मकर संक्रांति
Makar Sankranti
यो तो संक्रांति प्रत्येक मास में होती रहती है, पर मकर और कर्क राशियों का संक्रमण विशेष महत्त्व का होती है। ये दोनों संक्रमण छः-छः मास के अंतर से होते हैं। मकर-संक्रांति सूर्य के उत्तरायण होने और कर्क-संक्रांति सूर्य के दक्षिणायन होने को कहते हैं। उत्तरायण काल में सूर्य उत्तर की ओर झुकता दीख पड़ता है। इस दशा में दिन बड़ा और रात छोटी होती है। दक्षिणायन काल में सूर्य के दक्षिण की ओर झुकने से रात बड़ी और दिन छोटा होता है। मकर-संक्रांति हिंदुओं का बड़ा दिन है। कहते हैं।यशोदा जी ने इस दिन कृष्ण के जन्म के लिए उपवास किया था।
पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मकर-संक्रांति के दिन प्रातःकाल तिलों से तैलाभ्यंग स्नान करना चाहिएइस दिन तिल का विशेष महत्त्व है। तिल के तेल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल का भोजन करना और तिल का दान देना-बड़ा ही पुण्य कार्य है।
उत्तर-पूर्व में मकर-संक्रांति को ‘खिचड़ी’ कहते हैं। इस दिन लोग खिचड़ी ही खाते हैं और खिचड़ी तथा तिल के लड्डू दान करते हैं। महाराष्ट्र में विवाहित युवतियां पहले संक्रांति को तेल, कपास, नमक आदि सौभाग्यवती स्त्रियों को देती हैं और सौभाग्यवती स्त्रियां अपनी सहेलियों को हल्दी, रोरी, तिल और गुड़ देती हैं।
पंजाब में यह त्योहार ‘लोहड़ी’ के रूप में मनाया जाता है। गंगासागर में इस तिथि पर बड़ा भारी मेला लगता है।