राष्ट्रीय एकता
Rashtriya Ekta
निबंध नंबर :- 01
हमारा भारत देश विश्व के मानचित्र पर एक विशाल देश के रूप में चित्रित है। प्राकृतिक रचना के आधार पर तो भारत के कई अलग-अलग रूप और भाग हैं। उत्तरी का पर्वतीय भाग, गंगा-यमुना सहित अन्य नदियों का समतलीय भाग, दक्षिण का पठारी भाग और समुद्र तटीय मैदान। भारत का एक भाग दूसरे भाग से अलग-थलग पड़ा हुआ है। नदियों और पर्वतों के कारण ये भाग एक-दूसरे से मिल नहीं पाते हैं। इसी प्रकार से जलवायु की विभिन्नता और अलग-अलग क्षेत्रों के निवासियों के जीवन-आचरण के कारण भी देश का स्वरूप एक-दूसरे से विभिन्न और पृथक पड़ा हुआ दिखाई देता है।
इन विभिन्नताओं के होते हुए भी भारत एक है। भारतवर्ष की निर्माण सीमा ऐतिहासिक है वह इतिहास की दृष्टि से अभिन्न है। इस विषय में हम जानते हैं कि चन्द्रगुप्त, अशोक, विक्रमादित्य और उनके बाद मुगलों ने भी इस बात की। बड़ी कोशिश की थी कि किसी तरह सारा देश एक शासक के अधीन लाया जा सके। उन्हें इस कार्य में कुछ सफलता भी मिली थी। इस प्रकार के भारत की एकता ऐतिहासिक दृष्टि से एक ही सिद्ध होती है।
हमारे देश की एकता एक बड़ा आधार दर्शन और साहित्य है। हमारे देश का दर्शन सभी प्रकार की भिन्नताओं और असमानताओं को समाप्त करने वाला है। यह दर्शन है-सर्वसमन्वय की भावना का पोषक। यह दर्शन किसी एक भाषा में नहीं लिखा गया है। अपितु यह देश की विभिन्न भाषाओं में लिखा गया है। इसी प्रकार से हमारे देश का साहित्य विभिन्न क्षेत्र के निवासियों के द्वारा लिखे। जाने पर भी क्षेत्रवादिता या प्रान्तीयता के भावों को नहीं उत्पन्न करता है, बल्कि सबके लिए भाई-चारे और सद्भाव की कथा सुनाता है। मेल-मिलाप का सन्देश देता हुआ देश-भक्ति के भावों को जगाता है। इस प्रकार के साहित्य की लिपि भी पूरे देश की एक ही लिपि है-देवनागरी लिपि । प्रख्यात विचारक कविवर दिनकर जी का इस सम्बन्ध में इसी प्रकार का विचार था।
“विचारों की एकता जाति की सबसे बड़ी एकता होती है। अतएव भारतीय जनता की एकता के असली आधार भारतीय दर्शन और साहित्य है, जो अनेक भाषाओं में लिखे जाने पर भी अन्त में जाकर एक ही साबित होते हैं। यह भी ध्यान देने की बात है कि फारसी लिपि को छोड़ दें, तो भारत की अन्य सभी लिपियों की वर्णमाला एक ही है। यद्यपि यह अलग-अलग लिपियों में लिखी जाती है।”
यद्यपि हमारे देश की भाषा एक नहीं अनेक हैं। यहाँ पर लगभग पन्द्रह भाषाएँ हैं। इन सभी भाषाओं को बोलियाँ अर्थात् उपभाषाएँ भी हैं। सभी भाषाओं को संविधान से मान्यता मिली है। इन सभी भाषाओं से रचा हुआ साहित्य हमारी राष्ट्रीय भावनाओं से ही प्रेरित है। इस प्रकार से भाषा-भेद की भी ऐसी कोई समस्या नहीं दिखाई देती है, जो हमारी राष्ट्रीय-एकता को खंडित कर सके। उत्तर भारत का निवासी दक्षिणी भारत के निवासी की भाषा को न समझने के बावजूद उसके प्रति कोई नफरत की भावना नहीं रखता है। रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थ हमारे देश की विभिन्न भाषाओं में तो है, लेकिन इनकी व्यक्त हुई भावना हमारी राष्ट्रीयता को ही प्रकाशित करती है। तुलसी, सूर, कबीर, मीरा, नानक, रैदास, तुकाराम, विद्यापति, रवीन्द्रनाथ टैगोर, ललदेव, तिरुवल्लुवर आदि की रचनाएँ एक-दूसरे की भाषा से नहीं मिलती। है। फिर भी इनकी भावात्मक-एकता राष्ट्र के सांस्कृतिक-मानस को ही पल्लवित करने में लगी हुई हैं।
