सत्संगति
Satsangati
सत्संगति से मनुष्य विद्वान, विवेकशील एवं यशस्वी बनता है। देवर्षि नारद के सान्निध्य में रहकर सज्जनों को संगति। मनुष्य जिससे मित्रता करता है, उसके आचरण से प्रभावित लाकर डाकू महान तपस्वी वाल्मीकि बन गया। श्री राम के संपर्क से निषादराज परम पवित्र हो गए। हनुमान पजनीय एवं वदनीय हो गए। श्री कृष्ण की संगति से पांडवों ने दष्ट कौरवों पर विजय प्राप्त की। अतः स्पष्ट है कि संगति के प्रभाव से बुधि परिष्कृत हो जाती है तथा सदगुणों का विकास होता है। सत्संगति अमृत के समान फलदायी एवं यश प्रदान करती है। सत्संगति में रहकर ही मनुष्य विद्वान, धार्मिक, नीतिज्ञ, सत्यनिष्ठ एवं कलाकार बनता है। व्यक्ति विशेष रूप से जैसे लोगों के संपर्क में रहता है उसका आचार-व्यवहार वैसा ही हो जाता है। शुभ। आदतों वाले का सत्संग करने वाले प्रभावशाली एवं आदर्श व्यक्ति कहलाते हैं तथा बुरी आदतों वाले का संसर्ग। करने वालों को कुमति कहकर तथा कुसंगी की उपाधि देकर समाज द्वारा अपमानित किया जाता है। सत्संगति कल्पलता के समान है इससे मनुष्य को मधुर फल ही प्राप्त होते हैं।
यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय।
बैर, प्रीति, अभ्यास जस होत-होत ही होय ।
श्रेष्ठ मनुष्यों के संपर्क से हमारा आचरण तो सुधरता ही है साथ ही चरित्र निर्मल हो जाता है। हमारे क्रूर कर्म पीछे छूट जाते हैं। आदिकवि वाल्मीकि सत्संगति के प्रभाव से अपना डकैती का नीच कर्म छोड़कर मरा-मरा का जाप करते राम के परम स्नेही भक्त बन गए। पारस की संगति से लोहा सोना हो जाता है। सहस्रों निरपराध पशुओं को मौत के घाट उतारने वाला छुरा किसी योग्य शल्य चिकित्सक के हाथों में जाकर अनेक प्राणियों का प्राण रक्षक बन जाता है। इसी प्रकार दुष्ट से भी दुष्ट सत्संगति करने से दयालु, विनम्र, परोपकारी व ज्ञानवान हो जाता है। इसके विपरीत कुसंगति से बड़ी हानियाँ होती हैं। मनुष्य में जितना दुराचार, पापाचार, दुश्चरित्रता और बुराइयाँ होती हैं वे सब कुसंग से ही पैदा होती हैं। नीच साथियों की संगत से बड़े-बड़े घराने नष्ट हो गए। कुल दीपक कुल कपूत कहलाए। शराब की दुकान पर दूध पीने वाले व्यक्ति को भी लोग शराबी ही समझते हैं। कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह तो काजल की कोठरी की तरह होता है, यहाँ से निष्कलंक निकलना असंभव है। जिस प्रकार गुलाब की सुगंध से वायु सुवासित हो जाती है; पुष्प के साथ कीट भी देवताओं के मस्तक पर सुशोभित होता है उसी प्रकार सज्जन व्यक्तियों की संगति भी उत्तम फल देने वाली होती है। दुष्ट एवं दुर्जन मनुष्यों की
संगति पतन का कारण बनती है। अहंकारी रावण के पड़ोस में रहने के कारण समुद्र को भी अपनी शक्ति पर अहंकार हो गया और फिर उसे बंधन में बँधना पड़ा। अतः हमें सदैव कुसंगति से बचना चाहिए तथा उत्तम एवं गुणवान लोगों की संगति में रहना चाहिए क्योंकि सत्र, इति से दोष भी गुण में बदल जाते हैं। महाकवि तुलसीदास जी ने भी कहा है- ‘बिनु सत्संग विवेक न होई’।।