प्रदूषण की समस्या
Pradushan ki Samasya
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निबंध नंबर : 01
प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है- वातावरण में किसी तत्व का असंतुलित मात्रा में विद्यमान होना। प्रदूषण विज्ञान की देन है, रोगों को निमंत्रण है और प्राणियों की अकाल मृत्यु का आधार है। प्रदूषण प्रकृति के विभिन्न घटकों का संतुलन बिगड़ने से होता है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण- ये सभी प्रदूषण के विविध रूप हैं। नदी-नाले, सागर-महासागर, पर्वत और ओजोन परत भी इसी प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। वनों का कटाव, आधुनिकीकरण की समस्या और शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या की समस्या आदि वायु प्रदूषण बढ़ने के सबसे बड़े कारण हैं।
प्रकृति के अधिकतम शोषण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। ऋतु चक्र में बदलाव आ गया है और शुद्ध वायु का मिलना कठिन होता जा रहा है। बड़े-बड़े कारखानों से निकलने वाले धुएँ वायु की शुद्धता को निगल रहे हैं। नगर और महानगरों की गंदगी स्वच्छ पानी देने वाले स्रोतों में बहाई जा रही है। कारखानों का गंदा पानी नदियों में बहाया जा रहा है जिससे जल प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। यातायात के आधुनिक साधन जहाँ एक तरफ़ वायु प्रदूषण बढ़ा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ रहा है, आकाश में उड़ते हवाई जहाज, तेज रफ्तार वाले जेट विमान, दिन-रात बजते हुए लाउडस्पीकरों से जो शोर उभरता है वह कर्णभेदी तो होता ही है साथ ही सुनने की शक्ति की कमजोर कर देता है। भूमि प्रदुषण आज के समय की एक और नई समस्या है। खेतों से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए रासायनिक खादों का अधिकाधिक प्रयोग धरती को बंजर बना रहा है। प्रदूषण की समस्या मानव ने पैदा की है और यदि मानव अपना भला चाहता है तो इस भूल को सुधारने का उसे जल्द से जल्द प्रयास करना होगा। इसके लिए सबसे पहले वनों के कटाव को रोकना होगा और नदियों-नालों में गंदे पानी को बहने से रोकना होगा। ध्वनि प्रदूषण न के लिए इंसान को अपने मन पर नियंत्रण करना होगा। प्रदषण पर नियंत्रण पाने के लिए व्यक्तिगत प्रयास “होगा। यदि मनुष्य फिर से प्रकृति के साथ अपना तालमेल बैठा लेता है तो प्रदूषण जैसे राक्षस पर अंकुश लगाया। जा सकता है। नहीं तो प्रदषण रूपी अजगर कब समस्त सृष्टि को निगल जाए, कहा नहीं जा सकता।
निबंध नंबर : 02
प्रदूषण की समस्या
Pradushan ki Samasya
भूमिका
मनुष्य प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है। जब तक वह प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता तब तक उसका जीवन सहज और स्वाभाविक गति से चलता रहता है। जहां विज्ञान आज दाता है वहीं जीवन हरने वाला भी बन गया है। प्रदूषण की समस्या आज विश्व के समस्त देशों के सामने खड़ी है और इस समस्या का हल भी निकाला गया है। पहले प्रदूषण की कोई समस्या न थी। औद्योगिक विकास के साथ-साथ जन वृद्धि के विकास तथा वैज्ञानिक प्रयोगों के आविष्कार के साथ-साथ इस समस्या ने जन्म लिया। ।
प्रदूषण का अर्थ
