शिक्षा में खेलों का महत्व
Shiksha me Khelo ka Mahatva
निबंध नंबर :- 01
संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। कारण यह है कि इसमें चिन्तन की शक्ति है, जिसके द्वारा यह प्राचीनकाल से सब पर शासन करता आया है। आज प्रकृति भी इसके सामने नतमस्तक हो रही है। संसार के सम्पूर्ण ऐश्वर्य के पीछे मानव-मस्तिष्क के विकास का इतिहास गुंथा हुआ है, लेकिन यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि केवल मस्तिष्क का विकास एकांगी है। मस्तिष्क के साथ-साथ शारीरिक शक्ति का भी होना अनिवार्य है। अतः मस्तिष्क के विकास के लिए जहाँ शिक्षा की आवश्यकता है, वहाँ शारीरिक-शक्ति को प्राप्त करने के लिए क्रीड़ा की भी आवश्यकता है। दोनों एक-दूसरे के अभाव में अपूर्ण हैं।
शारीरिक विकास के लिए खेलों के अतिरिक्त अन्य साधन भी हैं प्रातः काल में भ्रमण हारा भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। कुश्ती, कबड्डी, दंगल भ्रमण, दौड़ना आदि भी स्वास्थ्यवर्द्धन के लिए उपयोगी हैं। इसमें शरीर में पुष्ट होता है, पर मनोरंजन आदि से मनुष्य वंचित रहता है। खेलों से मनोरंजन भी पर्याप्त हो जाता है। इससे खिलाड़ी में आत्म-निर्भर होने की भावना का उदय होता है। वह केवल अपने लिए ही नहीं खेलता, बल्कि उसकी हार और जीत पूरी टीम की हार और जीत है। अतः उसमें अपने साथियों के लिए स्नेह तथा मित्रता का विकास होता है। उसमें अपनत्व तथा एकत्व की भावना जन्म लेती है। वह अपने में ही अपनी टोली की प्रगति देखता है। रुचि की भिन्नता के कारण किसी को हाकी, किसी को क्रिकेट और किसी को फुटबाल अच्छा लगता है।
खेलों से अनेक लाभ हैं। इनका जीवन और जाति में विशिष्ट स्थान हैं। शारीरिक और मानसिक स्थिति को कायम रखने के लिए खेलों का बड़ा महत्व है। इस लिए प्राचीनकाल से ही खेलों को महत्त्व दिया गया है। विद्यार्थी आश्रमों में अध्ययन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के खेलों में भी पारंगत होते थे। उस समय के खेल युद्ध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते थे। उस समय धनुर्विद्या की शिक्षा का विशेष वोल-वाला था। खेलों से केवल शरीर ही नहीं, अपितु इससे मस्तिष्क और मन का भी पर्याप्त विकास होता है; क्योंकि पुष्ट और स्वस्थ शरीर में सुन्दर मस्तिष्क का वास होता है. बिना शारीरिक शक्ति के शिक्षा पंगु है। मान लो कि एक विद्यार्थी अध्ययन में बहुत अच्छा है, पर वह शरीर से कमजोर है। उसके लिए किसी भी बाधा का सामना करना सम्भव नहीं। अपने मार्ग में पड़ा एक पत्थर तक उठा कर अपना मार्ग निष्कंटक बनाने की शक्ति उसमें नहीं। तब ऐसे विद्यार्थी से देश और जाति क्या कामना कर सकती है ? रात-दिन किताबों पर ही अपनी दृष्टि गड़ाए। रखने वाले विद्यार्थी जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते। शक्ति के अभाव मे अन्य सब गण व्यर्थ सिद्ध होते हैं। यहाँ तक कि मानव के सर्वश्रेष्ठ गुण तप-त्याग तक। शक्ति के अभाव में व्यर्थ साबित होते हैं। तभी तो कहा गया है-
त्याग, तय, करुणा, क्षमा से भींग कर
व्यक्ति का मन तो बली होता, मगर
हिंसक पशु जब घेर लेते हैं,
उसे काम आता बलिष्ठ शरीर ही।
