शक्ति अधिकार की जननी है
Shakti adhikar ki Janani hai
यह संसार शक्ति का लोहा मानता है। शक्ति के पर ही मनुष्य अपने अधिकार प्राप्त करता है। शक्ति दो प्रकार की होती है-एक शारीरिक और दूसरी मानसिक मनोबल का भी अपना महत्त्व होता है। यदि दोनों का संयोग हो जाए तो बड़ी-से-बड़ी शक्ति को घुटने टेकने पर विवश किया जा सकता है। अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि अधिकार सरलता ‘ से प्राप्त नहीं होते पाण्डवों की ओर से भगवान् कृष्ण ने उनको अधिकार दिलाने की कितनी चेष्टा की पर दुर्योधन उन्हें पाँच गाँव तक देने के लिए सहमत नहीं हुआ पाण्डवों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए युद्ध का
मार्ग अपनाना पड़ा। को अपनी पराधीनता से मुक्ति तब तक नहीं मिली जब तक उसने शक्ति का प्रयोग किया। महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज सरकार से टक्कर ली। अन्ततः उनकी विजय हुई और देश को आज़ादी प्राप्त हो गयी। कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। व्यक्ति हो अथवा पूरा राष्ट्र हो, उसे अधिकार प्राप्त करने के लिए शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है। शक्ति के द्वारा ही अहिंसा का पालन किया। जा सकता है, सत्य का अनुसरण किया जा सकता है, अत्याचार और अनाचार को रोका जा सकता है एवं अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि शक्ति अधिकार की जननी है।