प्रदूषण का अर्थ है शुद्ध रूप का दूषित हो जाना अथवा उसमें मिलावट या अशुद्धियों का उत्पन्न होना। आज अनेक कारणों से प्राकृतिक वस्तुएं भी शुद्ध रूप में उपलब्ध नहीं हो पाती है। जैसे वायु ही आज इस रूप से दूषित हो गई है कि निरन्तर यदि इसी प्रकार प्रदूषित वायु का सांस के द्वारा सेवन किया जाए तो अन्ततः मृत्यु ही संभव है। भोपाल में हुई गैस त्रासदी एक ऐसा उदाहरण है जो हमारे सामने है। इसी प्रकार जल तथा ध्वनि भी प्रदूषित होते हैं और इनसे प्राणिमात्र को हानि उठानी पड़ती है।
प्रदूषण के कारण
प्रकृति की हर चीज शुद्ध थी। जलवायु भी शुद्ध था। फिर यह प्रदूषण की समस्या क्यों पैदा हुई। इसके कुछ कारण हैं। प्रदूषण अनेक रूपों में होता है लेकिन मुख्य रूप से वायु का प्रदूषण, जल का प्रदूषण तथा ध्वनि का प्रदूषण है। आज के युग में मोटर वाहनों, रेलों तथा कल कारखानों की संख्या अत्याधिक बढ़ गई है। उद्योग जितने बढ़ेंगे, उतनी ही ज्यादा गर्मी फैलेगी। धुएं में से कार्बनमोनोऑक्साइड काफी मात्रा में निकली है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। सभी देश विज्ञान के नए-नए आविष्कारों का प्रयोग करते हैं। इन आविष्कारों के प्रयोगों से जहरीली गैस बनती है, जहरीला धुआं ऊपर उठता है जो वायुमण्डल को विषाकत करता है।
पहले 90% लोग गाँवों में रहते थे। गांव उजडकर शहर बढ़ने लगे। एक-एक घर में तीन-चार परिवार रहने | लगे। प्रत्येक परिवार की गन्दी वायु या उनके रोग के कीटाणु दूसरे परिवारों में भी जाने लगे। इस तरह से शहर की घनी आबादी का स्थल और जलवायु सब दुषित हो गया और बीमारियाँ बढ़ने लगी। शहरों को बढ़ाने के लिए आज देहात उजड़ रहे हैं और वृक्ष बहुत बेरहमी से काटे जा रहे हैं। देहातों में स्वच्छ जलवायु मिलता था और वृक्ष हमें शद वाय देते थे और गन्दी वायु खींचते थे। आज के बड़े शहरों में कारखाने बहुत बढ़ गए हैं। उनकी चिमनियों का उठता हुआ धुआं वायु मण्डल को खराब करता है और उनका कचरा पानी को खराब करता है।
हानियाँ
प्रदूषण से बहुत हानियां होती हैं। मनुष्य बिना मतलब के रोगों का शिकार बन जाता है। अब विश्व के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी सीमा में इस मौत की लीला को रोकने का प्रयास करें। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई बन्द होनी चाहिए। प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों को शहर से दूर लगाया जाना चाहिए।
निबंध नंबर : 03
प्रदूषण की समस्या
Pradushan ki Samasya
मनुष्य प्रकृति को सर्वश्रेष्ठ रचना है। जब तक वह प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करता तब तक उसका जीवन पहज और स्वाभावि गति से चलता रहता है। आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाता है। आज मनुष्य ने पृथ्वी, आकाश तथा जल पर अपना आधिपत्य जमा लिया है तथा मनुष्य की सुख-सुविधा के लिए अनेक मशीनों एवं आविष्कारों को जन्म दिया है। समय की गति के साथ-साथ जनसंख्या में भी लगातार वृद्धि हुई है। वृद्धि के कारण अपने प्राकृतिक वनों को काट-काट कर या त उद्योग धन्धों का विस्तार किया है या रहने के लिए स्थान बनाए हैं। वनों की अन्धाधुन्ध कटाई के कारण सन्तुलन बिगड़ गया है। वर्षा, जलवायु तथा भूमि पर इसका दुष्प्रभाव पड़ा है। वनों के कारण वातावरण शुद्ध रहता था, पर आज मिलों की चिमनियों से निकलते धुएँ तथा मिलों से वहने वाले पदार्थों से वातावरण प्रदूषित हो गया है। नगरों में बसों, ट्रकों तथा अन्य वाहनों से धुआँ निकलता है