नर हो, न निराश करो मन को
Nar Ho na Nirash karo man ko
Essay No. 1
नर का अर्थ
मुक्ति का उद्देश्य
सफलता की पहली सीढ़ी
निराशा का त्याग
साधारण अर्थ में ‘नर’ और ‘आदमी’ का एक ही अर्थ है, पर जब ‘नर’ शब्द का प्रयोग विशेषण के तौर पर किया जाता है, तो इसका अर्थ है, सर्वश्रेष्ठ प्राणी। कवि हम से कहना चाहता है-आप मनुष्य हो । इस कारण। वीर, साहसी, बुद्धिमान और कर्मशील भी हो। ठीक है, अपना कर्म करने पर भी इस बार तुम्हें सफलता नहीं मिल सकी, पूरा परिश्रम करके भी मनचाहा फल नहीं पा सके, जो चाहते थे, वह नहीं कर पाए। फिर भी इससे निराश होने की क्या बात है?
जीवन पथ के शूलों पर चल जो नर आगे चलता है।
वही पुरुष जीवन रस पाता, भाग्य उसी का फलता है।।
मनुष्य सृष्टि का सबसे श्रेष्ठ प्राणी है। इस श्रेष्ठता का आधार यही है कि उसके पास सोचने-विचारने के लिए बुधि है। भावना, कल्पना और दृढ़ता के लिए मन है। सुख-दुख के क्षणिक भावों से ऊपर उठकर आनंद में । लीन रहने वाली जागृत आत्मा है। जीवन है, तो उसके साथ हार-जीत की कहानियाँ भी जुड़ी हैं। बीमारियाँ और | दुर्घटनाएँ भी पीड़ित तथा परेशान करती ही रहती हैं परंतु इन सबका अर्थ यह तो नहीं है कि निराश होकर बैठ जाओ और कर्तव्यों का पालन करना छोड़ दो। सदियों का इतिहास बताता है कि निराशा त्यागकर मनुष्य ने जब जो । कुछ चाहा, वह उसे अवश्य मिला। इसलिए यदि किसी कारणवश तुम सफलता नहीं पा सके, तो कोई बात नहीं। अभी भी निराशा छोड़कर कर्मपथ पर डट जाओ। सफलता अवश्य मिलेगी। नर हो तो निराशा छोड़ो, आशा को मन में धारण करो।
नर हो, न निराश करो मन को
Nar Ho na Nirash Karo Mann ko
Essay No. 2
निराश न होने की प्रेरणा
निराशा के क्षण में जूझना आवश्यक
कर्म और पौरुष आवश्यक कर्म से निराशा समाप्त
बुरे क्षण समाप्त
अच्छे फल मिलना आरंभ।
ये पक्तियाँ मानव को प्रेरणा देती कि कभी निराश नही। जब भी निराशा तुम्हें घेर ले, तुम यह सोचो कि तुम नर हो। तुम में पौरुष है, उत्साह है, शक्ति है। अतः निराशा से जूझने के लिए मन में शक्ति जगाओ। निराशा से जूझो। नर जितना जितना निराशा के विरुद्ध लडेगा, उतना-इतना प्रकाश फैलता चला जाएगा। इसके विपरीत, जिसने निराशा को मनमानी करने दी, अपनी शक्ति न दिखाई, वह अवश्य ही हताश हो जाएगा। उसका जीवन मुरझा जाएगा। यदि जीवन को उत्साहमय, तेजस्वी और कर्मठ बनाना है तो अपना पौरुष जगाओ, कर्म करो। कर्म करने में निराशा की धुंध अपने आप छँटने लगती है। मनुष्य का मन निराशा की बजाय कुछ करने में बीतने लगता है। इससे एक तो बुरा समय बीत जाता है, दूसरे कर्म का कुछ फल सामने आने लगता है। इसलिए जब भी निराशा के क्षण आएं, मनुष्य को उत्साहपूर्वक कर्म में जुट जाना चाहिए।
नर हो, न निराश करो मन को
Nar Ho na Nirash Karo Mann ko
Essay No. 3
‘नर हो न निराश करो मन को’ उक्ति राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की है। वे नर को उद्यम से उन्नति करने की सीख देते है। जो व्यक्ति मन से हार जाता है वह शरीर से भी हार जाता है। उसकी काम करने में रुचि नहीं रहती। इसलिए कवि नर को प्रबुद्ध कर रहा है कि मन में कभी निराशा मत लाओ। अगर निराश हो गए तो जीवन को प्रगतिशील नहीं बना पाओगे।
मन समस्त इन्द्रियों का स्वामी है। यह गतिविधियों का केन्द्र है। इसी के संकेत से शरीर चलता है। अपने आप में मनुष्य का शरीर लाचार है। उसकी अपनी सीमाएँ हैं। उन्हें वह पार नहीं कर सकता। शरीर आग में जल जाता है, पानी में डूब जाता है, वायू में सूख जाता है, शीत, घाम, और बारिश इसे विचलित कर सकते हैं, तन थक जाता है, टूट जाता है, हिम्मत हार बैठता है, इस शरीर से मनुष्य कुछ नहीं कर सकता। इसे मन का साथ लेना पड़ता है। अतः जब मन में किसी काम को करने को ।
आशा पैदा हो जाती है तब मनुष्य उस काम को करना शुरू कर देता है। इसलिए कहा गया है कि हे मनुष्या तू मन को कभी निराश मत कर। अगर मन निराश हो गया तो किसी काम में सफलता नहीं मिलनी। इसलिए सदा मन में आशा का संचार करता है।
यह शरीर काम करते-करते जब थक जाता है तब उसका मन निराश होने लगता है। उसके मन में ऐसी भावना पैदा होती है कि अब यह काम मेरे बस का नहीं है। यह वह स्थिति होती है जब मन में निराशा का भाव पैदा हो जाता है। ऐसे मन में यह भावना पैदा करनी होती है कि हम इस काम को जरूर पूरा करेंगे। यही मन में आशा का संचरण करता है और हम पुनः कठिन से कठिन काम करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। संसार में इतिहास के ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जब व्यक्ति निराश हो गया तब उसने अपने मन में पुनः आशा का संचरण किया और उस काम में उसे सफलता मिली।
महाराज रणजीत सिंह अपनी सेना के साथ किसी चढ़ाई के लिए जा रहे थे। रास्ते में अटक नदी पड़ी। सेना ठिठक गई। पानी का बहाव तेज है। तैर कर नहीं जाया जा सकता। सारी सेना मन निराश कर खड़ी हो गई। महाराज रणजीत सिंह ने हुकुम दिया अटक है ही नहीं, अपने घोड़े आगे बढ़ाओ। महाराज का यह कथन सेना के निराश मन में आशा का संचार कर गया। महाराज ने नदी में घोड़ा डाल दिया और सेना ने भी उनका अनुकरण किया। अटक नदी पार हो गई। यह इस कथन का साक्षी है कि तुम पुरुष हो, तुम में पौरुष है। इसलिए अपने मन को कभी निराश मत करो। आशावान् मन कभी असफल नहीं होता।
नेपोलियन कहा करता था संसार में कुछ भी असंभव नहीं है। जब वह अपनी सेना लेकर आल्पस पर्वत के पास पहुँचा तो सेना से कहा कि आल्पस पर्वत नहीं है, आगे बढ़ो! सेना आगे बढ़ गई और आल्प्स पर्वत पार हो गया। अत: मनुष्य आगे बढ़ने का जब प्रयास करता है तो उसके मन में आशा का संचरण चाहिए। अगर उसके मन में यह भाव होगा तो वह निश्चित रूप से सफल होगा। इसलिए कहा गया है कि तुम नर हो इसलिए मन निराश मत करो। आशावान् मन तुम्हें सब चला जाएगा।