सदाचार
Sadachar
निबंध नंबर :- 01
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शब्द से तात्पर्य • सदाचारी कौन • सदाचार और नैतिकता • सदाचार के गुण
सदाचार शब्द का अर्थ है- सद्+आचार अर्थात श्रेष्ठ आचरण। श्रेष्ठ और शुभाचरण का पर्याय सदाचार है। सत्य, दयालुता, निकटता, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, सदाचार, निर्भयता, संतोष, तप और दान सच्चरित्रता के लक्षण हैं।
‘आचारः परमो धर्मः’ अर्थात् आचार ही सबसे बड़ा धर्म है। ‘आचारहीन न पुनन्ति वेदाः’ आचारहीन मनुष्य को वेद भी पवित्र नहीं कह सकते। अंग्रेजी की कहावत है-यदि व्यक्ति का धन नष्ट हो गया तो उसका कुछ भी नष्ट नहीं हुआ, स्वास्थ्य नष्ट हुआ तो कछ नष्ट हुआ और यदि चरित्र नष्ट हो गया तो उसका सब कुछ नष्ट हो गया। सदाचार के अभाव में मानव किसी काम का नहीं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में-
‘खलों को कहीं भी नहीं स्वर्ग है। भलों के लिए तो यही स्वर्ग है।
सुनो स्वर्ग क्या है ? सदाचार है। सदाचार ही गौरवागार है।।
सदाचारी व्यक्ति के चरित्र का प्रभाव उसके संपर्क में आने वाले लोगों पर ही नहीं बल्कि समाज के बहुत बड़े भाग पर पड़ता है और उससे सामाजिक, नैतिक, राष्ट्रीय उत्थान होता है। ऐसे सदाचारों वाले व्यक्ति पर कोई भी जाति वा राष्ट्र गर्व से अपना मस्तक ऊँचा कर सकता है। सदाचार वह धन है जिसके समक्ष बाकी सभी धन, दौलत, ऐश्वर्य, संपत्ति सब कुछ तुच्छ है। विद्या, धन, संपत्ति, शक्ति का सदुपयोग भी सदाचारी व्यक्ति ही कर सकता है। इन चीजों के सदुपयोग और दुरुपयोग को इन शब्दों में व्यक्त किया गया है-
विद्या विवादाय, धनं मदाय, शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधो विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।
अर्थात दुष्ट लोग विद्या को विवाद में, धन को मद में और शक्ति को दूसरों को कष्ट देने में खर्च करते हैं। परंत सदाचारी मनुष्य विद्या ज्ञान के लिए, धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए रखते हैं। सदाचारी व्यक्ति स्वाभिमानी, सहनशील, दयालु, साहसी और स्वतंत्रताप्रिय होता है।
निबंध नंबर :- 02
सदाचार का महत्व
Sadachar ka Mahatva
जीवन में सदाचार का बहुत महत्व है। सदाचार व्यक्ति को सच्चरित्र बनाता है। ‘सदाचार’ शब्द ‘सद+आचार’ से मिलकर बना है जिसका अर्थ है-अच्छा व्यवहार। सदाचार के अंतर्गत जिन गुणों की अपेक्षा की जाती है, वे हैं-सत्य बोलना, अहिंसा के मार्ग पर चलना, दूसरों की सहायता करना सादा जीवन बिताना, उच्च विचार रखना, बडों का आदर-सम्मान करना आदि।
सदाचारी बनने के लिए मनुष्य को शिक्षा एवं सत्संगति की बहुत आवश्यकता होती है। शिक्षा और सत्संगति का संयोग व्यक्ति को सदाचारी बनाता है। सदाचार से व्यक्ति को अनेक लाभ हैं। सदाचारी व्यक्ति को समाज में सम्मान प्राप्त होता है। सदाचार अनुशासन से आता है। अनुशासन का अर्थ है-नियमों का पालन करते हुए कार्य करना। अनुशासन एक जीवन पद्धति है, जो व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन दोनों के लिए आवश्यक है। अनुशासन प्रत्येक मनुष्य के जीवन का अनिवार्य अंग है।
अपनी दिनचर्या, बोलचाल, रहन-सहन, व्यवहार-सबको व्यवस्थित करना ही अनुशासन है। अनुशासन व्यक्ति में बचपन से ही विकास करना चाहिए।
सदाचार और अनुशासन का आपस में गहरा संबंध है। सदाचार व्यक्ति सदैव अनुशासित होता है। सदाचार में दूसरों की सुविधा का ध्यान रखने पर बल दिया जाता है और अनुशासन में इसी भावना की आवश्यकता होती है। इस प्रकार सदाचार में अनुशासन का पालन करना भी शामिल है।
बच्चों के चरित्र-निर्माण में परिवार और समाज की महत्वपर्ण भूमिका है। दोनों को मिलकर ऐसे उपाय करने चाहिए कि बालक सदाचार को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना ले। हमें अपने बच्चों को यह बताना चाहिए कि सदाचार बहुत उत्तम गुण है। इसे जीवन में अपनाना परम आवश्यक है और दुराचार व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है। इसलिए हमें सदैव सदाचार को अपनाना चाहिए, क्योंकि दुराचारी व्यक्ति का समाज में कोई सम्मान नहीं करता। उसका हर जगह निरादर होता है और लोग उसकी संगति करने से डरते हैं। इसके विपरीत सदाचारी व्यक्ति से सभी मित्रता करना चाहते हैं, सभी उसकी संगति पाना चाहते हैं।
हमारे देश में जितने भी महापुरुष हुए हैं, जैसे-महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, लाला लाजपतराय आदि सभी सदाचारी थे। आज सभी उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं। हर व्यक्ति महापुरुष बन सकता। है, यदि वह अपने जीवन में सदाचार को अपना ले।