मेले का वर्णन
Mele ka Varnan
Essay # 1
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मेलों का विशेष महत्त्व है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा असम से लेकर कच्छ की खाड़ी तक न जाने कितने प्रकार के मेलेः भारत में लगते हैं। इन सभी मेलों का अपना-अपना महत्त्व है।
मेले न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी कहे जाते हैं। प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण है कि ये मेले किस प्रकार जन-मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा मनोरंजन करते हैं।
भारत में लगने वाले मेलों का सम्बन्ध अनेक प्रकार के विषयों से जुड़ा हुआ है। कुछ मेले पशुओं की बिक्री के लिए होते हैं, कुछ मेलों का किसी धार्मिक घटना अथवा पर्व के साथ सम्बन्ध जुड़ा रहता है, तो कुछ मेले किसी स्थान विशेष से जुड़े रहते हैं।
उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश में एक जिला है, जिसका नाम है-मेरठ। इसी मेरठ में प्रतिवर्ष एक मेले का आयोजन होता है। इस मेले का नाम नौचन्दी का मेला है। यह मेला सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में अपना एक विशिष्ट तथा विशेष स्थान रखता है। यह मेला प्रतिवर्ष मार्च-अप्रैल के महीने में लगता है। मेले के लिए स्थान नियत है तथा प्रतिवर्ष उसी स्थान पर मेला लगता है।
नौचन्दी का मेला लगभग 10-15 दिन तक चलता है। मेले का प्रवेश द्वार ‘शम्भूदास गेट’ बहुत सजाया जाता है। पूरे मेले में सफाई तथा विद्युत का प्रकाश देखने लायक होता है। इस मेले में बहुत से बाजार लगते हैं उनमें पूरे देश भर से व्यापारी अपना-अपना सामान बेचने आते हैं। दिन में यह मेला बिल्कुल फीका रहता है। अधिकांश दुकानदार रात भर जगने के कारण दिन में देर तक सोते हैं और दोपहर के बाद ही अपनी दुकानें लगाते हैं। मेरठ नगरपालिका इस मेले की सफाई आदि का प्रबन्ध करती है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, थोड़ी है।
जैसे ही सूर्य छिपने का समय आता है, पूरे मेले में रोशनी की जगमगाहट फैल जाती है और भीड़ धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। रात के 9-10 बजे तक भीड़। बढ़ती ही रहती है और पूरी रात मेला चलता है। लोग तरह-तरह की चीजें खरीदते। हैं। मेले में अनेक प्रकार के मनोरंजन-जैसे सरकस, झूले, बड़ा झूला, मौत का कुआँ, कवि-दरबार, मशायरा, नाटक, कव्वाली, रंगारंग कार्यक्रम तथा अन्य अनेक प्रकार के मनोरंजक खेलकूद सभी का मन मोह लेते हैं।
मेलों में पुलिस विभाग, अग्निशामक दल, स्काउट्स एण्ड गाइड्स तथा अन्य अनेक समाज-सेवी संस्थाओं का सहयोग रहता है। मेले में परिवार नियोजन, कृषि-विभाग तथा दस्तकारी आदि की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है।
नौचन्दी का मेला उत्तर भारत का विशेष मेला है। इसका अपना महत्त्व है। यह मेला हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। यहाँ चण्डी देवी का मन्दिर है तथा ‘बालेमियाँ का मजार’ भी । हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों अपनी-अपनी श्रद्धानुसार पूजा करते हैं।
गतवर्ष मार्च में मैंने यह मेला देखा था। मुझे लगा कि पूरा भारतवर्ष ही इस मेले में आ गया है। भारत की सांस्कृतिक तथा धार्मिक एकता के लिए इस प्रकार के मेलों की बहुत आवश्यकता है।
Essay # 2
मेला
The Fair
या
एक मेले का वर्णन
Ek Mele Ka Varnan
रूप–रेखा
मेलों का महत्व, मेले कहाँ और क्यों लगते हैं ?, दीपावली का मेला, माँ काली का दर्शन, मेले की दुकानें, खेल–तमाशे, मेले में क्या किया?
