व देखने योग्य होता है।
जन्माष्टमी का संदेश- भगवान श्री कृष्ण ने अनेक अत्याचारियों का वध किया तथा न्याय का पक्ष लिया। कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन के मोह को दूर करने के लिए ‘गीता’ का सन्देश दिया।
उपसंहार- हमें प्रत्येक त्यौहार कुछ-न-कुछ शिक्षा देता है। श्री कृष्ण जी के जीवन से हमें शिक्षा मिलती है कि अत्याचारी का विनाश करना चाहिए। अत: हमारा कर्तव्य है कि हम श्री कृष्ण के जन्म से प्रेरणा लेकर सदैव धर्म, न्याय और सत्य का पक्ष लें तथा पाप, अधर्म एवं अत्याचारों का डटकर मुकाबला करें। हमें गीता के उपदेशों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए।