मिलावट
Milavat
अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए व्यापारी लोग खाने-पीने की जनोपयोगी चीजों में मिलावट कर दिया करते हैं। खाने की चीजों में मिलावट होने से मनष्य का स्वास्थ्य ही चौपट हो जाता है। चावलों में सफेद पत्थर का मिलाना, काली मिर्च में पपीते के बीज का मिलाना, पिसे धनिए में सूखी लीद का मिलाना अब एक आम बात हो चली है।
देशी घी में वनस्पति तेल मिलाकर उसे ऊँचे दामों पर बेचा जाता है। इसी तरह वनस्पति घी में तेल की मिलावट की जाती है। अचारों के अन्दर सड़े अचार मिला दिए जाते हैं, हल्दी में गधे की लीद मिला दी जाती है। सरसों के तेल में भी मिलावट होने के कारण उसमें उतनी चिकनाहट नहीं रहती।
ऐसी मिलावटी चीजों को खाने से आदमी के शरीर में तरह-तरह के रोग और एलर्जी पैदा हो जाती है। जब बादाम रोगन में खुशबू के लिए सेंट मिलाया जाएगा तो उससे शरीर को नुकसान होगा ही।
शरीर के लिए आँख, दाँत और मस्तिष्क सबसे उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण अंग हैं। आँखों के जरिए आदमी संसार की भौतिक वस्तुएँ देखता है तथा सारे क्रियाकलाप सफल करता है। इसी तरह दाँतों के द्वारा ही वह भोजन को चबाकर निगलता है और उस भोजन से रक्त बनता है तथा सारे शरीर का पोषण होता है। मस्तिष्क के जरिए आदमी तरह-तरह की बातें सोच पाता है तथा जरूरी कार्यों को अंजाम दे पाता है।
आँखों की सुरक्षा के लिए बाजार में (दूकानों पर) जो अंजन मिलता है, वह । सौ प्रतिशत शुद्ध नहीं होता। अंजन में मिलावट होने से वह आँखों को लाभ पहुँचाने के बजाय नुकसान पहुंचाता है। इसी तरह दाँतों की सुरक्षा के लिए जो टूथपेस्ट बाजार में मिलते हैं उसमें भी कई हानिकारक केमिकल मिले रहते हैं जो दाँतों को तो दुध जैसा सफेद कर देते हैं लेकिन दाँतों की जड़ों को खोखली और कमजोर कर देते।
जब आदमी के मस्तिष्क में दर्द होता है तो वह सिर के दर्द से राहत पाने के लिए बाम लगाता है। वह बाम भी पूरा शुद्ध नहीं होता। मिलावटी बाम सिर का दर्द तो दूर कर नहीं पाता, उल्टे शरीर में दर्द पैदा कर देता है।
चतुर चालाक ठेकेदार सरकारी भवन बनाने के जो ठेके सरकार से लेते हैं-उन ठेकों में अक्सर करके मिलावटी या नकली सीमेण्ट का इस्तेमाल करते हैं। सीमेण्ट में ज्यादा रेत का प्रयोग करने से और रेत में मिट्टी की मिलावट करने से जो भवन बनते हैं वे अधिक समय तक टिक नहीं पाते और और समय से पूर्व ठेकेदारों के जरिए ही उनको तुड़वा दिया जाता है, फिर सरकारी बजट से वहाँ पुनः नई इमारत बनाई जाती है। मिलावट के सम्बन्ध में स्वामी रामतीर्थ की एक बड़ी रोचक कथा है-स्वामी रामतीर्थ ने एक बार शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए बाजार से दूध खरीदा। वह दूध पानी की मिलावट का था। दूध में पानी अधिक मात्रा में मिलाया गया था। स्वामीजी दूध वाले के पास गए और उससे कहना चाहा कि दूध में पानी की मिलावट है, तुमने ऐसा घटिया दूध क्यों दिया लेकिन वे अपने मुख से कुछ कह नहीं पाए। उल्टे अपना सिर ही धुनने लगे। स्वामीजी को अपना सिर पीटते देख उनके कई शिष्य वहाँ आ गए। उन्होंने समस्या का कारण जानना चाहा तो रामतीर्थ बोले-“किससे किसकी शिकायत करूँ? सरकार के आँख कान तो नहीं हैं जो वह बाजार की हालत को देखे और सुने। दूध वाले के सिर पर लोभ का भूत सवार है
स्वामी रामतीर्थ के एक न्यायाधीश शिष्य ने कहा कि उस दुग्ध-विक्रेता को कठोर दण्ड दिया जाए जो दूध में पाती मिलाता है। इस पर स्वामी रामतीर्थ ने वहाँ से चलते हुए कहा-“पहले मुझे इस दूध विक्रेता से कम दर्जे का अपराधी खोज लेने दो तब मैं इसको दण्ड देने के बारे में सोचूंगा।” मिलावट का धंधा देशवासियों को और राष्ट्र को बड़ा नुकसान पहुँचाता है। मिलावट का बुरा कर्म लोभी-व्यापारियों के मानसिक-पतन का सूचक है।
देश की जनता को चाहिए कि वस्तुओं को खरीदने के सम्बन्ध में पूरी सतर्कता बरतें। वस्तु खरीदने से पहले इस पर आई.एस.आई. मार्का या ट्रेड मार्क जरूर देख लें।
नकली ग्लूकोज के इंजेक्शनों से अनेक रोगियों की मृत्यु हो जाती है। औषधियों में चूहे मारने वाली दवा का प्रयोग करने से पंजाब में 50 बच्चे मौत का शिकार हो गए। ऐस्प्रों की नकली गोली आदमी को अल्परक्तचाप का शिकार बना देती है। सिरदर्द की टिकिया में चाक का पाउडर मिला होने से गुर्दे की पथरी बन जाती है। इस प्रकार लोभी दवा निर्माताओं के षड्यन्त्र का शिकार देश की सामान्य भोली-भाली जनता को भुगतना पड़ता है।