पुस्तकालय
Pustakalaya
अथवा
पुस्तकालय का महत्व
Pustakalaya ka Mahatva
Top 3 Hindi Essay on ” Pustakalaya Ka Mahatva”
निबंध नंबर :- 01
पुस्तकालय शब्द पर जब हम विचार करते हैं, तो हम इसे दो शब्दों के मेल। से बना हुआ पाते हैं—पुस्तक + आलय ; अर्थात् पुस्तक का घर जहाँ विभिन्न प्रकार की पुस्तकें होती हैं और जिनका अध्ययन स्वतंत्र रूप से किया जाता है, उसे पुस्तकालय कहा जाता है। इसके विपरीत जहाँ पस्त तो हों लेकिन उनका अध्ययन स्वतंत्र रूप से न हो और वे अलमारी में बन्द पड़ी रहती हों, उसे पुस्तकालय नहीं। कहते हैं इस दृष्टिकोण से पुस्तकालय ज्ञान और अध्ययन का एक बड़ा केन्द्र होता है ।
प्राचीनकाल में पुस्तकें आजकल के पुस्तकालयों की तरह एक जगह नहीं होती थीं; अपितु प्राचीनकाल में पुस्तकें हस्तलिखित हुआ करती थीं। इसलिए इन पुस्तकों का उपयोग केवल एक ही व्यक्ति कर पाता था। दूसरी बात यह कि प्राचीनकाल में पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करना एक बड़ा कठिन कार्य होता था; क्योंकि पुस्तकें आज जितनी प्रकार की एक ही जगह मिल जाती हैं, उतनी तब नहीं मिलती थीं। इसलिए विविध प्रकार की पुस्तकों से आनन्द, ज्ञान या मनोरंजन करने के लिए। आज हमें जितनी सुविधा प्राप्त हो चुकी हैं, उतनी इससे पहले नहीं थीं। इस प्रकार से पुस्तकालय हमारी इस प्रकार की सुविधाओं को प्रदान करने में आज अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका को निभा रहे हैं।
पुस्तकालय की कोटियाँ या प्रकार कई प्रकार के होते हैं। कुछ पुस्तकालय व्यक्तिगत होते हैं, कुछ सार्वजनिक होते हैं और कुछ सरकारी पुस्तकालय होते हैं।
व्यक्तिगत पुस्तकालय, वे पुरतकालय होते हैं, जो किसी व्यक्ति-विशेष से ही सम्बन्धित होते हैं। ऐसे पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या बहुत ही सीमित और थोड़े प्रकार को होती है। हम कह सकते हैं कि व्यक्तिगत पुस्तकालय एक प्रकार । से स्वतंत्र और ऐच्छिक पुस्तकालय होते हैं इन पुस्तकालयों का लाभ और उपयोग उठाने वाले भी सीमित और विशेष वर्ग के ही विद्यार्थी होते हैं। इन पुस्तकालयों की पुस्तक बहुत सामान्य या माध्यम श्रेणी की होती हैं। व्यक्तिगत पुस्तकालय को निजी पुस्तकालय की भी संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार के पुस्तकालय मुख्य रूप से धनी और सम्पन्न वर्ग के लोगों से चलाए जाते हैं। ऐसे पुस्तकालयों की संख्या भी पाठकों के समान ही सीमित होती है, क्योंकि स्वतंत्र अधिकार के कारण इन पुस्तकालयों के नियम-सिद्धान्त का पालन करने में सभी पाठक समर्थ नहीं हो पाते हैं ।
संस्थागत पुस्तकालय भी पुस्तकालयों के विभिन्न प्रकारों में एक विशेष प्रकार का पुस्तकालय है। संस्थागत पुस्तकालय का अर्थ है-किसी संस्था द्वारा चलने वाले। पुस्तकालय। ऐसे पुस्तकालय स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों या किसी अन्य संस्था के द्वारा संचालित हुआ करते हैं। इस प्रकार के पुस्तकालय व्यक्तिगत या निजी पुस्तकालय के समान नहीं होते हैं, जो स्वतंत्रतापूर्वक चलाए जाते हैं। संस्थागत पुस्तकालय के पाठक न तो सीमित होते हैं और न इसके सीमित नियम ही होते हैं, अपितु इस प्रकार के पुस्तकालय तो विस्तृत नियमों के साथ अपने पाठकों की ‘संख्या असीमित ही रखते हैं। इसलिए इन पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या भी बहुत बड़ी या असीमित होती है। इसी तरह इस प्रकार के पुस्तकालयों की पुस्तके बहुमूल्य और अवमूल्य अर्थात् सस्ती और महँगी दोनों ही होती हैं। हम यह कह सकते हैं कि इस प्रकार के पुस्तकालयों की पुस्तके महँगी होती हई भी मध्यम श्रेणी की होती हैं। संस्थागत पुस्तकालयों की पुस्तकें साहित्य, संगीत, कला, दर्शन, धर्म राजनीति, विज्ञान, समाज, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय आदि सभी स्तरों की अवश्य होती हैं। संस्थागत पुस्तकालयों की संख्या सभी प्रकार के पुस्तकालयों से अधिक होती है इस दृष्टिकोण से संस्थागत पुस्तकालयों का महत्त्व सभी प्रकार के पुस्तकालयों से बढ़कर है।
पुस्तकालयों का तीसरा प्रकार सार्वजनिक पुस्तकालयों का है। सार्वजनिक पुस्तकालयों की संख्या संस्थागत पुस्तकालयों की संख्या से बहुत कम होती है; क्योंकि इस प्रकार के पुस्तकालयों का उपयोग या सम्बन्ध केवल बौद्धिक और पुस्तक-प्रेमियों से ही अधिक होता है। कहीं-कहीं तो सरकार के द्वारा और कहीं-कहीं सामाजिक संस्थाओं के द्वारा भी सार्वजनिक पुस्तकालयों का संचालन होता है। चाहे जो कुछ हो सरकार द्वारा ये पुस्तकालय मान्यता प्राप्त होते हैं। सरकार इन पुस्तकालयों की सहायता समय-समय पर किया करती है। अतः सार्वजनिक पुस्तकालयों का भविष्य व्यक्तिगत पुस्तकालयों के समान अंधकारमय नहीं होता है।
पुस्तकालय का एक छोटा-सा प्रकार चलता-फिरता पुस्तकालय है। इस प्रकार के पुस्तकालयों का महत्त्व अवश्य है; क्योंकि समय के अभाव के कारण लोग इस प्रकार के पुस्तकालयों को अवश्य लाभ उठाते हैं। सुविधाजनक अर्थात घर बैठे ही इन पुस्तकालयों का लाभ उठा पाने के कारण इनका महत्त्व और लोकप्रिय होना निश्चय ही सत्य है। सीमित संख्या होने के कारण यद्यपि इन पुस्तकालयों का प्रसारकम है, लेकिन महिलाओं के लिए ये अवश्य अधिक उपयोगी है।
पुस्तकालय ज्ञान-विज्ञान की रहस्यमय जानकारी को प्रदान करने में अवश्य महत्त्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं। ये हमें सत्संगति प्रदान करते हैं। हमें अज्ञान के। अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। इसलिए हमें पुस्तकालयों का अवश्य अधिक-से-अधिक उपयोग करना चाहिए।
निबंध नंबर :- 02
पुस्तकालय का महत्व
Pustakalaya Ka Mahatva
पुस्तकालय वह भवन है जहाँ अनेक पुस्तकों का विशाल भण्डार होता है। वहाँ बड़े-बड़े विचारकों, महापरुषों एवं विद्वानों द्वारा लिखित अनेक पुस्तकें होती हैं। वहाँ जाकर हम अपनी रुचि के अनुसार पुस्तक लेकर अध्ययन करते हैं।
पुस्तकालय का अर्थ होता है-पुस्तकों का घर। इसमें विविध विषयों पर पुस्तकों का विशाल संग्रह होता है। पुस्तकालय सरस्वती का पावन मंदिर है। निर्धन व्यक्ति भी पुस्तकालय में विविध विषयों की पुस्तकों का अध्ययन करके ज्ञान प्राप्त कर सकता है। पुस्तकालय ऐसा स्थान है जहाँ उच्च कोटि के ग्रंथ आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