जिससे अनेक प्रकार के रोग हो रहे हैं। फेफड़ों के रोग, रक्त या चर्म के रोग बढ़ते जा रहे हैं। धुएँ में जहरीले पदार्थ होते हैं जो सांस के द्वारा हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं। इसी प्रकार मिलों से बैकार हो जाने वाला पदार्थ नदियों में बहा दिया जाता है। इससे पानी प्रदूषित हो जाता है, जिसे पीने से अनेक प्रकार के रोग हो रहे हैं। प्रदूषण की समस्या बहुत भयंकर समस्या है। वनों की अन्धाधुंध कटाई पर रोक लगाई जानी चाहिए। वृक्षारोपण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे प्रदूषण कम होता जाएगा क्योंकि वृक्ष दूषित वायु (कार्बनडाईआक्साइड) कोलेकर शुद्ध वायु (आक्सीजन) प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त सरकार को चाहिए कि उद्योग-धन्धों को शहरों की घनी आबादी से दूर स्थापित करने के लिए कानून बनाए, क्योंकि प्रदूषण का दुष्प्रभाव शहरों पर ही अधिक पड़ता है। हम सबका यह भी कर्त्तव्य है कि हम वृक्षारोपण के महत्त्व को समझे तथा नए-नए वृक्ष लगाएं।
निबंध नंबर : 04
प्रदूषण की समस्या एवं समाधान
Pradushan ki Samasya evm Samadhan
आज सबसे बड़ी समस्या है-प्रदूषण। इस समस्या की ओर आजकल सभी देशों का ध्यान केन्द्रित है। जनसंख्या की असाधारण वृद्धि ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है। औद्योगिक तथा रासायनिक कूड़े-कचरे के ढेर से पृथ्वी, हवा, पानी सभी प्रदूषित हो रहे हैं। आज के वातावरण में कई प्रकार का प्रदूषण है, जैसे जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, रेडियोधा प्रदूषण, रासायनिक प्रदूषण आदि।
आज वृक्षों का अत्यधिक कटाव हो रहा है। इससे ऑक्सीजनौर का संतुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदक्षित हो गई है। जो मनुष्य के फेफड़ों के लिए अत्यंत घातक है। इसी प्रकार जीवन का मुख्य आधार जल भी प्रदूषित हो गया है। बड़े-बड़े नगरों के गंदे नाले नदियों में डाल दिए जाते हैं। सीवरों को नदी से जोड़ दिया जाता है। इससे जल प्रदूषित हो जाता है और उससे पीलिया, पेचिस, हैजा आदि। अनेक प्रकार की भयानक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे लोगों का जीवन ही खतरे में पड़ गया है।
आज के युग में ध्वनि प्रदूषण की भी एक समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटर, कार, ट्रैक्टर, जैट विमान, कारखानों के साइरन, मशीनें, लाऊडस्पीकर आदि ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। अत्यधिक ध्वनि-प्रदूषण से श्रवण-शक्ति पर बुरे प्रभाव पड़ने के साथ ही मानसिक विकृति तक हो सकती है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक परीक्षणों के कारण रेडियोधर्मी पदार्थ संपूर्ण वायुमंडल में फैलकर उसे प्रदूषित कर रहे हैं जो जीवन को अत्यंत क्षति पहुँचा रहे हैं।
इसके अलावा कारखानों से बहते हुए अवशिष्ट पदार्थों, रोगनाशक तथा कीटनाशक दवाइयों और रासायनिक खादों से भी प्रदूषण फैल रहा है, जो मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। यही नहीं, कारखानों के धुएँ, विषैले कचरे के बहाव तथा जहरीली गैसों के रिसाव। से आज मानव जीवन का वायुमंडल अत्यंत प्रदूषित हो गया है।
