मेरी प्यारी माँ
Meri Pyari Maa
माँ की ममता और आँचल के अनुराग से कौन परिचित नहीं है। कविवर सुमित्रानन्दन पंत सरीखे बहुत कम ऐसे अभागे मनुष्य हैं जिन्हें माँ के आँचल की ओट नहीं मिली। इस पूरी दुनिया को यदि एक मन्दिर माना जाए तो निश्चय ही माँ उस में प्रतिस्थापित ईश्वर की प्रतिमूर्ति है और यही कारण है कि दुनिया में आने वाला मानव जीवन में सबसे पहले। माँ शब्द से ही परिचित होता है। सबसे पहले वह माँ के आँचल को पहचानता है। माँ निश्चय ही जननी है, निर्माणकर्ता है, इसीलिए भगवान् की प्रतिपूर्ति है। लड़कियों का। तो पहले माँ से सबसे अधिक लगाव होता है। विवाह हो जाने के पश्चात् बाल-बच्चे वाली हो जाने पर भी लड़की इस लगाव को नहीं त्यागती। इसीलिए किसी विद्वान् समाज-शास्त्री ने कहा है कि लड़की की सबसे पक्की सहेली माँ होती है क्योंकि जो बात वह खुलकर निभर्य होकर माँ से कर सकती है वह बात न तो पिता से कर पाती है और न ही पति से। यह माँ ही होती है जिसे लड़की के विवाह की सबसे अधिक चिन्ता होती है। पिता तो घर से बाहर अपने काम काज में व्यस्त रहता है उसे कभी-कभी लड़की के जवान हान, विवाह योग्य होने का आभास ही नहीं होता। माँ ही लोकगीतों की सहायता से पिता को याद दिलाती है—
रौं गूड़ी नींदर बाबुल न सोयों,
घर धी होई मुटियार।
लड़की भी पिता से स्पष्ट शब्दों में अपनी पसन्द के बारे में कुछ नहीं कह सकती। वह भी लोकगीतों का सहारा लेकर अपनी इच्छा इन शब्दों में व्यक्त करती है—देवीं वे बाबुला उस घरे जित्थे सस्स भली परधान सोहरा सरदार होवे। लड़की की विदाई के समय सबसे अधिक माँ ही दु:खी होती है। शायद आपको लगे कि आज के इस भौतिक युग में, विज्ञान के युग में ये सारी बातें पुरानी हो गयी हैं। आप कहें कि अब माँ लड़की की विदाई पर रोती नहीं बल्कि खुश होती है कि उसकी लड़की का ब्याह तो हुआ। किन्तु यह सच नहीं है। माँ बेटी का सम्बन्ध आज भी वैसा है जैसा वर्षों पहले था। माना कि पुराने समय में माँ लड़की की अपेक्षा लड़के को अधिक महत्त्व देती थी। प्रेमचन्द ने ‘निर्मला’ में कल्याणी से कहलवाया है
‘लड़के हल के बैल हैं,
भूसे खाली पर पहला एक हक उनका है,
उनके खाने से जो बचे वह गायों का।
परन्तु आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं लड़कियाँ लड़कों से अधिक माँ-बाप की सेवा करती हैं। माता-पिता भी लड़कियों के खाने-पीने, पहनने, पढ़ने पर अधिक ध्यान देने लगे हैं। भले ही लोग लड़की को पराया धन कहें किन्तु माँ के लिए तो लड़की स्थायी धन है। माँ की ममता, माँ के उपकार का बदला तो जन्म जन्मान्तरों तक नहीं चुकाया जा सकता। चाहे लड़का हो चाहे लड़की।