पुष्कर का मेला – राजस्थान
Pushkar ka Mela – Rajasthan
राजस्थान परम्परागत अपनी वीरता के लिये अत्यधिक प्रसिद्ध है। उसका हजारों वर्षों का प्राचीन इतिहास शौर्य और बलिदान की कथा।ओं से भरा हुआ। है। अनेक ऐसे प्राचीन स्थान, स्तंभ और दुर्ग हैं।जो आज भी उसके शौर्य और बलिदान की कथा।ओं को कहते हए से जान पड़ते हैं। उन कथा।ओं पर केवल राजस्थान को ही नहीं, सारे भारत को भी गर्व है।
राजस्थान में एक ओर जहाँ वीर रस का विकास हुआ है। दूसरी ओर वहीं प्रेम और भक्ति रस का भी विकास हुआ है। एक ओर जहाँ वीरों की तलवारों की झंकार सुनाई पड़ती है। वहीं दूसरी ओर भक्ति और प्रेम की वीणा का स्वर भी सुनाई पड़ता है। एक ओर जहाँ महाराणा प्रताप ने अपने शौर्य से भारत के मस्तक को ऊँचा किया है। वही दूसरी ओर मीरा ने अपनी भक्ति भरी रचनाओं से भारत के गौरव में चार चाँद लगाये हैं। वीर और भक्ति रस ने आपस में मिलकर राजस्थान को जो गौरव प्रदान किया है। उससे उसका नस्तक युगों तक ऊँचा रहेगा।
राजस्थान में वीरता, बलिदान, प्रेम और भक्ति से सम्बन्धित अनेक पर्व मनाये जाते हैं और मेले भी लगते हैं। लोक कथा।यें और लोक गीत भी प्रचलित हैं। बहुत से लोक गीत तो ऐसे हैं जिनसे बड़ी प्रेरणा मिलती है। हिन्दी और राजस्थानी कवियों ने भी बहुत सी सुन्दर और भावपूर्ण रचनायें लिखी हैं। यों तो समय-समय पर राजस्थान में कई मेले लगते हैं पर पुष्कर का मेला बड़ा अनूठा होता है। अनूठा इस अर्थ में कि उसमें राजस्थान के लोग ही नहीं, सारे भारत के लोग भी सम्मिलित होते हैं। मेले में एकता और बन्धुत्व का अनुपम दृश्य देखने को मिलता है।
पुष्कर में जाड़े के दिनों में यह अद्भुत मेला लगता है। मेला आरंभ होते ही रेगिस्तानी कस्बा पुष्कर बिजली की बत्तियों से जगमगा उठता है। तरह-तरह की दुकानें और खेल तमाशे वाले भी पहुँच जाते हैं। सजे हुए ऊँटों और सजी हुई बहलियों पर रंग-बिरंगे कपड़े पहने हुए राजस्थानी स्त्री-पुरूष पुष्कर की ओर जाते हुए दिखाई पड़ने लगते हैं। इस तरह लोग कतार बाँध कर चलते हुये दिखाई पड़ते हैं कि देखते ही बनता है। उनदेः ह्रदय में जो आनन्द और उत्साह होता है। उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
सारा पुष्कर राजस्थानी स्त्री-पुरुषों से भर जाता है। संध्या समय जब पुष्कर के सरोवर में दीपमान होता है। तो हज़ारों दीपकों की जगमगाहट देखने योग्य होती है। पुष्कर के सरोवर में घड़ियाल और मगर बहुत रहते हैं।पर फिर भी अनेक लोग पैरो और हाथों को उछालते हुए। सरोवर में तैरते हैं।एक साथ ही डुबकिया लगाते हैं। साथ-साथ तैरते और डुबकि लगाते समय उनके दिलों में केवल श्रद्धा रहती है, मनुष्यता रहती है, एक-दूसरे की सहायता करने की अभिलाषा रहती है।
यो तो पुष्कर में कई मंदिर हैं पर प्रभुत्व मंदिर ब्रह्मा जी का है। पुष्कर को छोड़ कर भारत में ब्रह्मा का मंदिर और कहीं नहीं हैं। पुष्कर के अतिरिक्त और किसी स्थान में ब्रह्मा की पूजा-अर्चना भी नहीं होती। पुष्कर में ब्रह्मा के दर्शन को ही प्रमुख पवित्र कार्य माना जाता है। अतः सरोवर में स्नान करने के पश्चात् सभी स्त्री-पुरुष ब्रह्माजी का दर्शन करते हैं। मंदिर में अपार भीड़ होती है। पर फिर भी किसी तरह की कोई दुर्घटना नहीं घटती।
राजस्थान की स्त्रिया सरोवर में स्नान करने के पश्चात् बड़ी श्रद्धा के साथ गीत गाती हुई सरोवर की परिक्रमा करती हैं। रंग-बिरंगी पोशाकों में गीत गाती हुई स्त्रियाँ जल परिक्रमा करने लगती हैं।तो वह दश्य बडा ही मनोहारी होता है। स्त्रियों का ऐसा विश्वास है कि सरोवर की परिक्रमा करने से सौभाग्य की रक्षा होती है और सुख प्राप्त होता है।
एक विदेशी पर्यटक ने लिखा है। राजस्थानी स्त्रियों की वेश-भूषा को देखकर और उनके कंठों से निकले हुए। गीतों को सुन कर मैं यह सोचने के लिये विवश हो गया। जिस देश में मधु की ऐसी धारा बहती है। वह क्या कभी किसी दुःख का अनुभव कर सकता है।
पुष्कर अपनी पावनता के लिये प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि किसी समय ब्रह्मा जी ने यहाँ आकर तप किया था। पुष्कर के सौदर्य ने उन्हें अपनी ओर आकृष्ट किया था। वे पुष्कर के सरोवर में प्रति दिन स्नान भी किया करते थे। उनका मंदिर उन्हीं की स्मृति में बनाया गया है। मंदिर कब बना और मेला कब से लगने लगा-इसका कहीं कुछ उल्लेख नहीं मिलता। कुछ लोगों का कहना है कि पुष्कर का मेला श्री कृष्ण भगवान के जन्म से बहुत पहले से लग रहा है।
जो हो, पुष्कर का मेला बड़ा अनुपम है और एकता तथा बन्धुत्व का जीता जागता दृष्टान्त है। क्योकि मेले में हिन्दू ही नहीं अन्य धर्म और सम्प्रदायों के लोग भी बड़ी संख्या में सम्मिलित होते