Hindi Essay on “Mere Jeevan ka Mukhya Udeshya”, “मेरे जीवन का मुख्य उद्देश्य”, Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

मेरे जीवन का मुख्य उद्देश्य

Mere Jeevan ka Mukhya Udeshya

 

यथार्थ रूप से यदि हम जीवन को समझें तो हम मानेंगे कि जीवन में अपने भौतिक उद्देश्यों की प्राप्ति करने के बाद भी अपने मन को खश करने के लिए एक ऐसी चीज की आवश्यकता होती है जो हमें आनंद दे सके लेकिन हो सकता है कि वह चीज इतनी आदर्शपूर्ण न हो। परन्तु हमार आदर्श भी उसी बात पर निर्भर करता है कि हमें आनंद आ रहा है या नहीं हम बाल्यावस्था से ही संघर्ष करते हैं और जीवनभर किसी न किसी तरह का संघर्ष करते रहते हैं। इस संघर्ष में हमारी बहुत सारी जिम्मेवारियाँ सम्मलित होती है। हमारे उद्देश्य हमारे कर्तव्यों को लेकर बंधे हुए होते हैं। लेकिन पूरा होने के बाद भी उसकी कुछ चाह अधूरी रह जाती है। उसकी कोई न कोई कमजोरी तो होती ही है। जो कमजोरी उसको आंनद देती है जरूरी नहीं कि वह कमजोरी आदर्शपूर्ण हो।

जैसे कि एक फुटबाल का मशहूर खिलाड़ी है वह सारे दिन कठोर परिश्रम करता है, परन्तु घर पर आकर सबसे पहले कमरे में शास्त्रीय संगीत चला देता है, यह उसका आंतरिक आनंद है। जिससे उसकी दिन भर की थकान मिट जाती है और उसकी आत्मा शान्त हो जाती है।

दो प्राणी एक समान नहीं होते। जीवन में लोग जिन तरीकों से सुख प्राप्त करना चाहते हैं, वे एक जैसे नहीं होते। हालांकि यह दृश्य साधनों से लेकर साध्य तक दिखाई देता है। अपने आप स्वभाव तथा बौद्धिक क्षमता के द्वारा अधिकतम सुख प्राप्त करने का यह तरीका तय होता है।

‘झोबौ द ग्रीक’ का कहना है कि “जीवन का प्याला पीने और उससे रोमांच प्राप्त करने का सही तरीका भरपूर शारीरिक सुख प्राप्त करने का है।” वह किसी भाग्यवादी की तरह, अपनी इच्छाओं पर बिना किसी रोक-टोक के सोचता है, और जीता है।

‘बाबर’ ने कहा है, “बाबर मजे उड़ाओ क्योंकि जीने के लिए तुम्हारे पास , दसरी जिंदगी नहीं है।” इससे ऐसा लगता है कि उसके विचार में जीवन का अंतिम लक्ष्य सुख के अलावा कुछ नहीं है। अगर उसका विचार ऐसा नहीं होता तो भारत का एक हिस्सा जीत लेने के बाद भी वह समरकंद के सुखों की हसरत भरी यादें नहीं याद करता। महान फारसी शायर उमर ख्य्याम ने कहा है “आंनद जीवन के लिए जरूरी है।”

कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि इंद्रियों को रोमांचित करने वाले सुख से बेहतर और कुछ नहीं है, तो दूसरे कुछ लोग अपनी बुद्धि को उकसाने वाले और अपने सौन्दर्य बोध को संतुष्ट करने वाले साधनों से यह सुख प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। कुछ कहानी लिखने से सुख प्राप्त करते हैं, कुछ कहानी पढ़ने से, कुछ तड़क-भड़क वाली फिल्में देखने से और कुछ सत्यजीत राय की शांत फिल्में देखना पसंद करते हैं। यह तो हमारी रुचि और सुख की अपनी-अपनी धारणा का सवाल है। सुख हमारे जीवन का उद्देश्य बना रहता है।

