शिक्षक-दिवस पर मेरी भूमिका
Shikshak Diwas par meri bhumika
छात्रों को मार्गदर्शन देने और उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने में शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए भारत के दूसरे राष्ट्रपति श्री राधाकृष्णन के जन्म दिवस 5 सितंबर को शिक्षक-दिवस’ के रूप में समर्पित किया गया। इस दिन शिक्षण संस्थानों में प्रशासनिक व्यवस्था एवं शिक्षकों के कर्तव्यों का निर्वाह विद्यार्थियों द्वारा किया जाता है। मुझे भी शिक्षक दिवस पर अपने विद्यालय में हिंदी के अध्यापक की भूमिका निभाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वस्तुतः उस भूमिका ने अपने शिक्षकों के प्रति मेरे नजरिए को काफी प्रभावित किया। जब मैं शिक्षक बनकर कक्षा में पहुँचा तो विद्यार्थियों का शोरगुल, अनुशासनहीनता एवं पढ़ाई में अरुचि दिखाना जैसी बातें मुझे बेहद उत्तेजित कर रही थीं। तब मैंने जाना कि शिक्षक के अंदर संयम व धैर्य का संगम अत्यावश्यक है, तभी वे अपने विद्यार्थियों को ज्ञान का उजाला दे पाने में सक्षम हो सकते हैं। साथ ही पढ़ना भले ही आसान हो, पर पढ़ाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। कुछ जिज्ञास छात्रों के प्रश्नों ने मुझे समझाया कि बिना पूर्व व पूर्ण तैयारी के शिक्षण कार्य समुचित रूपेण संभव नहीं और हम विद्यार्थी उन्हें न तो ध्यानपूर्वक सुनते हैं न ही उनके दिखाए मार्ग पर चलने का उत्साह दिखाते हैं। पर अब मैं समझ गया था कि आने वाले दिन से एक विद्यार्थी के रूप में मेरे क्या कर्तव्य होंगे। साथ ही मैंने ये भी तय कर डाला कि मेरा लक्ष्य एक शिक्षक बनना ही होगा, ठीक राधाकृष्णन जी की भांति- शिक्षा का स्तर ऊपर उठाना और दीपक की भांति स्वयं जलकर दूसरों को ज्ञान का प्रकाश देना।