Hindi Essay on “Mera Priya Granth : Ramcharit Manas”, “मेरा प्रिय ग्रन्थ : रामचरित मानस ”, Hindi Nibandh, Anuched for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

मेरा प्रिय ग्रन्थ : रामचरित मानस 

Mera Priya Granth : Ramcharit Manas

भूमिका- आज प्रतिदिन सैंकड़ो नई पुस्तकें अलग-अलग नियमों पर अलग-अलग भाषाओं में बाजार में आ रही हैं। लेकिन मैं तो हिन्दी साहित्य का नियमित पाठक हं । हिन्दी की अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ने में मेरी रूचि रही है। हिन्दी का साहित्य उन साहित्यकारों द्वारा लिखा गया है जो स्वयं अभावग्रस्त रहे परन्तु पाठकों के लिए सुन्दर भाव। अपनी रचनाओं में छोड़ गए हैं। कछ रचनाएं मझे काफी रोचक लगी हैं, परन्तु जिस महान द्वारा रचित रामचरितमानस’। यह ग्रन्थ सभ्यता एवं संस्कृति का महान रचना ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है- वह गोस्वामी तुलसीदास समारक है। यही मेरी प्रिय पुस्तक ग्रन्थ है।

राम चरित मानस : परिचय- राम चरित मानस महा कवि गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा अवधि भाषा में रचित महान् महाकाव्य है, जिसके नायक शील, शक्ति और सौन्दर्य के भण्डार, राजा दशरथ के पुत्र राम हैं। राम वास्तव में अवतार हैं। महाकवि वाल्मीकी ने संस्कृत में श्री राम को नायक बना कर रामायण की रचना की है। परन्तु जो ख्याति ‘रामचरित मानस’ को प्राप्त हुई उसकी तुलना में रामायण बहत पीछे है। इसका विभाजन सात काण्डों में किया गया है। ये काण्ड हैं बाल काण्ड, अयोध्या काण्ड, आव्य काण्ड, किष्किका काण्ड, सुन्दर काण्ड, लंका काण्ड तथा उत्तर काण्ड। इस काव्य को उन्होंने एक मानस का अर्थात् मानसरोवर अत्यन्त पवित्र सरोवर का रूप दिया है, जिसमें स्नान करने से जीवन के सभी पाप घुल जाते हैं। सात काण्डों में बंटी हुई यह कथा चौपाई, सोरठा, दोहों और कवित्त आदि छन्दों में लिखी गई है। मानस अपने रूप, विषय वस्तु, काव्य सौन्दर्य, उद्देश्य आदि की दृष्टि से अनुपम और अतुलनीय है।

रामचरितमानस : सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक पक्ष- राम चरित मानस में तुलसी ने राम की कथा को आधार मान कर सामाजिक जीवन का, उसके आदर्श का विस्तृत वर्णन किया है। महात्मा गान्धी को यह ग्रन्थ इसलिए प्रिय था। राम मर्यादा पुरुषोतम है और इसके कई पात्र इस मर्यादा के मार्ग पर चलते हैं। राम का बाल्य काल, पिता की आज्ञा से राज्य का त्याग, राक्षसों का वध, सुग्रीव और विभीषण की आज्ञा से राज्य का त्याग राक्षसों का वध, सुग्रीव और विभीषण की मैत्री, रावणवध, अपनी प्रजा के प्रति प्रेम, उनके जीवन के वे विवध पक्ष हैं जिससे राम महान् बन जाते हैं। राम के साथ ही भरत, लक्ष्मण जैसे आदर्श भाई हैं। सीता उनकी आदर्श पत्नी है, सग्रीव और विभीषण आदर्श मित्र हैं, हनुमान आदर्श सेवक है तथा रावण भी आदर्श शत्रु है। इस प्रकार सम्पूर्ण मानस में एक आदर्श की स्थापना की गई है, मर्यादाओं का पालन किया गया है।

राम मन, वचन और आचरण द्वारा अपनी प्रजा का पालन करते हैं। मानस में केवल घर की ही कथा नहीं चलती है अपितु वे एक ऐसे राज्य की स्थापना करते हैं जो राज्य सुराज्य कहा जा सकता है। इनकी राजनीति और धर्मनीति का लगभग एक ही आधार है। राम के राज्य में राजनीति से प्रजा पर राजा नहीं किया जाता था अपितु धर्म नीति से ही राजनीति को पवित्र रखा जाता था। राम जैसे राजा के वैयक्तिक और परिवारक जीवन पर प्रजा खुली टिप्पणी करती थी। एक धोबी जोकि उसकी ही प्रजा का सदस्य था। सीता पर अंगुली उठाई और राम ने उसके सन्देह को दूर करने के लिए सीता को निष्कासित कर वन भेज दिया। इसी प्रकार राम ने रावण की मृत्यु के पश्चात् सम्मानपूर्वक उसकी अन्तेष्टि क्रिया करवाई और विधान के अनुसार विभीषण को उसका उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

रामचरित मानस का एक ओर विशाल भव्य पक्ष उसका धार्मिक पक्ष भी है। तुलसी ने रामचरित मानस जैसे का काव्य-ग्रन्थों में कविता का उद्देश्य अत्यन्त उदार माना है। जो लोग श्रेष्ठ मार्ग को छोड़ कर, साधुओं का रूप धारण कर धर्म के नाम पर अधर्म को फैलाते हैं। उनसे तुलसी को घृणा थी। तुलसी दास जी ने सुगम और निर्गुण में कोई भेद नहीं माना है। रामचरित मानस की जनता के लिए एक महान् धार्मिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में तुलसी ने मानव के कल्याण के लिए अनेक मूल्यों की स्थापना की है।

रामचरित मानस : एक महान् महाकाव्य- यह एक प्रबन्ध काव्य है जिसके नायक राम हैं। लेकिन इसके विषय और चरित्र की व्यापकता इसमें चरित्रों के विभिन्न रूपों का मनोवैज्ञानिक चित्रण उपस्थित करता है। रसों की दृष्टि से इस महाकाव्य में शान्त रस की धारा बहती है लेकिन इसके साथ ही सभी रसों का यथा-स्थान चित्रण देखने । को मिलता है। श्रृंगार वर्णन है लेकिन इसमें मर्यादा का ध्यान रखा गया है। छन्द और भाषा पर भी तुलसी का अधिकार था।

उपसंहार- रामचरित मानस का जिस भी धरातल पर मूल्यांकन किया जाए उसी धरातल पर खरी उतरती है। मैं अपने घर के छोटे से पुस्तकालय में इस ग्रन्थ को रखता हूं। जब कभी भी मैंने अपने मित्रों को कोई उपहार देना होता है तो मैं उपहार रूप में ‘रामचरित मानस’ ही देता हूं। इस ग्रन्थ के विषय में एक अंग्रेज़ ने लिखा था, “यदि इंग्लैंड में कोई इस प्रकार की रचना कर सकता तो उस पर हम अपना सारा राज्य न्यौछावर कर देते। मुझे यह ग्रन्थ सर्वाधिक प्रिय है। मैं समय-समय पर इसका पाठ करता है। निःसन्देह यह संसार का एक महान् गौरव ग्रन्थ है।

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