नैतिक पतन: देश का पतन
Naitik Patan : Desh ka Patan
Essay # 1
धन-दौलत, सुख और वैभव नैतिकता (सच्चरित्रता) पर खड़े हैं। महाभारत में प्रहलाद की कथा आती है। प्रहलाद की कथा आती है। प्रह्लाद अपने समय का बड़ा प्रतापी और दानी राजा हुआ है। इसने नैतिकता (शील) का सहारा लेकर इन्द्र को राज्य ले लिया। इन्द्र ने ब्राह्मण का रूप धारण करके प्रह्लाद के पास जाकर पूछा, “आपको तीन लोकों का राज्य कैसे मिला ?’ प्रहलाद ने इसका कारण नैतिकता (शील) को बताया। इन्द्र की सेवा से प्रसन्न होकर उसने वर मांगने के लिए कहा। इन्द्र ने नैतिकता (शील) मांग लिया। वचन से बंधे होने के कारण प्रह्लाद को नैतिकता (शील) देनी पड़ी। शील के जाते ही धर्म, सत्य, सदाचार, बल, लक्ष्मी सब चले गए, क्योंकि ये सव वहाँ ही रहते हैं, जहाँ शील हो। भारेत की। नैतिकता (सच्चरित्रता) इतनी ऊँची थी कि सारा संसार अपने-अपने चरित्र के अनुसार। शिक्षा प्राप्त करे, ऐसी घोषणा यहाँ की जाती थी।
अतीतकाल में भारत संसार का गुरु था। वह सोने की चिड़िया के नाम से पुकारा जाता था। नैतिकता का जब इतना महत्त्व है, तब उसे शिक्षा में से निकाल कर परे क्यों किया गया, समझ में नहीं आता ? नैतिकता (शीत) ही मनुष्य का सब कुछ है। उसके बिना मनुष्य का कोई मूल्य नहीं।
सच बोलना, चोरी न करना, अहिंसा, दूसरे के प्रति उदारता, शिष्टता, विनम्रता, सुशीलता और गुण नैतिकता में आते हैं। इनसे मानव जीनव शान्त और सुखी बनता है। इनकी शिक्षा यदि हम अपने बच्चों को न दें, तो वे अच्छे नागरिक नहीं बन सकते। अच्छा नागरिक बनना हो, तो अच्छी शिक्षा का उद्देश्य है। भिन्न-भिन्न परिवारों की शिक्षा भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए नैतिकता सच्चरित्रता की शिक्षा केवल हम शिक्षा संस्थाओं में पाठ्यक्रम का अंग बना कर दे सकते हैं। इससे हम बच्चों का यदितगत (निजी), सामाजिक तथा राष्ट्रीय चरित्र बना सकते हैं। इसलिए पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा का स्थान अवश्य मिलना चाहिए।
नैतिक शिक्षा के अभाव के कारण ही आज छात्र-जगत् में अनुशासनहीनता का बोलबाला है। छात्रों द्वारा अध्यापकों के प्रति अनुचित व्यवहार, हड़तालों में भाग लेना, बसें जलाना, गंदी राजनीति में उतरना आदि कुपरिणामों का कारण भी नैतिक शिक्षा की कमी है। यही कारण है कि आज का शिक्षित व्यक्ति भी चरित्र से रूठा दिखाई देता है। शिक्षा को सभ्यता और संस्कृति की कसौटी नहीं माना जाता। नैतिक शिक्षा के बिना ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा मनुष्य को ऊँचा नहीं उठाती। आज सम्पूर्ण देश में जो भ्रष्टाचार, बेईमानी तथा लूट-खसोट जारी है, इसका एकमात्र कारण नैतिकता का अभाव है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि नैतिक पतन देश – के पतन का कारण है।
