नैतिक शिक्षा का महत्त्व
Naitik Shiksha ka Mahatva
भूमिका- शिक्षा वह प्रकाश है जिसके द्वारा मनुष्य को जीवन में कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य, उचित और अनुचित का ज्ञान होता है। शिक्षा ज्ञान और विज्ञान, धर्म और दर्शन, राजनीति और इतिहास, कला तथा संस्कृति को समझने का मार्ग खोलती है। सारा धन दौलत, सुख और वैभव नैकिता (सच्चरित्रता) पर खड़े हैं। महाभारत में प्रहलाद की कथा कहती है। प्रहलाद अपने समय का बड़ा प्रतापी और दानी राजा हुआ है। उसने नैतिकता (शील) का सहारा लेकर इन्द्र का राज्य ले लिया। इन्द्र ने ब्राह्मण का रूप धारण करके प्रहलाद के पास जाकर पूछा, “आप को ही लोकों का राज्य कैसे मिला? प्रहलाद ने इसका कारण नैतिकता (शील) को बताया। भारत की नैतिकता इतनी ऊँची थी कि सारा संसार अपने-अपने चरित्र के अनुसार शिक्षा प्राप्त करे, ऐसी घोषणा यहा की जाती थीं। आदिकाल में भारत संसार का गुरू था। वह सोने की चिड़िया के नाम से पुकारा जाता था।”
नैतिक शिक्षा की आवश्यकता- नैतिक शिक्षा का अर्थ धार्मिक शिक्षा से नहीं होता अपितु मानव के चरित्र और नैतिकता से है। नैकिता मानव को कर्तव्य का बोध कराती है। मानव दूसरों के प्रति अपने कर्तव्य को पहचानता है। सच्च बोलना, चोरी न करना, अहिंसा, दूसरों के प्रति उदारता, शिष्टता, विनम्रता आदि गुण नैतिकता में आते हैं। इससे मानव जीवन शान्त और सुखी बनता है। इसकी शिक्षा यदि हम अपने बच्चों को न दें तो वे अच्छे नागरिक नहीं बन सकते। अच्छा नागरिक बनना ही तो अच्छी शिक्षा का उद्देश्य है। भिन्न-भिन्न परिवारों की शिक्षा भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए नैतिकता की शिक्षाकेवल हम शिक्षा संस्थाओं में पाठ्यक्रम का अंग बनाकर दे सकते हैं। इससे हम बच्चों का व्यक्तिगत, सामाजिक तथा राष्ट्रीय चरित्र बना सकते हैं। इसलिए पाठ्यक्रम नैतिक शिक्षा को स्थान अवश्य मिलना चाहिए। नैतिक शिक्षा का अर्थ यह है कि विद्यार्थियों को उदारता, न्यायाप्रियता, कठोर परिश्रम, कृतज्ञता. सत्य भाषण, सहनशीलता, विनम्रता आदि सदगुणों की शिक्षा दी जाए। ।
नैतिक शिक्षा का अभाव के कुपरिणाम- नैतिक शिक्षा के अभाव के कारण ही आज छात्र-जगत में अनुशासनहीनता का बोलबाला है। स्कूलों में धर्म की शिक्षा का बन्द होना अत्यन्त खेद का विषय है। स्कल से बच्चे राष्ट्र के निर्माता बनते हैं। यदि बच्चों को धार्मिक शिक्षा न दी गई तो अपराधों की संख्या बढ़ेगी। छात्रों द्वारा अध्यापकों के प्रति अनुचति व्यवहार, हड़तालों में भाग लेना, बसे जलाना, गन्दी राजनीति में उतरना आदि कुपरिणामों का कारण भी नैतिक शिक्षा की कमी है। नैतिक शिक्षा की कमी के कारण विद्यार्थी मां-बाप का आदर नहीं करते। इसका मख्य कारण है कि बच्चों को चरित्र और व्यावहारिक शिक्षा नहीं दी जाती। नैतिक शिक्षा के बिना ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा मनुष्य को ऊँचा नहीं उठाती।
नैतिकता से मनुष्य सःख और शान्ति प्राप्त करता है। राग-द्वेष, ईर्ष्या, कलह उससे कोसो दूर रहते हैं। शत्र उसके सामने ठहर नहीं सकता। स्वास्थ्य और अच्छी बुद्धि नैतिकता से ही बनती है। नैतिकता से मनष्य ज्यादा से ज्यादा धन कमा सकता है। यह शिक्षा केवल पाठ्यक्रम का अंग बनाकर ही दी जा सकती है।
उपसंहार- स्पष्ट है कि नैतिक शिक्षा ही मानव को मानव बनाती है। मानव के चरित्र निर्माण के लिए नैतिक शिक्षा अनिवार्य है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों का निरन्तर ह्वास हो रहा है। गुरुजनों का आदर नहीं रहा। माता-पिता का सम्मान नहीं रहा। अत: शिक्षा शास्त्रियों का यह कर्तव्य है कि वे पाठ्यक्रम तय करते समय नैतिक शिक्षा को आँखों से ओझल न करें।