हमारे देश की परम्पराएँ, मान्यताएँ, आस्थाएँ जीवन-मूल्य सभी कुछ हमारी राष्ट्रीयता के ही पोषक हैं। पर्व-तिथि-त्योहार की मान्यताएँ यद्यपि अलग-अलग हैं। फिर भी सबसे एकता और सर्वसमन्वय का ही भाव प्रकट होता है। यही कारण है कि एक जाति के लोग दूसरी जाति के तिथि-पर्व-त्योहारों में शरीक होकर आत्मीयता की भावना को प्रदर्शित करते हैं। धर्म के प्रति आस्था और विश्वास की भावना । हमारी जातीय वर्ग को प्रकट करते हैं। अलंएव धर्मों के मूल में कोई भेद नहीं है। यही कारण है कि हमारे देश में न केवल राष्ट्रीयता के पोषक विभिन्न प्रकार के धर्मों को अपनाने की पूरी छूट हमारे संविधान ने दे दी हैं; अपितु संविधन की इस छूट के कारण ही भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की संज्ञा भी दे दी। इसका यह भी अर्थ है कि यहाँ का कोई धर्म किसी दूसरे धर्म में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
भारत की एकता की सबसे बड़ी बाधा थी-ऊँचे-ऊँचे पर्वत, बड़ी-बड़ी नदियाँ, देश का विशाल क्षेत्रफल आदि । जनता इन्हें पार करने में असफल हो जाती थी। इससे एक-दूसरे से सम्पर्क नहीं कर पाते थे। आज की वैज्ञानिक सुविधाओं के कारण अब वह बाधा समाप्त हो गई है। देश का सभी भाग एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार हमारी एकता बनी हुई है।
हमारे देश की एकता का सबसे बड़ा आधार प्रशासन की एकसूत्रता है। हमारे देश का प्रशासन एक है। हमारा संविधान एक है और हम दिल्ली में बैठे-बैठे ही पूरे देश पर शासन एक सामान करने में समर्थ हैं।
निबंध नंबर :- 02
राष्ट्रीय एकता
भारत एक विशाल देश है। यहाँ अनेक जातियों और संप्रदाय के लोग निवास करते हैं। उनके खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा, भाषा आदि भिन्न-भिन्न हैं। लेकिन इतनी विभिन्नताओं के होते हुए भी भारत एक सुदृढ़ लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित है। दरअसल यही विभिन्नता भारतीय संस्कृति की समृद्धि का आधारसूत्र है। अपनी सांस्कृतिक एकता के कारण भारत एक है। सभी एक जैसा जीवन जीते हैं और एक प्रकार के दर्शन तथा आदतों का विकास करके हम सभी एक राष्ट्र के सदस्य हो जाते हैं।
हमारी एकता का दूसरा प्रमाण यह है कि उत्तर हो, या दक्षिण, चाहे जहाँ चले जाएँ, चाहे किसी भी प्रांत में चले जाएँ, हमें एक ही संस्कृति के मंदिर, एक ही स्वभाव, दृष्टिकोण तथा धार्मिक विश्वास के लोग दिखाई देते हैं। भारत की सभी भाषाओं में राम और कृष्ण से संबंधित साहित्य उपलब्ध हैं। भारत में विचारों, जीवन-दर्शन, धार्मिक पूजा-पद्धति, व्रत-त्यौहार आदि में भी एकता दिखाई पड़ती है। भारत का संविधान भी एक है और हम सबको उसमें पूर्ण विश्वास है।
भारत की जनता ने स्वतंत्रता भी एकता के बल पर ही पाई है। अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में ‘फूट डालो, शासन करो’ की नीति को सफल बनाने के लिए सांप्रदायिकता के जो बीज बोए थे, उनके अंकुर आज भी फूट पड़ते हैं। सांप्रदायिकता हमारी राष्ट्रीय एकता की सबसे बड़ा। दुश्मन है। दुर्भाग्य यह है कि हम जाति व धर्म की भावना से ऊपर नहीं उठ पाते। इससे अक्सर अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आज हमारे न्यायालयों में लाखों मामले लंबित पड़े हैं। अनेक नदियों के जवाद उठ खड़े हुए हैं। भाषा, धर्म तथा क्षेत्र के नाम पर भयानक होते रहते हैं। इन सभी ने हमारी राष्ट्रीय एकता को खंडित किया है।
राष्ट्रीय एकता को खंडित करने में कुछ राष्ट्रीय दलों का भी योगदान हा है। आरक्षण, धर्म और जाति के नाम पर जनता का अल्पसंख्यक बहुसंख्यक वर्गों में बँटवारा राष्ट्रीय एकता में एक बड़ी बाधा है।