धर्म और नैतिकता दोनों भिन्न हैं। प्रत्येक धर्म का आधार नैतिकता है। सत्य भाषण, उदारता, शिष्टता, (सज्जनता) सभ्यता, सुशीलता, हमदर्दी आदि गुण नैतिकता में आते हैं। पर धर्म में स्वार्थ का थोड़ा-सा प्रवेश होते ही वह सम्प्रदाय में बदल जाता है। इसी कारण सम्प्रदाय में कोई बुराई हो सकती है, पर नैतिकता में नहीं क्योंकि कोई धर्म चोरी, ठगी, बराई करने की आज्ञा नहीं देता। इसलिए पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा बिना प्रयत्न के दी जा सकती है।
नैतिकता से मनुष्य सुख और शान्ति प्राप्त करता है। राग-द्वेष, ईष्या, कलह (लड़ाई-झगड़ा) उससे कोसों दूर रहते हैं। अपने कल्याण के साध वह देश और समाज का कल्याण भी करता है। सच्चरित्र बनने से मनुष्य शुरवीर, धीर और निडर बनता है। शत्रु उसके सामने ठहर नहीं सकता। स्वास्थ्य और अच्छी बुद्धि भी नैतिकता से बनती है। कठिन-से-कठिन काम नैतिकता के बल पर पूरा किया जा सकता है। नैतिकता से मनुष्य अधिक-से-अधिक धन कमा सकता है। यह शिक्षा किसी कारखाने में नहीं दी जा सकती। यह तो पाठ्यक्रम में जरूरी विषय बनाने पर ही दी जा सकती ।
स्पष्ट हो जाता है कि नैतिकता मानव को मानव बनती है। नैतिक गुणों के बल पर ही मनुष्य वन्दनीय बनता है। अतः शिक्षा-शास्त्रियों का यह कर्तव्य है कि – वे पाठ्यक्रम तय करते समय नैतिक शिक्षा की आँखों से ओझल न करें क्योंकि नैतिक उत्थान देश का उत्थान तथा नैतिक पतन देश का पतन है।
नैतिक पतन देश का पतन
Naitik Patan Desh Ka Patan
Essay # 2
नैतिकत • मानव की श्रेष्ठता की कसौटी • समाज की उन्नति की आधारशिला • नैतिक पतन के दुष्परिणाम और वर्तमान स्थिति • समाधान
मनुष्य को समाज में रहते हुए किस प्रकार का आचरण करना चाहिए इसका निर्धारण करने वाले नियम नाति कहलाते हैं और उन नियमों का पालन करने को नैतिकता कहते हैं। इस प्रकार एक श्रेष्ठ मनुष्य की कसौटी नैतिकता है। एक उन्नत समाज वही कहलाता है जो कि समाज के नियमों का स्वयं अपनी इच्छा से पालन करता हो। भय के कारण नियमों का पालन करना एक बात है। वह अच्छा तो है किंतु आदर्श नहीं। आदर्श समाज वही है जो अपने नियमों को अपना संस्कार बना ले। यदि समाज चोरी और झूठ बोलने को अनैतिक मानता है तो उसे स्वभाववश ईमानदार होना चाहिए। जिस देश के लोग नैतिक नियमों का पालन नहीं करते, वह समाज धीरे-धीरे पतन के गर्त में गिर जाता है। भारत की दुर्गति का मूल कारण उसका अनैतिक होना है। यहाँ भ्रष्टाचार को बुरा नहीं माना जाता। यहाँ के नेता अनैतिक कारणों से जेल में भी जाते हैं, फिर भी चुनाव में चुन लिए जाते हैं। इसका अर्थ है कि लोगों ने उनकी अनैतिकता को स्वीकार कर लिया है। किसी चोर, भ्रष्ट और बेईमान नेता का चुना जाना अनैतिक समाज को निशानी है। ऐसे समाज में किसी प्रकार की उन्नति नहीं हो सकती। भारत के नेताओं ने देश का अरबों रुपया विदेशों में जमा कर लिया है, फिर भी लोग उन्हें समर्थन दे रहे हैं। इसका अर्थ है कि हम नैतिक रूप से बहुत कमजोर हो चुके हैं। इस कमजोरी से उबरने का कोई जादुई उपाय नहीं है। जब समाज में कोई प्रखर नेता नैतिकता का झंडा बुलंद करेगा और लोग उसके पीछे चलेंगे तो समाज में नई करवट आएगी। तब तक हमें नैतिकता को बचाने के विचार को जिंदा रखना होगा।
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