मेरा प्रिय कवि : तुलसीदास
Mera Priya Kavi : Tulsidas
भूमिका- किसी देश का गौरव उस देश के साहित्य द्वारा जाना जा सकता है। जिस देश का साहित्य और भाषा उन्नत होगी वह राष्ट्र भी उन्नत होगा। साहित्य और भाषा को समृद्ध करने में साहित्यकारों का ही योगदान होता है। इस प्रकार साहित्यकार देश और जाति के गौरव के प्रतीक होते हैं। साहित्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं लिखा जाता। साहित्य किसी वैध अथवा चिकित्सक की भान्ति कार्य नहीं करताहै परन्तु वह समाज को जागृति का संदेश देता है। वहीं साहित्यकार महानतम साहित्य की रचना कर सकता है जो स्वयं महान होता है। हिन्दी साहित्य में तुलसी ऐसे ही कवि हैं।
जीवन परिचय- महाकवि तुलसी दास के जन्म के समय, जन्म स्थान तथा बचपन के सम्बन्ध में कोई प्रमाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं होते हैं। उनके जन्म काल के सम्बन्ध में अधिकांश विद्वानों का मत है कि उनका जनम संवत् 1589 वि० (1532 ई०) में हुआ है। जन्म स्थान के सम्बन्ध में कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान राजा पुर को मानते हैं और कुछ सोरों (जिला एटा) को। इसी प्रकार उनके माता-पिता के सम्बन्ध में भी कोई प्रमाणिक तथ्य प्राप्त नहीं होते हैं। इसके काव्य की पंक्तियों के आधार पर इनके पिता का नाम आत्मा राम और माता का नाम हुलसी। इनके वंश के बारे में भी कोई निर्णय नहीं मिलता है। केवल यही माना जाता है कि तुलसी का जन्म ब्राह्मण वंश में हुआ। उनके जन्म के सम्बन्ध में भी जनश्रति है कि जन्म लेते ही वे पांच वर्ष के बालक के समान थे तथा इनके मंह में दांत थे तथा रोने की अपेक्षा राम-राम का उच्चारण करने लगे। जन्म के बाद माता पिता की मृत्यु हो गई तथा अनाथ बालक भी दर-दर भटके लगा। नरहरिदास ने उन्हें अपने पास रख लिया तथा उन्हें शिक्षा दी। कहा जाता है कि इनका विवाह रत्नावली से हुआ। पत्नी के रूप पर आसकत रहने के कारण उसके पीछे उसके मायके पहुंच गए। पत्नी ने उन्हें देखकर फटकारा। तुलसी लौट आए और घर छोड़कर प्रभु राम के चरणों की भक्ति में लीन हो गए।
चित्रकूट में डेरा जमा लिया। पण्डितों की ईर्ष्या से इन्हें कभी मन्दिर और कभी मस्जिद में आश्रय ग्रहण करना पड़ा। वृद्धावस्था में उनका शरीर रूग्न भी हो गया था और अन्त में 1680 वि (1623 ई०) में उनका देहावसान हो गया।
प्रमुख रचनाएं- तुलसी साहित्य के जगमगाते नक्षत्र हैं। वे जितने महान भक्त थे उतने ही महान् कवि थे। विद्वानों ने तुलसी दास द्वारा रचित बारह ग्रन्थ स्वीकार किए हैं- (1) रामचरितमानस (2) विनय पत्रिका (3) गीतावली (4) कवितावली (5) कृष्ण गीतावली (6) दोहावली (7) पार्वती मंगल (8) जानकी मंगल (9) रामाज्ञा प्रश्न (10) वैराग्य सन्दीपनी (11) राम लला नहछू 12 बरवै रामायण। परन्तु गोस्वामी की कीर्ति का आधार स्तम्भ तो रामचरित मानस ही है।
विषय की व्यापकता- तुलसी दास ने व्यापक काव्य विषय ग्रहण किए हैं। उनके काव्यों में श्रृंगार, शान्त, वीर आदि सभी रसों का परिपाक है। रामचरित मानस तुलसी का कीर्ति स्तम्भ है। इन महान् महाकाव्य से जिसके नायक भगवान राम हैं, तुलसी अमर हो गए हैं। उनके काव्य की सबसे बड़ी प्रबन्ध योजना है। राम सीता का प्रथम दर्शन, रामबन गमन, दशरथ की मृत्यु, भारत का पश्चाताप, सीता हरण, लक्ष्मण मूर्छा आदि अनेक ऐसे मार्मिक स्थल हैं जिनके कारण रामचरित मानस की प्रबन्ध योजना काफी प्रभावोत्पादक बन पड़ी है।
तुलसी की समन्वय- साधना- तुलसी लोकनायक थे, महान सामान्य करने वाले साधक थे। दूसरे शब्दों में वे युग दृष्टा और युग स्त्रष्टा कवि थे। जिस प्रकार योगीराज कृष्ण ने गीता में अनेक धर्मों, मतों का समन्वय किया। उसी प्रकार बुद्ध ने भी समाज और धर्म में व्याप्त रूढ़ियों, अन्ध विश्वासों तथा आडम्बरों का विरोध कर समाज का सही मार्ग दर्शन किया। तुलसी अपने युग के सबसे महान समन्वय साधक थे। उन्होंने युग को समझकर, उसका सूक्ष्म अध्ययन कर जो मार्ग प्रस्तुत किया वह सबके लिए श्रेष्ठ था। उनकी कविता में धर्म और दर्शन तथा भक्ति, साधु और गृहस्थी, सगुण और निर्गुण, सभ्यता कृष्ण, शिव और वैष्णव, कर्म और भक्ति का जो समन्वय हुआ है वह अन्यत्र कही भी दुर्लभ है। तुलसीदासजी अपने आप को दीन और राम को दयालु, स्वयं को भिखारी और भगवान् को दानी घोषित करते हैं। तुलसी की भक्ति के कारण ही आज रामचरितमानस प्रत्येक हिन्दू के घर में उपलब्ध हैं। और स्थान-स्थान पर रामायण का पाठ होता है।
उपसंहार- तुलसी महान् कवि, महान् भक्त तथा महामानव थे। उन्होंने काव्य जगत तथा समाज का नेतृत्व किया है। धर्म, भक्ति, कर्म, ज्ञान के वे महान् पंडित थे। उनका धर्म किसी पर चोट नहीं करता है। भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है। इनकी भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी है। कुछ स्थानों पर प्रचलित लोकोक्तियों और मुहावरों का भी सुन्दर प्रयोग हुआ है। पदों की दृष्टि से तुलसी का क्षेत्र व्यापक है। रामचरित मानस’ में अगर दोहाचौपाई का प्रयोग है तो कवितावली में छन्दों की भरमार है। कविता, सवैया, दोहा, गीति आदि छन्दों का सुन्दर प्रयोग है। तुलसी के काव्य में अलकारों का प्रयोग भी पर्याप्त मात्रा में हैं।