Hindi Essay on “Mitrata”, “मित्रता”, Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

मित्रता

Mitrata 

निबंध नंबर :- 01

व्यक्ति शिशु रूप में जैसे ही जन्म लेता है, माँ-बाप, भाई-बहन और चाचा-चाची आदि पारिवारिक सदस्य उसे स्वतः ही मिल जाते हैं। लेकिन घर के बाहर एक अजनबी दुनिया में वह जिन लोगों के संपर्क में आकर, उन्हें अपना सहयोगी बनता है, उन्हें मित्र और उनकी आपसी भावनाओं को मित्रता का नाम दिया जाता है।

निष्ठापूर्ण मित्रता निश्चय ही ईश्वर की देन है। साथ ही यह मनुष्य के पुण्य कर्मो का भी फल है। कितने ही ऐसे मनुष्य दुनिया में हैं, जिनको कभी मित्रता का कुछ पता ही नहीं चलता किन्तु वे दुनिया की भीड़ में चलते जाते है। कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें मित्रता की आवश्यकता ही नहीं है। यह नहीं हो सकता, क्योंकि पारंपरिक या अपारंपरिक रूप से हर मनुष्य किसी न किसी से मित्रता करता है। चाहे वह ईश्वर से करे, चाहे किसी मनुष्य से, चाहे अपने संबंधियों से या चाहे फिर अपने किसी पालतू जानवर से। मित्रता मनुष्य का सहारा है। उसके विचारों को कोई सुनने वाला, उसके साथ रहने वाला, साथ हँसने वाला, खेलने वाला, घूमने वाला और पढ़ने वाला हमेशा चाहिए। एक सच्चा मित्र किसी भी खजाने से कम नहीं होता। जैसा कि कहा भी जाता है “एक और एक ग्यारह होते हैं।” उसी प्रकार एक सच्चा मित्र निश्चय ही ईश्वर की बहुत बड़ी देन होता है। कहते हैं, “निंदा हमारी जो करे, मित्र हमारा होय” यह एक प्राचीनकाल से चली आ रही उक्ति है, जिसका तात्पर्य है- हमें सुधारने वाला, सही दिशा पर ले जाने वाला ही हमारा मित्र है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि कोई हमारी लगातार निंदा करता रहे और उसको हम अपना मित्र कहते रहें। निंदा भी सही ढंग से, समझदारी से की जानी चाहिए, क्योंकि गलत समय पर की गई निंदा व्यक्ति को आत्मविश्वासहीन भी बना सकती है और फिर उस आत्मविश्वासहीनता से ऊपर उठना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए मित्र बनाते समय हम अपने और उसके मानसिक स्तर को समझें, टटोलें और स्वीकार करें। यदि वह आपसे बढ़कर है तो भी आप अभिमान त्यागकर उसको स्वीकार करें यदि वो अपासे कम है तो भी आप उससे सहानभति रखकर उसे स्वीकार करें। यही सब बातें एक अच्छी मित्रता की निशानी है।

वास्तव में मित्रता आंनद के लिए होती है। व्यक्ति को अपने जीवन में आनंद चाहिए। वह आंनद पाने के लिए निरंतर यत्न करता रहता है और जब वह साथी मिल जाता है तो उसे वह अपना मित्र बना लेता है। मित्र के साथ नि:संदेह हम अपने मन की सारी बातें कह सकते हैं। अपनी परेशानियों और दुखों का निवारण कर सकते हैं। परन्तु जैसे हर अधिकार के साथ एक कर्त्तव्य जुड़ा होता है। इसी प्रकार मित्रता का आनंद उठाने के साथ भी एक कर्त्तव्य जुड़ा होता है। वह एक पुरानी कहावत के अनुसार, “जरूरत के समय मित्रता निभाने वाला व्यक्ति ही वास्तविक मित्र है।” एक मित्र की वास्तविकता का पता होना जरुरी है क्योंकि यदि हमने मतलब के दोस्त बना लिए तो हमें अपने ऊपर ही दया आने लगेगी। हमारा आत्मविश्वास कम हो जाएगा और हमारा सारा प्रेम खत्म हो जाएगा। हम बाहर से भले ही बिल्कुल ठीक लगें, लेकिन अंदर से हम अपने विचारों और आदर्शों से भटक कर निराश हो जाएंगे। इस हालत में यदि किसी को सच्ची मित्रता न मिले तो वह व्यक्ति निराश न हो और अपने आपको. किताबों या अपनी किसी कला और शौक को ही अपना परम मित्र बना ले। यह एक ऐसी मित्रता होगी जो बिना किसी शोर-शराबे के अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति की हमेशा मदद करेगी।

