सत्संगति
Satsangati
निबंध नंबर : 01
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोइ फल दीन ।।
मनुष्य जैसी संगति या मित्र रखता है, उसके जीवन का रुख उसी ओर हो जाता है। सत्संगति का अर्थ है अच्छे या गुणवान लोगों का साथ। ऐसे लोगों के सुविचार हमारे जीवन को भी सही दिशा में ले जाते हैं।
जिस प्रकार पारस का स्पर्श पाते ही सभी कुछ स्वर्ण हो जाता है, वैसे ही सत्संगति से हमारा भी मार्ग स्वर्ण सा उज्ज्वल और मूल्यवान हो जाता है। ‘कोयले की दलाली में मुंह काला’ अर्थात बुरे काम करनेवाले लोगों का मुँह हमेशा काला रहता है और ऐसे लोगों का साथ हमें भी मलिन विचारों का बना देता है।
हम अपने अच्छे मित्रों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनकी दिनचर्या, पुस्तकों व खेलों में रुचि, परीक्षा में उनका परिणाम इत्यादि ये सब बातें हमें भी प्रभावित करती हैं। सत्संगति दीपक के समान है जिसके पास रहने से हमारा जीवन भी प्रकाशवान हो जाता है।
विद्यार्थी जीवन में पड़ी अच्छी-बुरी आदतें सदा उसके आचरण का हिस्सा बनी रहती हैं अत: अपनी संगति का चुनाव सोच-विचार कर ही करना चाहिए।
निबंध नंबर : 02
सठ सुधरहि सत्संगति पाई (सत्संगति)
पल्लवन-मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए उसका सम्पर्क अनेक व्यक्तियों से होना स्वाभाविक है। उसके संपर्क में अच्छे-बुरे सभी प्रकार के लोग रहते हैं। दोनों प्रकार के लोगों का वही प्रभाव उस पर पड़ता है। जब व्यक्ति का सम्पर्क श्रेष्ठ जनों से होता है, तो उसमें सद्गुणों की वृदधि होती है। जन्म से कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता। वह जिस प्रकार के लोगों के साथ रहता है, जिस प्रकार के लोगों से मिलता-जुलता है, वह भी वैसा ही बन जाता है। दुष्ट जनों की संगति व्याक्त के विनाश एवं पतन का कारण बनती है। पारस के संपर्क से जिस प्रकार लोहा भी सोना बन जाता है, उसी प्रकार दष्ट से दष्ट व्यक्ति भी अच्छे मनुष्यों की संगति में सुधर जाता है।