अत: वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है। इसी प्रकार वृक्षों के अधिक कटाव पर भी रोक लगाई जानी चाहिए। कारखानों और मशीनें लगाने की अनुमति तभी दी जानी चाहिए जब उनके धुएँ निकालने की समुचित व्यवस्था हो। इसी प्रकार नालों को नदी में न डालकर उनकी अन्य व्यवस्था करनी चाहिए तभी प्रदूषण की समस्या का समाधान संभव हो सकता है।
निबंध नंबर : 05
प्रदूषण: एक समस्या
(Problem of Pollution)
भूमिका
आज का युग विज्ञान का युग कहा जाता है। विज्ञान में हमें अनेक प्रकार की सुख-सुविधाएँ प्रदान की हैं, जिसके कारण हमारी धरती नंदनवन बन गई है। विज्ञान में जहाँ हमें अनेक प्रकार के वरदान दिए हैं, वहीं कुछ ऐसी समस्याएं भी पैदा की हैं, जो आज भीषणतुम अभिशाप बनकर हमारे अस्तित्व को ही समाप्त करने पर तुली हुई हैं। प्रदूषण भी उनमें से एक है।
प्रदूषण का अर्थ
प्रदूषण का अर्थ है- ‘दोषयुक्त’। आज का दूषित वातावरण, पर्यावरण या वायुमंडल भी प्रदूषित है। मनुष्य ने प्रकृति से जिस प्रकार छेड़-छाड़ की है, जिस प्रकार उसका अंधाधुंध दोहन किया है, उसी का दुष्परिणाम है-प्रदूषण।
प्रदूषण के प्रकार
प्रदूषण मुख्यतः चार प्रकार का होता है-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और भूमि प्रदूषण। वायु प्रदूषण-वायु प्रदूषण का सर्वाधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। आज जिस तीव्र गति से औद्योगीकरण हुआ है, उसी गति से वायु प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ तथा राख से वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है तथा नगरों में लोग शुद्ध वायु में साँस लेने को तरसते हैं।
जल प्रदूषण
इन कारखानों से निकलने वाले दूषित पदार्थो, कचरे एवं विषैले रसायनों को कुछ नदी, नालों में बहा दिया जाता है जिससे उनका जल प्रदूषित हो जाता है। गंगा जैसी पवित्र नदी का जल भी आज प्रदूषित हो गया है। जब जल प्रदूषित होगा तो शुद्ध जल कहाँ से उपलब्ध होगा। प्रदूषित जल का सेवन करने से घातक रोग लग जाते हैं।
ध्वनि प्रदूषण
आज के महानगरों में वाहनों, मशीनों और कल-कारखानों के शोर के कारण ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। तेजी से आते-जाते वाहनों के शोर के कारण मानसिक तनाव तथा हृदय रोग, रक्तचाप जैसी व्याधियाँ जन्म लेती हैं।
भूमि प्रदूषण
भूमि प्रदूषण के लिए भी आज का विज्ञान ही उत्तरदायी है। अधिक अन्न उगाने के लिए जिस प्रकार की रासायनिक खादों का प्रयोग किया जा रहा है, उससे भूमि प्रदूषित हो रही है। कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियाँ मानव को सता रही हैं।
प्रदूषण का दुष्प्रभाव
प्रदूषण एक घातक समस्या है। जनसंख्या की अधिकता तथा इसके लिए आवास की समस्या को हल करने के लिए वृक्षों की जिस प्रकार अंधाधुंध कटाई की जा रही है, उससे प्रकृति भी नाराज़ होकर हमसे बदला लेती है। आज शुद्ध जल, शुद्ध वायु का नितांत अभाव होता जा रहा है। वायुमंडल में मिली जहरीली गैसें एक ऐसे विष का काम कर रही हैं जो धीरे-धीरे हमारे स्वास्थ्य को घुन की तरह खाए जा रही हैं।
प्रदूषण से बचाव
प्रदूषण से बचने के लिए अधिक से अधिक वृक्षों का लगाया जाना बहुत आवश्यक है। इसके लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किया जाना आवश्यक है। सरकार को ऐसे उद्योगों को आवासीय स्थानों से दूर लगाना चाहिए जो प्रदूषण फैलाते हैं। वनों की कटाई पर रोक लगाना भी परमावश्यक है। सरकार को ऐसे कानून बनाने चाहिएँ कि जो उद्योग प्रदूषण फैलाएगा, उसके विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाएगी।