मित्रता अपने भौतिक रूप में वही है जो हमारे साथ रहती है और हर कार्य में सहयोगी बनती है। वह मित्र जो सच्चा है. हमें जीवन के प्रति विश्वास दिलाता है, वह त्याग करता है, वह सत्यनिष्ठा और उदारता से हमारे हृदय में अपनी जगह बना लेता है।

ऐसा मित्र हमारे परिवार का एक सदस्य भी बन जाता है। वह हमारे लिए उतना ही महत्वपूर्ण हो जाता है जितना कि परिवार का कोई सदस्य। जब हमें परिवार के बाहर एक ऐसा मित्र मिल जाए तो फिर हमें ईश्वर से और क्या चाहिए! वह मित्रता के रूप में हमें ईश्वर का ही वरदान है।

मित्रता प्यार और सम्मान का नाजुक रेशमी धागा है, जो दो ऐसे प्राणियों को एक-दूसरे से बाँध देता है। जबकि उनका खून का रिश्ता भी नहीं होता। यह व्यक्ति की अमूल्य धरोहर भी है जो जीवन में मधुरता और सरस-प्रियता का संचार कर देती है। व्यक्ति को अपने जीवन में बहुत से सुख मित्रता द्वारा ही प्राप्त होते हैं।

मानव की सामाजिकता ने उसे मित्र बनाने के लिए मजबूर किया। जीवन की यात्रा में हम असंख्य लोगों से मिलते हैं परन्तु हरेक को हम अपना मित्र नहीं बना लेते जबकि मैत्री-भाव की कल्पना हम हमेशा करते रहते हैं। हमारे मित्र हमारी रुचियों, स्वभाव आदि की वजह से ही नहीं बनते बल्कि कभी-कभी हमारी मित्रता सिर्फ वास्तविकता के कारण हो जाती है जब दो हृदयों का भावनात्मक स्तर एक ही हो तब भी मित्रता होना स्वाभाविक हो जाती है।

हम सभी का जीवन छोटा-सा है। इसमे हंसी-खुशी के क्षण थोड़े ही हैं, जबकि दु:खों और चिंताओं की घड़ियाँ लंबी होती है। मित्र दु:ख भरे जीवन में सूर्य के प्रकाश के समान आनंद का वातावरण बना देते हैं। कभी-कभी समृद्धि भी मित्र बनाती है, परन्तु संकटकाल उनकी परीक्षा लेता है। अतः “मित्रता वही है जो जीवन के हर परिवर्तन में निरंतर सुखदायक हो।

शेक्सपीयर के ‘मर्चेट ऑफ वेनिस’ में दिखाई गई मित्रता अविस्मरणीय है। एक मित्र अपने मित्र के लिए जान देने को भी तैयार हो जाता है।

ऐसा ही एक उदाहरण है जिसमें एन्टोनियो अपने मित्र बेसेनियो की सहायता करने के लिए अपने मांस का एक पौंड देने के लिए तैयार हो जाता है।

एक दूसरे उदाहरण में हम कर्ण की दुर्योधन से मित्रता का उदाहरण देखते हैं कि जब कर्ण को पता चल जाता है कि पांडव उसके भाई हैं तब भी वह उनके साथ नहीं मिलता। वह दुर्योधन के साथ रहने में ही अपना धर्म और कर्त्तव्य मानता है। इस मित्रता में हमें दुर्योधन से कर्ण की मित्रता और धर्म ज्ञान के बारे मे जानकारी मिलती है।

मित्रता बिना किसी कानूनी दबाव के एक पवित्र आस्था है। इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण भी हैं जब किसी धोबी की भूल के कारण हमारी मित्रता को चोट पहुँच जाती है या टूट जाती है। इसलिए अपने मित्र से मित्रता बनाए रखने के लिए हमें बहुत ही सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। इसके लिए व्यक्ति को बहुत अधिक आत्म-नियंत्रण करना चाहिए और अपने मित्र से व्यवहार करते समय विनम्रता पूर्ण युक्तियों का सहारा लेना चाहिए।

निबंध नंबर :- 02

 

