संतोष का महत्त्व
Santosh Ka Mahatva
व्यक्ति के जीवन में संतोष का बहुत महत्त्व है। संतोषी व्यक्ति सुखी रहता है। असंतोष सब व्याधियों की जड़ है। महात्मा कबार ने कहा है कि धन-दौलत से कभी संतोष नहीं मिलता। संतोष रूपी धन मिलने पर समस्त वैभव धूल के समान प्रतीत होता है। व्यक्ति जितना अधिक धन पाता जाता है उतना ही असंतोष उपजता जाता है। यह असंतोष मानसिक तनाव उत्पन्न करता है जो अनेक रोगों का जड है। धन व्यक्ति को उलझनों में फंसाता जाता है। साधु को संतोषी बनाया गया है क्योंकि भोजन मात्र की प्राप्ति से उसे संतोष मिल जाता है। हमें भी साधु जैसा होना चाहिए। हमें अपनी इच्छाओं को सीमित रखना चाहिए। जब इच्छाएँ हम पर हावी हो जाती हैं तो हमारा मन सदा असंतुष्ट रहता है। सांसारिक वस्तुएँ हमें कभी संतोष नहीं दे सकतीं। संतोष का संबंध मन से है। संतोष सबसे बड़ा धन है। इसके सम्मुख सोना-चाँदी, रुपया-पैसा व्यर्थ है।