ऐसी हालत में ‘युद्ध और शांति’ पर बनी फिल्म देखने की बजाय हम मूल उपन्यास पढ़ना पसंद करते हैं। बात अपनी-अपनी पसंद की है और कुछ नहीं।

जब कोई दुख की भावना में गीत लिखता है तो वह अपने अंदर इससे सुख पैदा होता हुआ महसूस करता है। इस साधना से चाहे नोबेल पुरस्कार भले ही न मिले वह राष्ट्रकवि भले ही न बने, लेकिन यदि हम उस से कविता को छीनकर उसे ऐसी वस्तुदे देते हैं जो बहुतेरे पसंद करते हैं तो वह उसी तरह तड़पेगा जैसे कोई मछली बिना जल के तड़पती है। उसके जीवन का उदेश्य यही होता है कि वह अपनी कविता, चित्र या कहानी के सहवास में ही मजे ले।  ग़ालिब ने अपने उस आश्रयदाता मित्र को भले ही पत्र लिखे हों, जो ग़ालिब कि शिकायत करता है। लेकिन पता नहीं गालिब की जिंदगी तब भी उतनी मजेदार होती, जब उसके पास पीने के लिए खूब शराब तो होती और वह नज्में न लिख रहा होता।

चित्रकार को भी जीने की ललक कम नहीं होती। वे भी प्रेम के लिए तरसते रहते हैं। उनका अपने मन का सौन्दर्य चाहे कितना भी अधिक क्यों ‘न हो, परन्तु उनको सच्चा सुख अपनी कल्पना को केनवस पर उतारकर ही मिलता है। उससे ही उनको सच्चा साथ और सच्चा अस्तित्व प्राप्त होता है।

जहाँ कुछ लोग जीवन के आनंद को शराब ही मानते हैं। वे रविशंकर और बिस्मिल्ला खाँ जैसे संगीतकारों के बारे में क्या कहेंगे। जिनका संगीत उनके लिए सब कुछ है।

‘कुन्दल लाल सहगल’ ने बोतल और अभिनय में प्राप्त होने वाली धनराशि से प्यार किया होगा, लेकिन जीवन का आनंद उसे कंठ संगीत से ही मिलता था। मुहम्मद अजहरुदीन जैसे खिलाड़ियों ने भारत का नाम जरूर ऊँचा किया है, लेकिन उसको वास्तविक आनंद तो ढेर सारी घड़ियाँ खरीदने में ही आता है।

शिखरों के विजेता और वैज्ञानिक इसी आवेग से प्रेरित होते हैं। मौसम के थपेड़ों को झेलते हुए बाहरी दुनिया से अन्वेषक अज्ञात सागर में बढ़े चले जाते हैं। पर्वतारोही अत्यंत प्रतिकूल स्थितियों का सामना करते हैं और वैज्ञानिक प्रयोगशाला में बाहरी शोर-गुल, उत्सव और त्योहारों का मजा लेते हुए एकांत में निर्जीव वस्तुओं के बीच जुटे रहते हैं।

इसके अनुरूप कभी उस माली के बारे में सोचा है जो दिन भर मिट्टी में काम करता है, उससे पूछा जाए कि उसको क्या इस कार्य को करने में आंनद आ रहा है, तो वह बोलेगा कि इस कार्य को करने में उसे वास्तविक आंनद आ रहा है। उसका सुख भूरी-भूरी मिट्टी को गीला करने में ही है। जबकि कुछ और लोगों के लिए यह अपने हाथ गंदे करने जैसे के समान है।

जैसे किसी चक्षुहीन व्यक्ति के लिए मौसम खराब भी हो तो कोई फर्क तरफ विकलांगों के लिए, हर बस या रेलगाड़ी में सीटें पहले से ही निश्चित होती है। वे घर से निकलते समय यह सुख ले सकता है कि वह अपनी यात्रा सुचारू ढंग से कर पाएंगे।

सुख पाने का अपना व्यक्तिगत तरीका है किसी को एकान्त में आनंद आता है किसी को सभी के साथ मिलकर। यह सभी कि अपनी-अपनी परिभाषा है। सभी को अपने ढंग से जीने का अधिकार है।

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