परीक्षा भवन का दृश्य
Pariksha Bhawan ka Drishya
निबंध नंबर :- 01
अप्रैल महीने की पहली तारीख थी । उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है । मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक्-धक् कर रहा था । रात भर पढ़ता रहा । चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न पत्र में न आया तो क्या होगा । परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिन्तित से नजर आ रहे थे । कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उनके पन्ने उलट पुलट रहे थे। कुछ बड़े खुश-खुश नजर आ रहे थे। लड़कों से ज्यादा लड़कियाँ अधिक गम्भीर नज़र आ रही थी । कुछ लड़कियाँ तो बड़े आत्मविश्वास से भरी दिखाई पड़ रही थीं। मानो कह रही हो परीक्षक जो भी कुछ पूछ ले हमें सब आता है । लड़कियाँ इसी आत्मविश्वास के कारण ही शायद हर परीक्षा में लड़कों से बाजी मार जाती हैं । मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई । यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए । सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया । भीतर पहुँच कर हम सब अपने अपने रोल नं० के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गये । थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर पुस्तिकाएँ बाँट दीं। और हम ने उस पर अपना-अपना रोल नं० आदि लिखना शुरू कर दिया । ठीक 9 बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न पत्र बाँट दिये । कुछ विद्यार्थी प्रश्न पत्र प्राप्त करके उसे माथा टेकते देखे गये । मैंने भी ऐसा ही किया । माथा टेकने के बाद मैंने प्रश्न पत्र पढ़ना शुरू किया । मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए या तैयार किये हुए प्रश्नों में से थे । मैंने किये जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाये और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उतर लिखना शुरू कर दिया । मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो । तीन घण्टे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा । परीक्षा भवन से बाहर आकर ही मुझे पता चला कि कुछ विद्यार्थियों ने बड़ी नक़ल की परन्तु मुझे इसका कुछ पता नहीं चला । मेज़ से सिर उठाता तो पता चलता । मैं प्रसन था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।
निबंध नंबर :- 02
परीक्षा भवन का दृश्य
Pariksha Bhawan ka Drishya
2 मार्च का दिन था। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से सभी घबराते हैं। विद्यार्थी वर्ग तो परीक्षा शब्द से बड़ा ही घबराता है। जब मैं घर से परीक्षा देने के लिए निकला तो मेरा दिल धक-धक कर रहा था। आधी रात तक में पढ़ता रहा। चिन्ता इस बात की खाए जा रही थी कि जो कुछ मुझे याद है या जो मैंने पढ़ा है क्या वही पर्चे में आएगा? अगर ऐसा न हुआ तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिन्तित रहे थे। कुछ तो अभी भी अपनी पुस्तकों के पन्ने पलट रहे थे। कुछ लड़के बड़े प्रसन्न नजर आ रहे थे। कियां कछ ज्यादा ही चिन्तित नजर आ रही थीं। कुछ लड़कियां तो आत्मविश्वास से भरी थीं। ऐसा प्रतीत होता था कि उन्हें पर्चे के बारे में कोई चिन्ता न थी। उनकी पूरी तैयारी थी। यही कारण है कि लड़कियां हर परीक्षा में लड़कों से बाजी मार जाती हैं। इतने में परीक्षा भवन की घण्टी सुनाई दी। हम सबने परीक्षा भवन की और जाना शुरू कर दिया। सभी विद्यार्थी अपने-अपने रोल नं० पर अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए कुछ ही क्षणों में अध्यापक महोदय ने उत्तर पुस्तिकाएं बांट दी। ठीक आठ बजते ही प्रश्न पत्र बांट दिए गए। कुछ विद्यार्थी तो प्रश्न-पत्र को लेकर माथे से लगाकर उनका सम्मान कर रहे थे। ज्यों ही मैंने प्रश्न पत्र को पढ़ा तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। सभी प्रश्न मुझे आते थे और मैंने रात को पढ़े थे। जो प्रश्न सबसे अच्छे आते थे वे मैंने पहले हल किए और दूसरे बाद में। कुछ विद्यार्थी अभी भी प्रश्न पत्र पकड़ कर सोच रहे थे। शायद प्रश्न पत्र उनके लिए कठिन था। उनके याद किए प्रश्न न आए हों। तीन घण्टे तक मैं लगातार इधर-उधर झाकें बिना लिखता रहा। बाहर आकर पता चला कि कुछ लड़के नकल मारने में व्यस्त रहे हैं। मैं प्रसन्न था कि मेरा पर्चा बिल्कुल ठीक हुआ था।
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Chiter BHI Hona chahiye
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