उपसंहार
आज हम सबका कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित तथा स्वच्छ रखें। अधिक से अधिक वृक्ष लगाएँ तथा हरे-भरे पेड़ों को कभी न काटें। साथ ही सरकार को चाहिए कि नगरों में प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों को आबादी से दूर स्थानांतरित करने के लिए कड़े कदम उठाएँ। हर्ष का विषय है कि सरकार ने बड़े-बड़े नगरों में वाहनों के प्रदूषण को रोकने के लिए पैट्रोल के स्थान पर सी.एन.जी. गैस का प्रयोग करवाने के लिए कानून बनाए हैं।
निबंध नंबर : 06
प्रदूषण की समस्या
Pollution Problem
प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर समस्या है । यह समस्या धीरे-धीरे और बड़ी और भयानक होती जा रही है । प्रदूषण के मुख्य तीन रूप हैं – वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण । वायु प्रदूषण वायु में खतरनाक और विषैली गैसों के मिलने से उत्पन्न होता है । ये गैसें मोटर वाहनों, कारखानों तथा अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण भारी मात्रा में निकलती हैं । वायु प्रदूषण का दूसरा कारण वनों का कटाव है। पेड़ लगाकर तथा प्रदूषण रहित ईंधनों का प्रयोग कर हम वायु-प्रदूषण में कमी ला सकते हैं । जल-प्रदूषण की समस्या भी बहुत जटिल है । धरती पर पीने योग्य साफ जल का अभाव हो गया है । नदिया. तालाबों और झीलों के पानी में शहरों और कारखानों से निकला गंदा पानी छोड़ने से यह समस्या उत्पन्न हुई है । कीटनाशकों तथा खतरनाक रसायनों का बढ़ता प्रयोग भी जल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है । ध्वनि प्रदूषण हमारे चारों ओर शोर-गुल बढ़ने से होता है। इन तीनों ही प्रकार के प्रदूषण से निबटने के लिए उचित प्रयास करने की आवश्यकता है।
निबंध नंबर : 07
प्रदूषण
Pradushan
पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ है-वातावरण के प्राकृतिक संतुलन में गड़बड़ी पैदा होना। प्रदूषण मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-वायु प्रदूषण, जल-प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण। शहरीकरण तथा वैज्ञानिक प्रगति प्रदूषण फैलने के दो बड़े कारण हैं। एक अन्य बड़ा कारण है-बढ़ती जनसंख्या। इस कारण वातावरण में इतना मल, कचरा, धुआँ और गंद जमा हो जाता है कि मनुष्य के लिए स्वस्थ वायुमंडल में साँस लेना दूभर हो जाता है। जल-प्रदषण से सभी नदियाँ, नहरें भमि दूषित हो रही हैं। परिणामस्वरूप हमें प्रदूषित फसलें मिलती हैं और गंदा जल मिलता है। आजकल वाहनों, भोंपुओं, फैक्टरियों और मशीनों के सामूहिक शोर से रक्तचाप, मानसिक तनाव, बहरापन आदि बीमारियाँ बढ़ रही हैं। प्रदूषण से मुक्ति के उपाय हैं-आसपास पेड़ लगाना। हरियाली को अधिकाधिक स्थान देना। अनावश्यक शोर को कम करना। विलास की वस्तुओं की बजाय सादगीपूर्ण ढंग से जीवनयापन करना। घातक बीमारियाँ पैदा करने वाले उद्योगों को बंद करना आदि। आज यह समस्या विश्व भर में व्याप्त है। इसलिए विश्व-समुदाय को मिलकर कुछ कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे।
(100 Words)
निबंध नंबर : 08
प्रदूषण
Pradushan