बलिष्ठ शरीर के साथ-साथ खेलों से मनुष्य में क्षमाशीलता दया, स्वाभिमान | आज्ञापालन, अनुशासन आदि अनेक गुणों का समावेश भी होता है। बहुत-से विद्यार्थी तो खेलों के बल पर ही ऊँचे-ऊँचे पदों को प्राप्त कर लेते हैं। खेलों के अभाव तथा – निर्बलकाय होने के कारण ही अधिकांश विद्यार्थी किसी महत्वपूर्ण स्थान से वंचित रह जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मस्तिष्क कितना भी सबल क्यों न हो पर चलना पैरों से ही हैं। अतः शिक्षण के साथ-साथ क्रीड़ा में भी कुशल होना उज्जवल भविष्य का प्रतीक है। खेलों से राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीय की भावना का भी उदय होता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेली जाने वाली खेलों के आधार पर खिलाड़ियों को विश्व-भ्रमण का भी सुअवसर मिलता है।
इसमें सन्देह नहीं कि खेल विद्यार्थी-जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं, पर यदि इनमें अधिक भाग लिया जाए, तो होनि होती है। बहुत-से विद्यार्थी क्रीड़ा में – अधिक रुचि लेने के कारण अध्ययन से मुँह मोड़ लेते हैं। यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि खेलों का महत्त्व भी शिक्षा के साथ ही है। कई बार तो खेलों के कारण द्वेष, स्पर्धा तथा गुटबन्दी आदि की कटु भावनाओं का भी जन्म होता है, जो बड़ी – हानिकारक हैं। अतः शिक्षण और क्रीड़ा में परस्पर समन्वय की नितांत आवश्यकता है।
अतः जीवन में शिक्षा के साथ-साथ खेलों के प्रति भी रुचि होनी चाहिए। जैसे मस्तिष्क और हृदय का समन्वय अनिवार्य है, वैसे ही शिक्षा और क्रीड़ा का भी। शिक्षण-संस्थाओं का भी यह कर्तव्य है, कि वे शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न खेतों की भी व्यवस्था करें।
निबंध नंबर :- 02
शिक्षा में खेलों का महत्त्व
Shiksha me Khelo ka Mahatva
भूमिका- जीवन का विकास तभी हो सकता है जबकि जीवन के प्रभात बचपन और किशोर अवस्था में जीवन को सही दिशा मिले। हमारी संस्कृति में ब्रह्मचर्य आश्रम की अवस्था पच्चीस वर्ष तक स्वीकार की गई है। इस अवस्था तक उसका शारीरिक मनासिक तथा बौद्धक विकास होना अनिवार्य है। ऐसा होने पर व्यक्ति सफल एवं सुखी जीवन व्यतीत करता है। यह तभी सम्भव हो सकता है जबकि व्यक्ति अपने विद्यार्थी जीवन में अपना सर्वांगीण विकास कर सके और यह तभी सम्भ है जबकि शिक्षा काल में उसका शारीरिक विकास भी हो सके। अतएव यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा अध्ययन के साथ-साथ इस प्रकार की गतिविधियों का होना महत्त्वपूर्ण ही नहीं है अपितु अनिवार्य भी है। खेल और शिक्षा परस्पर एक-दसरे के पूरक है इसको झुठलाया नहीं जा सकता।
शिक्षा और खेल का सम्बन्ध- अंग्रेजी की उक्ति के अनुसार- स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी जीवन विशेष अवस्था मानी जाती है। इसी अवस्था में खेल भी किशोर एवं युवा विद्यार्थियों को प्रिय होते हैं। खेलों के द्वारा एक ओर स्वास्थ्य ठीक रहता है तो दूसरी ओर विद्यार्थियों में परस्पर सहयोग तथा अनुशासन में रहने की भावना का विकास होता है। व्यक्ति के सुन्दर सुदृढ़ और निरोग शरीर के लिए खेल अथवा व्यायाम आवश्यक है तथा मानसिक विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है। इस प्रकार सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास इन दोनों के पूर्ण होने पर ही हो सकता है। खेल और शिक्षा दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। . आज खेलों का महत्त्व सभी राष्ट्र समझते हैं, इसीलिए अब राष्ट्रीय स्तर पर खेलकूद का आयोजन किया जाता है। शिक्षा सयंम, धैर्य, लगन, परिश्रम और सहयोग तथा भाईचारे का उपदेश देती है परन्तु खेल उन्हें मैदान में पोषण देता है। शिक्षा खेल के बिना और खेल शिक्षा के बिना अधूरे ही नहीं अपंग भी है।