मित्रता

Mitrata

भूमिका- जीवन में प्रगति करने के लिए अनेक साधनों की आवश्यकता होती है जीवन को सुखमय बनाने के लिए ही साधन ‘मित्रता’ के प्राप्त होने पर सभी साधन स्वयं ही एकत्रित हो जाते हैं। वास्तव में एक अच्छे मित्र की प्राप्ति सौभाग्य से ही होती है। मानव एक सामाजिक प्राणी है। मित्र के सामने आते ही उसका नाम लेते ही चेहरे का रंग बदल जाता है। मित्र को हृदय से लगाने से जो अपूर्व शक्ति मिलती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। जिस व्यक्ति का कोई मित्र नहीं, उसकी जीवन यात्रा एक भार है।

मित्रता का अर्थ- मित्रता का शाब्दिक सरल अर्थहै मित्र होना। लेकिन मित्र होने का तात्पर्य यह कदापि नहीं कि वे एक साथही रहते हों, उनका स्वभाव एक जैसा हो, वे एक ही जैसा कार्य करते हों। मित्रता का अर्थ है जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शुभचिंतक हो। मित्रता केवल सुख के ही क्षणों की कामना नहीं करती है। दु:ख के क्षणों भी मित्रता ढाल बन करआती है और मित्र की रक्षा करने के लिए तत्पर होती है। मित्रता के लिए कोई बनाए हए नियम नहीं हैं कि मित्रता किस से करनी चाहिए। मित्रता अवस्था के अनुसार हो सकती है जैसे बालक, बालक के साथ रहना और मित्रता करना पसन्द करता है तथा युवक-,युवक के साथ, वृद्ध व्यक्ति वृद्धों के साथ मित्रता करना पसन्द करते हैं। पर यह नियम अनिवार्य नहीं है। प्राय: देखा गया है कि पुरुष, पुरुषों के साथ और स्त्रियां- स्त्रियों के साथ मित्रता करती हैं। संक्षेप में में कहा जा सकता है कि मित्र वह साथी है जिसे हम अपने सभी रहस्यों, संकटों और सुःखों के साथी बनाते हैं।

आदर्श मित्रों के उदाहरण- ‘संस्कृत साहित्य में आदर्श मित्रों की कहानियों के अनेक उदाहरण मिलते हैं। एक अच्छे और एक लंगड़े की कहानी भी सभी जानते हैं। इन कहानियों के अतिरिक्त भी मित्रता के उदाहरण मिलते हैं। रामायण में राम और लक्ष्मण भाई-भाई थे। राम और लक्ष्मण की प्रवृत्ति भिन्न-भिन्न थी फिर भी अन्त तक उनकी मित्रता सच्ची बनी रही। इसी प्रकार राम ने सुग्रीव तथा विभीषण के साथ मित्रता निभाई थी। महाभारत में दुर्योधन तथा कर्ण की मित्रता का उदाहरण मिलता है। कृष्ण और सुदामा की मित्रता को कौन नहीं जानता है। बानर को यदि पश माने तो राम ने पशुओं से भी मित्रता स्थापित की तथा दोनों पक्षों ने अपने आदर्श के अनुसार यह मित्रता निभाई भी है। अनेक बार ऐसे उदाहरण भी पढ़ने को मिलते हैं जब कुत्ते ने अपने मालिक से अपनी मित्रता निभाते हुए अपने प्राणो का बलिदान दे दिया। प्रसिद्ध विचारक फ्रेंकलिन ने कहा है कि जीवन के तीन ही सच्चे मित्र होते हैं- वृद्धावस्था में पत्नी, हाथ का धन और पुराना कुत्ता।

मित्र के लक्षण- आचार्य राम चन्द्र शुकल मित्र के विषय में लिखते हैं- “विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक है। औषधि है। सच्ची मित्रता में उत्तम वैध की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का धैर्य और काल कोमलता होती है।” सच्चा मित्र वही होता है जो दु:खों के समय साथ निभाता है। सम्पत्ति और सुख होने पर तो नेक लोग मित्रता करने के लिए लालायित हो जाते हैं लेकिन दुःख ही सच्चे मित्रों को पहचान करता है। सच्चा मित्र दैव अपने मित्र की हित-कामना करता है। अच्छा मित्र अपने मित्र की बुराइयों के सबके सम्मुख प्रकट कर उसे पमानित नहीं करता है। आदर्श मित्रता ऐसी होनी चाहिए जैसे कृष्ण और सुदामा की ।

उपसंहार- मित्रता वास्तव में वह खजाना है जिससे व्यक्ति किसी भी प्रकार की अच्छी वस्तु प्राप्त कर सकता ता है। जीवन में मित्रता परखने के पश्चात ही करनी चाहिए। अंग्रेजी में एक सूकित है- मित्र वही हो जो आवश्यकता समय काम आए। सच्चा मित्र हमेशा हितैषी होता है।

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