पुस्तकालय चार प्रकार के होते हैं-(1) व्यक्तिगत पुस्तकालय, (2) विद्यालयों के पुस्तकालय, (3) सार्वजनिक पुस्तकालय, (4) सरकारी पुस्तकालय। इन चारों में से केवल सार्वजनिक पुस्तकालयों का ही उपयोग सभी व्यक्तियों के लिए होता है। इनमें घर पर पुस्तकें ले जाने के लिए इनका सदस्य बनना पड़ता है। कलकत्ता, दिल्ली, मुंबई आदि नगरों में सचल पुस्तकालय भी हैं जो घूम-घूमकर पुस्तकें बाँटते हैं।
पुस्तकालय मानव जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। ये ज्ञान, कला और संस्कृति के प्रसार केन्द्र होते हैं। ज्ञानवृद्धि के लिए पुस्तकालयों से बढ़कर अन्य कोई साधन नहीं है। पुस्तकालयों में बालकों के लिए बाल-साहित्य भी होता है। घर पर खाली बैठे गप्पें मारने की अपेक्षा पुस्तकालय में जाकर पढ़ना अधिक उपयोगी होता है। पुस्तकालय में पहुँचकर महान विद्वानों, विचारकों और महापुरुषों से साक्षात्कार होता है। यदि हमें महात्मा गाँधी, सुकरात, राम, कृष्ण, ईसा मसीह, महावीर आदि के श्रेष्ठ विचारों की संगति प्राप्त करनी है, तो पुस्तकालय से उत्तम अन्य स्थान कोई नहीं है।
इस समय भारत में कलकत्ता, दिल्ली, मुंबई, पटना, वाराणसी आदि स्थानों पर भव्य पुस्तकालय हैं। इंग्लैण्ड में 50 लाख पुस्तकें और सो के पस्तकालय में लगभग एक करोड़ पुस्तकें हैं। देश में मुसलमानों प्राचीन परंपरा रही है। नालंदा और तक्षशिला में भारत के अति पनि पुस्तकालय थे।
पस्तकालय समाज के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। उनके विकास देशवासियों में नवचेतना का उदय होता है। प्रत्येक गाँव में जनसंख्या के आधार पर पुस्तकालयों का निर्माण होना चाहिए। क्योंकि पुस्तकालय की हैं जो सुयोग्य नागरिकों के चरित्र-निर्माण एवं समाज के उत्थान में सहायक होते हैं। अत: पुस्तकालयों के विकास के लिए सतत् प्रयत्न किए जाने चाहिए।
निबंध नंबर :- 03
पुस्तकालय
Library
पुस्तकालय को ज्ञान और जानकारी का खजाना माना जाता है । प्रत्येक युग में विश्व में अनेक लेखकों, विचारकों और कवियों ने जन्म लिया है । उनके विचारों और अनुभवों को पुस्तकों में संरक्षित रखा जाता है । पुस्तकालय में ऐसे ही महान लेखकों और विचारकों की पुस्तकें एकत्रित कर रखी जाती हैं । शेक्सपियर, वर्डस्वर्थ, प्रेमचंद, तुलसीदास, कालिदास आदि महान कवियों और लेखकों की रचनाएँ यहाँ संग्रहित की जाती हैं । इन पुस्तकों को पढ़ने से हमारा मार्गदर्शन होता है । पुस्तकालय का सदस्य बनकर हम लोग अपनी-अपनी रुचि की पुस्तकों का चुनाव कर सकते हैं । यहाँ से पुस्तकें घर ले जाकर पढ़ी जा सकती हैं । पाठक पुस्तकालय के शांत वातावरण में बैठकर अपनी पसंद की पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं । पुस्तकालय के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए सभी अच्छे विद्यालयों में पुस्तकालय की स्थापना की गई है। आम जनता के लिए शहरों में सार्वजनिक पुस्तकालय होते हैं । मामूली सी फीस देकर कोई भी इसका सदस्य बन सकता है । पुस्तकालय से जुड़ाव वास्तव में ज्ञान के अथाह भंडार से जुड़ने जैसा है।