प्रदूषण की समस्या आज की सबसे विकट समस्या है। इस समस्या के कारण मनुष्य सहित सभी जीवधारियों का जीवन संकट में पड़ गया है। जल में, जमीन में, वायु और भोजन तक में ऐसे पदार्थ घुल-मिल गये हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। इस कारण अनेक नयी-नयी बीमारियाँ पैदा हो रही हैं।
जनसंख्या वृद्धि इस समस्या का एक महत्वपूर्ण कारण है। शहरों में जहाँ आबादी अधिक सघन है, वहाँ इस समस्या का रूप विकराल है। शहरों में तरह-तरह के कारखाने होते हैं, वाहनों की भीड़ होती है। इनसे निकलने वाले धुएँ में जहरीली गैसें होती हैं। ये गैसें हवा में घुलकर वायु प्रदूषण उत्पन्न करती हैं।
घरों से निकलने वाले मल-जल और कल-कारखानों से निकलने वाले अपद्रव्य नाले-नालियों से होते हुए नदी-तालाबों आदि जल स्रोतों में मिलकर जल-प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। भूमि में फसल वृद्धि और बचाव के लिए डाले गये रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक भी जल में पहुंचकर उसे प्रदूषित करते हैं। ये भूमि की उर्वरा शक्ति भी घटाते हैं।
हमारे शरीर में प्रदूषित वायु, प्रदूषित जल तथा प्रदूषित भोजन के कारण, हानिकारक पदार्थों का जमाव बढ़ता जा रहा है। इस कारण अनेक नये-नये रोगों का खतरा बढ़ा है।
रेफ्रिजरेटर जैसे आधुनिक उपकरणों और विधियों के प्रयोग से एरोसोल नामक पदार्थ वायुमण्डल में घुलते हैं। ये पदार्थ वायुमण्डल में पृथ्वी के सुरक्षा कवच ‘ओजोन परत’ को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे सूर्य की पराबैगनी किरणों का पृथ्वी तक सकती हैं। ये किरणें पृथ्वी के जीवों में कैंसर जैसे घातक रोग पैदा कर सकती हैं।
प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा। इन समस्याओं से निपटने के लिए सबको अकेले और समूह में मिलकर कारगर उपाय करने होंगे अन्यथा प्रदूषण के दुष्परिणाम सबको भोगना होंगे।
वाहनों और कारखानों से निकलने वाले धुएँ को हवा में मिलने से रोकने के लिए नवीन तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिये। मल-जल और घरेलू गंदगी को जल-स्रोतों में मिलने से पहले उपचारित किया जाना चाहिये।
जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश पाना भी प्रदूषण को रोकने में सहायक होगा। फसलों में प्राकृतिक खादों तथा जैविक उर्वरकों का प्रयोग करके भूमि को बंजर होने से बचाया जा सकता है।
हमें मिल-जुलकर संगठित होकर पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के प्रयास में जुटना होगा। इस हेतु समाज में चेतना और जाग्रति फैलाना होगी। तभी इस समस्या से निपटा जा सकता है।
निबंध नंबर : 09
भारत में प्रदूषण की समस्या
Bharat me Pradushan Ki Samasya
प्रदूषण का अर्थ है-प्रकृति के स्वस्थ, सर्वजन, सुलभ कोष में असंतुलन, पृथ्वी अपना संतुलन बनाए रखती है, परंतु आज विज्ञान ने प्रकृति के संतुलन में भी हस्तक्षेप आरंभ कर दिया है। समय की गति के साथ-साथ जहाँ मानव ने अन्य क्षेत्रों में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है, वहाँ जनसंख्या में भी वृद्धि हुई है। जनसंख्या वृद्धि, नगरों एवं शहरों का विकास, होने का कारण वनों को काटकर उद्योग धंधे स्थापित किए जा रहे हैं। इस शहरीकरण के बढने से व वनों के कम होने से धुआँ, गैस तथा मिलों से निकलने वाले पदार्थ जल, थल तथा वायु तीनों को प्रदूषित कर रहे हैं, प्रकृति का इस प्रकार प्रदूषित होना, प्रदूषण कहलाता है। वायु मंडल के प्रदूषण से