यदि आज हमें राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत करना है तो हम सबको क्षेत्र, जाति व धर्म की भावना से ऊपर उठना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सहिष्णुता तथा समन्वय की भावना हमारी संस्कृति का प्राण है, शक्ति है। यदि हम अपने कर्तव्य तथा मानवीय भावना के प्रति ईमानदार हैं तो निश्चय ही समूचा राष्ट्र राष्ट्रीय एकता के सूत्र में स्वयं ही बंध जाएगा और सब प्रकार की समृद्धि और उन्नति के द्वार अपने आप खुल जाएँगे।
निबंध नंबर :- 03
राष्ट्रीय एकता
Rashtriya Ekta
भारत की सबसे बड़ी उल्लेखनीय विशेषता है इसकी राष्ट्रीय एकता। यहाँ विविध धर्मो जातियों और संप्रदायों के लोग रहते हैं। भौगोलिक दृष्टि से भी यहाँ पर्याप्त विविधताएँ हैं। कहीं ऊँचे पहाड़ हैं, कहीं समतल मैदान हैं. कहीं रेगिस्तान हैं तो कहीं उर्वरा भूमि है। दक्षिण में हिंद महासागर इसके चरण-प्रक्षालन कर रहा है। प्राचीन काल में यातायात के साध नों के अभाव के कारण विविधताएँ अधिक स्पष्ट झलकती थीं। आधुनिक युग में यातायात के साधन इतने अधिक हैं कि भौगोलिक विविधता अब एकता में बाधक नहीं है। यहाँ विविध धर्मों के लोग रहते हैं। उन सभी को समान अधिकार पाप्त हैं। हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी. आदि विभिन्न धर्मो को मानने वाले इस देश के नागरिक व्यक्तिगत रूप से अपने-अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ करते हैं। ये सब अपने-अपने धार्मिक कार्य करने में स्वतंत्र हैं। यहाँ भाषागत विविध ताएँ हैं। इन भाषाओं के कारण उत्तर और दक्षिण के लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। हिंदी इस देश की राष्ट भाषा है। अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी भाषी और हिंदी भाषी क्षेत्रों में अहिंदी भाषी बहुत प्रेम के साथ रहते हैं और गरीय एकता का परिचय देते हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस देश में अद्भुत एकता है। प्राचीन काल से भारत सांस्कतिक दष्टि से का का परिचय देता रहा है। उत्तर और दक्षिण में एक जैसे मन्दिर हैं। लोगों के पूजा-पाठ और विश्वास में समानता है।
इस देश की संस्कृति ने देशवासियों के विचार, वेशभूषा, रहन-सहन आदि को प्रभावित किया है। भारतीय संस्कृति में ढले प्रत्येक व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र पहचान है। यह सभी भारतीयों को एकसूत्रता में पिरोए हुए है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने अपने राजनैतिक सिद्धांतों, वैज्ञानिक और औद्यौगिक उन्नति के कारण विश्व में अपना अद्वितीय स्थान बना लिया है। देश की राष्ट्रीय एकता की जिंदा मिसाल इससे बड़ी क्या होगी कि यह धर्मनिरपेक्ष देश है। यहाँ सभी धर्मो और जातियों में एकता है। संकट के क्षणों में सभी भारतीय जति-धर्म भूलकर एक हो जाते हैं और दुश्मन के दाँत खट्टे कर देते हैं। अत: हम कह सकते हैं राष्ट्रीयता है मातृभूमि के प्रति सच्चा प्रेम। राष्ट्रीयता राष्ट्र के चरित्र का निर्माण करती है, देश को खंड-खंड होने से बचाती है। सम्पूर्ण मोह बन्धन छोड़कर धर्म, जाति, सम्प्रदाय, पार्टी या दल का हित त्याग कर, राष्ट्र प्रेम की पावन | गंगा में अपने को निमग्न कर देना राष्ट्रीयता है। इसके लिए आवश्यक है धर्मनिरपेक्ष दृष्टि। राष्ट्रीय एकता की बहुत बड़ी पहचान है-राष्ट्र भाषा। सम्पूर्ण राष्ट्र की एक राष्ट्रीय भाषा हो, यह अनिवार्य है।