रक्षा-बंधन – राखी
Raksha Bandhan – Rakhi
हार्दिक-मिलन भाव को प्रकट करने वाले त्योहारों में रक्षा-बंधन का त्योहार एक प्रमुख और आकर्षक त्योहार है। यह त्योहार प्राचीनतम त्योहारों में से एक है। और नवीन त्योहार में भी अत्यन्त नवीन है। यह मंगल अभिनिवेश का त्योहार हैं। और प्रेम तथा सौहार्द का सूचक भी है। अतएव रक्षा-बंधन का त्योहार पवित्रता और उल्लास का त्योहार है।
रक्षा-बंधन का त्योहार हमारे देश में एक छोर से दूसरी छोर तक बड़ी धमू-धाम से मनाया जाता है। यह त्योहार न केवल हिन्दुओं का ही त्योहार है, अपितु हिन्दुओं की देखा-देखी अन्य जातियों व वर्गों ने भी इस त्योहार को अपनाना शुरू कर दिया। है। ऐसा इसलिए कि यह त्योहार धर्म और सम्बन्ध की दृष्टि से अत्यन्त पुष्ट और महान् त्योहार है। धर्म की दृष्टि से यह गुरु-शिष्य के परस्पर नियम-सिद्धांतों सहित उनके परस्पर धर्म को प्रतिपादित करने वाला है। सम्बन्ध की दृष्टि से यह त्योहार भाई-बहन के परस्पर सम्बन्धों की गहराई को प्रकट करने वाला एक दिव्य और श्रेष्ठ त्योहार है। अतएव रक्षा-बंधन का त्योहार एक महान् उच्च और श्रेष्ठ त्योहार ठहरता है।
रक्षा-बंधन का त्योहार भारतीय त्योहारों में एक प्राचीन त्यौहार है। इस दिन बहन भाई के लिए मंगल कामना करती हुई उसे राखी (रक्षा-सूत्र) बांधती है। भाई उसे हर स्थिति से रक्षा करने का वचन देता है। इस प्रकार रक्षा-बंधन भाई-बहन। के पावन-स्नेह का त्योहार है।
धार्मिक दृष्टि से इस त्योहार का आरम्भ और प्रचलन अत्यन्त प्राचीन है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने जब वामन अवतार लिया था, तब उन्होंने सुप्रसिद्ध अभिमानी दानी राजा बलि से केवल तीन पग धरती दान में माँगी थी। बलि द्वारा स्वीकार करने पर भगवान वामन ने सम्पूर्ण धरती को नापते हुए बलि को पाताल में भेज दिया। इस कथा में कुछ धार्मिक भावनाओं को जोड़कर इसे रक्षा-बंधन के रूप में याद किया जाने लगा। उसी स्मृति में इस त्योहार का प्रचलन हुआ। परिणामस्वरूप आज भी ब्राह्मण अपने यजमानों से दान लेते हैं और उनको रक्षा-सूत्र बांधते हैं। इस रक्षा-सूत्र-बंधन के द्वारा उन्हें विविध प्रकार के आर्शीवाद। भी देते हैं। इसी पवित्र विचारधारा से प्रभावित होकर श्रद्धालु ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा करते हैं और उन्हें भगवान के रूप में अपनी श्रद्धा-भावना भेंट करते हैं।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इस त्योहार का आरम्भ मध्यकालीन भारतीय इतिहास के उस पृष्ठ से स्वीकार किया जाता है। यह मुगलकालीन शासन-काल से सम्बन्धित है। इसके अनुसार जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर। आक्रमण कर दिया। तब सुरक्षा का ओर कोई रास्ता न देखकर महारानी कर्मवती अपने पर आई हुई इस आकस्मिक आपदा से आत्मरक्षा की बात सोचकर दुःखी हो गई। उसने और कोई उपाय न देखकर हुमायूँ के पास रक्षा-बंधन का सूत्र भेजा और अपनी सुरक्षा के लिए उसे भाई कहते हुए सादर प्रार्थना की। बादशाह हुमायें। इससे बहुत ही प्रभावित हुआ। इस प्रेम से भरे हुए रक्षा-सूत्र हो हृदय से स्वीकार करते हुए वह चित्तौड़ की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी सेना लेकर बहन कर्मवती के पास पहुँच गया।
आज रक्षा-बंधन का त्योहार समस्त भारत में बहुत खुशी और स्नेह भावना के साथ प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में श्रवण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें पवित्र भावनाओं के साथ अपने भाइयों को टीका लगाती हैं। उन्हें मिष्ठान्न खिलाती हैं। वे उनकी आरती उतार कर उनको राखी (राखी-सूत्र) बाँधती हैं। भाई यथाशक्ति उन्हें इसके उपलक्ष्य में कुछ-न-कुछ अवश्य भेट करता है। गुरु, आचार्य, पुरोहित आदि ब्राह्मण प्रवृत्ति के व्यक्ति अपने शिष्य और यजमानों के हाथ में रक्षा-सूत्र बांधकर उनसे दान प्राप्त करते हैं। हमें इस महान् और पवित्र त्योहार के आदर्श की रक्षा करते हुए इसे नैतिक भावों के साथ खुशी-खुशी मनाना चाहिए।