भारत में त्योहारों और मेलों का बहुत महत्त्व है । इनसे हमारे जीवन में बदलाव होता है । ये हमारे जीवन को आनन्दित बना देते हैं । भारतीय लोग मेलों का भरपूर आनन्द उठाते हैं । मेलों के आयोजन से सामाजिक मेल-जोल बढ़ता है। मेले भारतीय संस्कृति की पहचान व्यक्त करते हैं।
हमारे अधिकतर मेले पर्व-त्योहारों से जुड़े होते हैं । दशहरा, दीपावली, मकर संक्रांति, शिवरात्रि, रामनवमी, ईद, बैशाखी आदि विभिन्न त्योहारों के अवसर पर मेले लगा करते हैं । ये मेले प्रायः मंदिर, देवस्थान, ईदगाह, नदी, तालाब आदि के निकट लगते हैं । मेले में लोग श्रद्धा और विश्वास के साथ भाग लेते हैं । वे नदी या तालाब में स्नान करते हैं, पूजा करते हैं । फिर मेले का आनन्द उठाते हैं । मेलों में भाग लेने से हमारा भरपूर मनोरंजन होता है । इससे हमारी जानकारी भी बढ़ती है।
पिछले दिनों में दीपावली का मेला देखने गया । यह मेला मेरे शहर में हर वर्ष आयोजित किया जाता है । मेला एक बड़े मैदान में लगता है । मैदान के निकट माँ काली का मंदिर है। इस मंदिर में माँ काली की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है । लोग बडी संख्या में आकर माँ काली के दर्शन करते है। फिर वे मेले का आनन्द उठाते हैं। मेला तथा इसके आस-पड़ोस का वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
मैंने अपने माता-पिता के साथ मेले में जाकर माँ काली के दर्शन किए । हमने आरती में भाग लिया । मिठाइयों और फलों के भोग लगाए । फिर प्रसाद लेकर मेला देखने चले गए । मेले में तरह-तरह की दुकानें थीं। यहा मिठाइयों की अनेक दुकानें थीं । कुछ दुकानों में भेलपूरी, समोसे, छोले-भटूरे, गोलगप्पे आदि चटपटी चीजें बिक रही थीं। रंग-बिरंगे खिलौनों, मिट्टी की मूर्तियों, घरेलू उपकरणों, बरतनों, गुब्बारों आदि की यहाँ कोई कमी नहीं थी। सभी लोग अपनी-अपनी पसंद की चीजें खा-पी रहे थे या खरीदारी कर रहे थे । बच्चों को आईसक्रीम, चाट-पकोड़े, गोलगप्पे आदि चटपटी चीजें अधिक भा रही थीं । वे गुब्बारों और खिलौनों की जमकर खरीदारी कर रहे थे।
मेले में कुछ खेल-तमाशे भी हो रहे थे । मदारी अपना खेल दिखाकर दर्शकों की वाहवाही लूट रहा था । तेज गति से घूमने वाले झूलों पर अच्छी-खासी भीड थी। एक सिरे पर नटों का खेल हो रहा था । जादूगरों ने अलग समाँ बाँध रखा था । चारों ओर से तरह-तरह की आवाजें सुनाई दे रही थीं । मेले की भीड़, शोर-गुल, धूल और धुएँ के बीच भी हर कोई प्रसन्न दिखाई दे रहा था । बच्चे मिक्की माउस के गद्दों पर झूलने का खूब मजा ले रहे थे । खेल-तमाशे वाले आवाजें लगाकर तथा विचित्र वेश-भूषा बनाकर दर्शकों को आकर्षित कर रहे थे । एक सिरे पर खिलौना ट्रेन चल रही थी। बच्चे इस पर सवारी करते हुए बहुत खुश नज़र आ रहे थे।
हम लोगों ने भी मेले का पूरा लुत्फ उठाया । पिताजी ने मुझे मनपसंद चीजें खाने और कोई भी खेल देखने की आजादी दे रखी थी । खा-पीकर हम लोग आदिवासियों का नृत्य देखने लगे । लय और ताल से युक्त इस सामूहिक नृत्य को देखकर मन प्रसन्न हो उठा । अब झूला झूलने की बारी थी। मैं मेरी गो राउंड वाले झूले पर चढ़कर बहुत खुश था । अब रात हो चली थी । हम लोग घर की ओर चल पड़े । रास्ते में हम लोग मेल के बारे में चर्चा करते रहे । इस मेले की यादें अभी भी मेरे मस्तिष्क में हैं।