जनसाधारण के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वायुमंडल में एक ओर तो आक्सीजन कम हो रही है तथा दूसरी ओर विषैली गैसों की मात्रा बढ़ रही है। शहरों में कल कारखाने निरंतर धुआँ तथा अन्य जहरीली गैसें वायुमंडल में फेंकते रहते हैं। ऐसी विषैली वायु मे सांस लेने के कारण फेफड़ों के, गले के तथा श्वांस संबंधी अनेक रोग बढ़ जाते है। यातायात के साध नों के विकास से, गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ और धूल वायु को प्रदूषित करते हैं। शहरों के कल-कारखाने, लगातार धुआँ तथा अन्य जहरीली गैसें, वायुमंडल को प्रदूषित कर देती हैं।
गंदी वायु में सांस लेने से न केवल फेफड़ों के रोग पनपते है, अपितु रक्त शुद्ध नहीं रह पाता, चर्म रोग हो जाते हैं, आंखों की रोशनी कम होने लगती हैं, ध्वनि विस्तार के यंत्रों, चमकदार बत्तियों, औषधियों एवं सौन्दर्य प्रसाधनों, वाहनों के शोर, रसायनों से बने खाद्य, बहु-मंजिले मकानों, वस्त्र तथा वाहनों की अधि कता से प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। गंगा जैसी पवित्र नदी प्रदूषण का शिकार है। यमना का जल भयंकर रूप से प्रदषित हो चका है। कल-कारखानों के विषैली अवशेषों का नदी में छोड़े जाने से नदियों का जल प्रदूषित हो गया है, नदियों के जल में इतना अधिक जहर घुल गया है, कि उसमें पाए जाने-वाले जलीय-जीवन नष्ट होते जा रहे हैं।
प्रदूषण की एक और समस्या है-ध्वनि प्रदूषण यानि कल-कारखानों, मोटर गाड़ियों के अकारण शोर की मात्रा बहुत बढ़ गई है। शोर में रहने और काम करने से मानव के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे सुनने (श्रवणशक्ति) की शक्ति कम हो जाती है।
प्रदूषण से बचने के लिए आवश्यक है कि प्राकृतिक एवं मानव निर्मित वातावरण में तालमेल बना रहे। मानव उद्योग-धंधो का विकास जरूर करे, लेकिन प्राकृतिक सुंदरता को नुकसान न पहुचाएँ, नदियों, वनों पर्वतों, जलाशयों आदि को नष्ट न किया जाए। शहरों में प्रदूषण अधिक होता है, अत: उद्योग ध धों को शहरों से दूर रखा जाए। महानगरों में चिकित्सा, निवास, जलमल निष्कासन की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। वृक्षारोपण इस दिशा में बहुत उपयोगी सिद्ध होते है। अधिक वृक्ष होने से वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है। गांव में छोटे-धंधो का विकास करके गांवों की जनसंख्या का शहरों में अतिक्रमण रोका जाना चाहिए।
प्रदूषण की समस्या से सारा विश्व चितिंत है, इससे बचने के लिए प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगाये जाने चाहिए। हरियाली बनाए जाने के लिए पार्क बनाए जाने चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में कार्य हो रहा है। भारत में भी प्रदूषण नियंत्रण की योजनाएँ बनाती हैं।
अधिक वन लगाए जा रहे हैं। गंगा, यमुना के पानी के प्रदूषण को कम करने की योजना बनाई जा रही है। हिमालय को नष्ट होने से बचाने के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं। आशा की जानी चाहिए कि जिस समस्या को मनुष्य ने स्वयं जन्म दिया है, उससे वह स्वयं सफलतापूर्वक निपट भी लेगा।
superb essay!!!
It’s amazing essay
Superb
Thank you so much for such a lovely essay – बहुत बहुत धन्यवाद आपका इस्स लेख के लिए
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