खेलों की उपयोगिता- यह एक मनौविज्ञानिक नियम है कि व्यक्ति एकसरता से ऊब जाता है। कोई व्यक्ति लगातार पढ़ता ही जाए- तो क्या होगा ? बुद्धि थक जाएगी, दिमाग में ओर चीज नहीं बैठेगी, आँखों में धुंधलापन छा जाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि लगातार एक ही काम किए जाना ठीक नहीं। जैसे मानव जीवन के लिए खाना, पीना, उठना, बैठना, जागना, सोना सभी कार्य आवश्यक है क्योंकि एक ही काम करते-करते ऊब जाता है, वैसे ही पढ़ने वाले विद्यार्थी के लिए शिक्षा के साथ-साथ खेलें भी की जाती हैं। कोई भी स्कूल या कॉलेज ऐसा नहीं होगा जहां शिक्षा के साथ-साथ खेलों को स्थान न दिया गया हो। शिक्षा व्यक्ति की बुद्धि में विकास की भावना पैदा करती है, वहीं खेले विद्यार्थी का शारीरिक विकास करती है। यही कारण है कि भारत सरकार अच्छे खिलाड़ियों को पुरस्कार भीदेती है। खेलने वाले विद्यार्थी की बुद्धि सदा स्वच्छ रहती है उसका दिमाग तेज होता है। यह थोड़ा-सा भी काम करे, थोड़ी-सी भी मेहनत करे, तो अच्छे अंक प्राप्त कर लेता है। आधुनिक युग में अच्छे खिलाड़ियों का भविष्य उज्जवल होता है। आज तो उच्च स्तर के खिलाड़ी बहुत बड़ी धन राशि लाखों रुपए प्राप्त करते हैं। जो खिलाड़ी प्रतिभाशील होते हैं उन्हें ‘कोच’ के रूप में नौकरी भी मिल जाती है। आज शिक्षा में खेलों की यह उपयोगिता स्वंय सिद्ध हो गई है।
खेलों का स्वरूप- विद्यालय की व्यवस्था तथा स्तर के अनुसार ही खेलों का आयोजन विद्यालय में किया जा सकता है। छोटे-छोटे बच्चों के लिए सरल तथा सामुहिक खेल सिखाए जाते हैं। मिडिल स्कूल, हाई तथा सी० सै० स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले और कॉलेज स्तर के विद्यार्थियों के लिए उनके अनुरूप ही खेलों का स्वरूप निर्धारित किया जाना चाहिए। अब तो कुछ ऐसे स्कूल खुल गए हैं जो बच्चों की शिक्षा ही खेलों से शुरू करते हैं। खेलों के साथ शिक्षा देना और मनोरंजक ढंग से बच्चों को कुछ पढ़ाना एक मनौविज्ञानिक सिद्धान्त है। बच्चे का स्वभाव खेलने का अधिक होता है। सौ में से पांच बच्चे ही होंगे जो किताबी कीड़ा बनना चाहते होंगे। बाकी बच्चे तो प्रायः खेलना ही चाहेगें। खेल-खेल में बच्चे को जो कुछ भी सिखाया जाए तो उसको बच्चे कभी नहीं भूलते। वैसे भी खेलें हरेक की अलग-अलग होती है। लड़कियों की भी अपनी खेले होती है। आज के युग में खेलों के अनेक रूप हैं। ऐथलेटिक्स के अतिरिक्त फुटवाल, वालीबाल, हैण्डबाल, बास्केटबाल, हॉकी, टेनिस, टेबल टेनिस, भारोतोलन, कुश्ती, मुक्केबाजी, जुडो, कराटे आदि भी विद्यालयों में सिखाए जाते हैं।
उपसंहार- खेलों के महत्त्व को समझते हुए वास्तव में खेलों को अनिवार्य विषय बनाना उचित है। आजकल यह देखा गया है कि स्कूल तथा कॉलेज में खेलों में भाग लेने वाले विद्यार्थी पढाई के प्रति उदासीन हो जाते हैं। विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी भाग लेना चाहिए। खेल केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं होते है अपितु शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति में भी सहायक होते हैं। अनुशासित नागरिक तभी पैदा होगे जब खेल के माध्यम से भी अनुशासन की भावना युवाओं में पैदा की जाएगी।