महर्षि वाल्मीकि जयन्ती
Maharishi Valmiki Jayanti
महर्षि वाल्मीकि इस धरती के प्रथम कवि अर्थात् ‘आदि कवि’ माने गए हैं। उनका महाकाव्य ‘रामायण’ सर्वप्रथम काव्य-ग्रन्थ अथवा ‘आदि काव्य’ माना गया है। महर्षि वाल्मीकि के जीवन के साथ अनेक प्रकार की दंत-कथा।एं जुड़ी हुई हैं। उनका वास्तविक नाम रत्नाकर था। एक दंत कथा के अनुसार वह वरुण के दसवें पुत्र थे किन्तु बाल-अवस्था में ही वह कुछ ऐसे लोगों में फंस गए जो लूट-पाट आदि की वारदातें किया। करते थे। एक दिन जब सप्त-ऋषियों के साथ सामना हुआ तो उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई। आपने घर-बाहर सब कुछ त्याग कर एक वृक्ष के नीचे समाधि लगा ली तथा ‘राम-राम’ मन्त्र का जाप आरंभ कर दिया। इसी अवस्था में वह बारह वर्ष निरंतर बैठे रहे। दीमक (खेत चींटी) ने उनके शरीर पर एक वाल्मीकि (दीमक की बांबी अथवा पहाड़ी) खड़ी कर दी तभी दैवयोग से सप्तऋषि लौटकर उसी मार्ग से आए तथा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि को इस दशा में देखकर उनकी भक्ति की बड़ी प्रशंसा की तथा उनको नए नाम ‘वाल्मीकि’ पुकारा। तदोपरांत उन्होंने तमस नदी के तट पर अपना एक आश्रम बना लिया। एक दिन जब नदी में वह स्नान कर रहे थे तब किसी शिकारी के बाणों द्वारा घायल हुआ काम पीड़ित ‘क्रौच-पक्षी’ (हंस के सदृश एक सुन्दर जलप्रिय पक्षी) उनके पास तड़पड़ाता हुआ आ गिरा। उनके हृदय में करुणा का वेग उत्पन्न हुआ और मुख से हठात्यह श्लोक निकल पड़ा:
“मा निषाद ! प्रतिष्ठा त्वमगमः शाश्वती समाः।
यत्क्रौचमिथुनदेकमवधीः काममोहितम्(अर्थात् हे वधिक!
तू शाश्वत नरक में निवास कर क्योंकि काम मोहित क्रौच-युगल में से एक का तूने वध कर डाला है।) इस श्लोक के उच्चारण के साथ ही यकायक ब्रह्मा आपके समक्ष प्रकट हुए। तथा उन्होंने महर्षि को ‘राम-कथा’ के वृतांत को ‘रामायण’ के रूप में रचने का आदेश दिया। ब्रह्मा ने उन्हें स्वयं श्रीरामचन्द्र जी के अतीत तथा भविष्य के जीवन का पूरा वृतांत कह सुनाया। इसके अतिरिक्त माता सीता भी अपने दोनों पुत्रों लव-कुश सहित उनके ही आश्रम में ठहरी थीं। इस परिस्थिति में महर्षि वाल्मीकि ने इस स्थान पर (जो आजकल रामतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है तथा पंजाब के अमृतसर जिले में स्थित है।) 24,000 पंक्तियों में ‘रामायण’ की रचना की। महर्षि वाल्मीकि श्रीरामचन्द्र जी के समकालीन पुरुष थे। भारतीय विचारधारा के अनुसार श्रीरामचन्द्र जी त्रेतायुग के अंतिम चरण में 8९ माने जाते हैं। जिसके अनुसार उनका समय 8,67,100 ईसवी पूर्व ठहरता है। रामायण के अनुसार श्रीरामचन्द्र ने भारतवर्ष पर 11,000 वर्ष राज्य किया। महर्षि वाल्मीकि ने जब ‘रामायण’ महाकाव्य को लिखना आरंभ किया तो उस समय लव तथा कुश पैदा हो चुके थे। अतएव ‘रामायण’ 8,78,000 ईसवी पूर्व के आस- पास लिखी गई थी।
महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन की पूर्णिमा को पड़ता है। जो बड़ी धूम-धाम तथा श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि भील परिवार से संबंध रखते थे। इसीलिए समस्त पिछड़ी जाति के लोग विशेष रूप से उनके जन्म दिवस को बड़ी श्रद्धा और उल्लास से मनाते है |