सरदार वल्लभ भाई पटेल
Sardar Vallabhbhai Patel
निबंध नंबर -: 01
हमारा भारत देश महान है और यहाँ ऐसे वीरों ने जन्म लिया है जो अपने महान कार्यों तथा अटल निश्चयों के कारण अमर हो गए। इनमें एक महान पुरुष का नाम सरदार वल्लभ भाई पटेल था। जिन्होंने अपनी सूझबूझ तथा बुद्धिमता के बल पर कार्य किया। जब भारत अलग-अलग रियासतों पर बँटा हुआ था तो उन्होंने सभी रियासतों को फिर से भारत में मिलाया व एक नए भारत का निर्माण किया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म सन् 1885 ई. में गुजरात राज्य के करमसद नाम गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम झबेर भाई पटेल था। जो कि साधारण किसान थे किन्तु वह दृढनिश्चयी थे। वल्लभ जी भी अपने पिता की तरह दृढनिश्चयी बने। वह साधारण परिवार से थे इसके बावजूद भी वह इंग्लैंड गए व बैरिस्टर बन कर लौटे। सरदार वल्लभ भाई पटेल भी अपने पिता की तरह ही वीर थे। उनका कर्तव्यनिष्ठा तथा दृढ़ता का उदाहरण इसी बात से मिलता है कि एक बार जब वह मुकदमा लड़ रहे थे तो इसी के दौरान उन्हें पत्नी की मृत्यु का तार मिला उन्होंने तार पढ़ा और विचलित हुए बिना मुकद्मा जारी रखा। उनके इसी कठोर व्यक्तित्व के कारण उनका नाम ‘लौह पुरुष’ पड़ा। सरदार वल्लभ भाई पटेल का मन वकालत में नहीं लगा। और वह वकालत छोडकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में रम गए तथा देश की सेवा में हाथ बँटाने लगे।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बारदौली सत्याग्रह किया। तथा जब वह आंदोलन सफल हुआ तो उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। इन्होंने गाँधी जी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी पूरा सहयोग दिया। सन् 1950 ई. में इनका निधन हो गया।
निबंध नंबर -: 02
सरदार वल्लभभाई पटेल
Sardar Vallabh Bhai Patel
सरदार वल्लभभाई पटेल का व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था-सुघड़ विशाल शरीर, कठोर मुख-मुद्रा और शत्रु के प्रति ललकारभरी आँखें। वल्लभभाई उचित अवसर का सदुपयोग करना भली-भाँति जानते कीवल्लभभाई ऊपर से जितने रूखे, निष्ठुर और कठोर प्रतीत होते थे, अंदर से वे उतने ही सरल, कोमल तथा निराभिमानी थे। उनमें वे सभी गण थे जो महान् राष्ट्र के नेता में होने आवश्यक हैं।
वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्तूबर, 1875 को गुजरात के खेडा जिले के करमसद नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता श्री झवेरी भाई पटेल एक किसान थे। उनके पिता ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बुंदेलों के साथ मिलकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। वल्लभभाई के जीवन पर अपने माता-पिता की वीरता एवं देश-प्रेम की अमिट छाप पड़ी थी।
वल्लभभाई के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए वह दसवीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज में प्रवेश न पा सके। वह मुख्तारी’ की परीक्षा उत्तीर्ण करके सन 1900 में गोधरा में फौजदारी के मुकद्दमों की वकालत करने लगे। उन्हें इस कार्य में काफी सफलता और प्रसिद्धि मिली।
जब एक बार गोधरा में प्लेग फैला, तो उसमें उनकी पत्नी की मौत हो गई. तब उनकी उम्र मात्र 33 वर्ष थी। फिर आजीवन उन्होंने डर विवाह नहीं किया। फिर 1910 ई० में वल्लभभाई बैरिस्टरी करने विला गए। तीन वर्ष बाद बैरिस्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण करके वह भारत लौट आये और मुंबई में प्रैक्टिस आरंभ कर दी। फिर वह महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आए और देश-सेवा के रंग में पूरी तरह से रंग गए। सन् 1916-17 के ‘खेड़ा सत्याग्रह’ की सफलता ने उन्हें एक सन नेता के रूप में उभारकर जनता के सामने प्रस्तुत कर दिया। गाँधीजी भी उनकी संगठन-शक्ति और कार्य-कुशलता का सिक्का मान गए।
वल्लभभाई को सर्वाधिक प्रसिद्धि ‘बारडोली सत्याग्रह’ से मिली। इसके पश्चात् वे केवल गुजरात के नहीं, बल्कि पूरे देश के ‘सरदार’ बन गए। इसी सत्याग्रह में उन्होंने किसानों को संघर्ष करने की प्रेरणा दी थी।
15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने पर उन्हें गृह-विभाग और उप-प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्हें गृह-विभाग और रियासती विभाग सौंपे गए। उन्होंने अपनी कुशलता से थोड़े ही दिनों में भारत की लगभग 600 रियासतों का एकीकरण कर दिया और 219 छोटी रियासतों को विभिन्न प्रदेशों में मिला दिया। हैदराबाद के निजाम ने जब इसमें आनाकानी की तो उन्होंने कठोर कदम उठाकर उसे भारत में मिलाने के लिए विवश कर दिया।
भारत का यह अमर सेनानी 15 सितंबर, 1950 को ये दुनिया छोड़कर चला गया। भारत के इतिहास में उनका नाम सदा स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहेगा। वे सचमुच ‘लौह पुरुष’ थे और ‘सरदार’ कहलाने के योग्य थे।