Hindi Essay on “Nari Jeevan Haye Tumhari yahi Kahani”, “नारी जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

नारी जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी

Nari Jeevan Haye Tumhari yahi Kahani

 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।

यत्रास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तुदाफलाः क्रिया।।

इस सूक्ति का सामान्य अर्थ यह है कि जहाँ नारी की प्रतिष्ठा और सम्मान होता है, यहाँ देवशक्तियाँ होती हैं और जहाँ नारी का निरादर होता है, वहाँ नाना प्रकार के विघ्न उत्पन्न होते हैं। नारी को इस आधार पर एक महान् देवी के रूप में चित्रित किया गया। उसके प्रति विश्वस्त और श्रद्धावान् होने के लिए आवश्यक कहा गया। नारी के इसी श्रद्धेय और पूज्य स्वरूप को स्वीकारते हुए कविवर श्री जयशंकर प्रसाद ने अपनी महाकृति कामायनी’ में लिखा है कि–

नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो,

विश्वास रजत नगपगतल मैं।

पीयूष स्रोत-सी बहा करो,

जीवन के सुन्दर समतल में ।।

इस दृष्टिकोण के आधार पर नारी पूज्य और महान् है। इससे जीवन अमृत तुल्य बन जाता है। नारी का यह सम्माननीय स्वरूप प्राचीन काल में बहुत ही सशक्त और आकर्षक रहा है। सीता, मैत्रीये, अनुसुइया, सती सावित्री दमयन्ती आदि भारतीय नारियाँ विश्व-पटल पर गौरवान्वित है। लेकिन दुश्चिता का विषय यह है कि जब से हमारे देश पर विजातीय राज्य विस्तार हुआ, हमारी भारतीय नारी दीन, हीन और मलीन हो गई। भक्तिकाल की मीरा और आधुनिक काल की रानी लक्ष्मीबाई और इसके बाद के इतिहास में श्रीमती इन्दिरा गांधी आदि को छोड़कर अधिकांश नारियाँ तो आज शोषित और पीड़ित दिखाई दे रही हैं। उन्हें आज पुरुष के अधीन रहना पड़ रहा है। उन्हें आज अपनी भावनाओं को स्वतन्त्र रूप से प्रकट करने पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है। इसलिए नारी को आज अबला और बेचारी विशेषणों से विश्लेषित किया जा रहा है। इन सब दुःखद और दुर्दशाग्रस्त स्थिति में पड़ी हुई नारी को देखकर उसके प्रति संवेदनशील होकर किसी कवि का यह कथन सत्य है–

नारी जीवन, झूले की तरह,

इस पार कभी, उस पार कभी।

आँखों में असुवन धार कभी,

होठों पर मधुर मुस्कान कभी ।।

बहुत ही सार्थक और उपयुक्त लगता है।

नारी को इस हीन, वेबस और दीन-दशा में पहुँचाने में सामाजिक कुरीतियाँ और परम्परागत रूढ़िवादिता ही हैं। नारी को पर्दे में रहने और उसे पुरुष कीअनुगामिनी बने रहने के लिए हमारे प्राचीन ग्रन्थों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है।

विदेशी आक्रमणों और अत्याचारों से नारी को बार-बार आतंक का शिकार होना पड़ा। उसे चारदीवारी में बन्द रखा गया। इससे बचने के लिए नारी को पर्दे का सहारा लेना पड़ा। सभी प्रकार के अधिकारों से उसे वंचित करके परुष की दासी बना दिया गया। नारी के लिए प्रयुक्त होने वाला अद्धांगिनी शब्द को ‘अभागिनी’ बदलकर उसे सर्वहारा मान लिया गया। दहेज-प्रथा, सती–प्रथा, बाल-विवाह, अनमेल विवाह इत्यादि इसके ही कुपरिणाम हैं। तब से अब तक नारी को स्वार्थमयी दृष्टि से देखा जाता है। उसे प्रताड़ित करते हुए पशु तुल्य समझा जाता है। यही कारण है कि आज नारी को आत्मा हत्या, आत्म-समर्पण और आत्म हनन के लिए बाध्य होना पड़ता है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में नारी की हीन-दशा में कुछ अवश्य सुधार हुआ है। हमारे समाज-सुधारकों और राष्ट्र के कर्णधारों ने नारी को परुष के समकक्ष लाने के लिए अनेक नियम-विधानों को लागू किया है। समाज सेवियों ने महिला-मंडल की स्थापना और महिला-संगठन के द्वारा, भुक्तभोगी नारी को अनेक सुविधा देनी प्रदान कर दी है। पूर्वपक्षा आज नारी सुशिक्षित और समनाधिकारिणी बनने में सबल। हो रही है। फिर भी नारी अब भी पुरुष को भोग्या और दासी ही अधिक है, समकक्ष कम। इतने विकसित युग में नारी को उपेक्षित और शोषित दशा से न उधरते देखकर आज बुद्धिजीवी और समाज के जागरुक प्राणी बड़े ही चिन्तित हैं। नारी को स्वयं कुछ करना होगा। उसे अपना उपकार पथ स्वयं करना पड़ेगा और सच यह है कि वह इसके लिए सबल और समर्थ हैं। वह अबला नहीं सबला है। वह दीन-हीन नहीं। अपितु शक्ति का अक्षय स्रोत है। वही देवी हैं, वही दुर्गा है, वही शिव है। और वही पाणदायिनी है। भाव यह कि सब कुछ करने की संभावना है। अतः आवश्यकता है वह अनीति, अत्याचार और उत्पीड़न का अंत करने के लिए क्राति की ज्वाला और चिंगारी बने। ऐसा इसलिए कि उसने पदाघात और मिथ्याचार को झेला है। शिक्षा और सभ्यता के इस महावेग में भी नारी का आज वही स्थान है, जो वर्षों पूर्व था। वह आज रसोईघर तक सीमित हुई पदनसीन जिन्दगी जीने को बाध्य है। कुछ इन्हीं भावों को प्रस्तुत करते हुए किसी कवि का यह कहना बहुत ही संगत लगता है कि–

कर पदाघात अब मिथ्या के मस्तक पर,

सत्यान्वेषण के पथ पर निकलो नारी।

तुम बहुत दिनों तक बनी दीप कुटिया की,

अब बनो शान्ति की ज्वाला की चिंगारी।।’

ऐसा कदम उठा कर ही नारी अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम कर सकती है। अन्यथा वह युगों की प्रताड़ित युगों युग तक प्रताड़ित होती ही रहेगी। जब तक। नारी उत्थान और प्रगति की दशा को नहीं प्राप्त कर लेगी, तब तक नारी को वह सम्मान नहीं मिलेगा; जो आज अपेक्षित और आवश्यक है। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की ये अमर पंक्तियां नारी-उत्थान के लिए संकेत करती हुई हमें संवेदनशीलता के भावों से भिगोती रहेंगी–

नारी जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी।

अंचल में है दूध, और आँखों में पानी ।।

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